अस्तित्व खो रहा बटेरी गढ़

गढ़ का गुंबद हुआ क्षतिग्रस्त, ऊंची पहाड़ी पर होने से नहीं हो रहा रख-रखाव

<p>baterigarh</p>
अजमेर. निकटवर्ती खरवा के पास बटेरी की पहाड़ी पर बना गढ़ देखरेख के अभाव में अपना अस्तित्व खो रहा है। 
यह गढ़ मसूदा व नसीराबाद उपखण्ड की सीमा के बीच की अमरगढ़ की पहाड़ी के अंतिम छोर पर बना हु़आ है। 

वर्तमान में बटेरी गढ़ का मुख्य द्वार गायब हो चुका है। पहाड़ी की ऊंचाई अधिक होने से गढ़ तक आमजन आसानी से नहीं पहुंच पाता। 
गढ़ तक पहुंचने के लिए चट्टानों व पथरीले रास्ते से होते हुए कंटीली झाडियों के बीच से होकर गुजरना पड़ता है। 

हालांकि पहाड़ी के कुछ हिस्से तक पशुपालक पशु चरने जाते हैं। गढ़ की चारदीवारी करीब 8 फीट चौड़ी है तथा यह केवल पत्थरों से बनी हुई है। 
गढ़ का मुख्य दरवाजा व उसकी पोल ही चूने से निर्मित है।

दरवाजे की पोल की छत में पट्टियां नहीं हैं। यह केवल चूने के साथ पत्थरों से तराशी हुई हैं। 

वर्तमान में भी प्रवेश द्वार की छत आरसीसी से ज्यादा मजबूत है। देख-रेख के अभाव में अब चारदीवारी के अंदर की सीढिय़ां क्षतिग्रस्त हो रही हैं। वही एक गुंबद वर्षों से क्षतिग्रस्त हो रहा है।
निगरानी के लिए बना गढ़

अमरगढ़ की पहाड़ी के उपर बना चौबुरजा गढ़ बटेरी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां से इलाके की अच्छी तरह से निगरानी की जा सकती है। 

इसी उद्देश्य से बटेरी पर चौबुरजा गढ़ का निर्माण करवाया गया। इस चौबुरजे से अजमेर, नसीराबाद आदि दूर-दूर के नगर पहले साफ नजर आते थे। 
यहां तक कि यहां से 40 मील दूरी पर स्थित मेड़ता नगर भी पहले साफ दिखाई देता था।

बटेरी गढ़ का निर्माण

बटेरी गढ़ का निर्माण खरवा के पूर्व शासक राव देवसिंह ने सन् 1815 ई. में मराठों के समय में करवाया था। 
इतिहास के अनुसार उस समय अजमेर का मराठा सूबेदार गामाजी राज शिंदे था।

बटेरी पर गढ़ निर्माण पर शिंदे ने राव देवसिंह को ताकीद लिखी थी कि आप गढ़ी बना रहे हैं, सो तो ठीक, परन्तु उसमे हमेशा हथियारबंद सैनिकों को रखना। 
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