देवी के नौ शस्त्रो का यह है दिव्य रहस्य

दुर्गा सप्तशती में कहा गया है देवी को देवताओं ने अपने हथियार प्रदान किए थे ताकि वो असुरों के साथ होने वाले महासंग्राम में युद्ध कर विजयी बन सके

<p>Durga</p>
दुर्गा सप्तशती में मां के हाथों में नौ अस्त्र-शस्त्र बताएं गए हैं। ये सभी हथियार उन्हें देवताओं ने प्रदान किए थे ताकि वो असुरों के साथ होने वाले महासंग्राम में युद्ध कर विजयी बन सके।

(1) त्रिशूल : दैत्यों से युद्ध के लिए पिनाकधारी भगवान् शंकर ने अपने शूल से त्रिशूल निकालकर मां दुर्गा को भेंट किया। इससे महिषासुर व अन्य दैत्यों का वध करने में देवी को सहायता मिली।
(2) चक्र : भक्तों की रक्षा के लिए भगवान् विष्णु ने अपने चक्र से चक्र उत्पन्न करके देवी भगवती को अर्पण किया। इससे रक्तबीज व अन्य दैत्यों को मारने में देवी को मदद मिली।
(3) शंख : वरूण देव ने देवी को शंख भेंट किया। यह उच्चेश्वर शंख जब भी युद्ध भूमि में गुंजायमान होता था तो दैत्यों की चतुरंगिणी सेना भाग खड़ी होती थी। शंख की ध्वनि से धरती, आकाश और पाताल तीनों ही लोक गूंज उठते व दैत्य डर से कांपने लगते थे।
(4) शक्ति बल : अग्नि देव ने दुर्गा को शक्ति प्रदान की। देवी इसी शक्ति के बल पर दैत्यों को रणभूमि से खदेड़ डालती थीं। महिषासुर सहित अनेक दैत्य रथ, हाथी, घोड़ों की सेना लेकर युद्ध करने आए, जिन सभी का देवी ने बल से वध किया।
(5) धनुष-बाण : पवन देव ने धनुष व बाण से भरे दो तरकश प्रदान किए। समस्त लोकों को क्षोभग्रस्त देख दैत्यगण अपनी सेना को कवच-कुंडल आदि से सुसज्जित कर हाथों में हथियार लेकर देवी की ओर दौड़े। तभी देवी ने धनुष-बाणों के प्रहार से असुरों की समस्त सेना को नष्ट कर दिया था।
(6) वज्र और घंटा : देवराज इंद्र ने अपने वज्र से एक वज्र उत्पन्न करके देवी को भेंट किया व ऎरावत हाथी के गले से एक घंटा उतारकर भी प्रदान किया। वज्र के प्रहार और धनुष की टंकार को सुन महिषासुर की चतुरंगिणी सेना युद्ध के मैदान से भाग गई। देवी ने त्रिशूल, गदा, शक्ति की वर्षा व खड्ग आदि से सैकड़ों महादैत्यों का संहार किया। साथ ही अनेक असुरों को घण्टे के भयंकर नाद से भी मूर्छित करके मार गिराया।
(7) दण्ड : यमराज ने कालदण्ड से माता को दण्ड भेंट दिया। युद्ध भूमि में माता ने कितने ही दैत्यों को दण्ड पाश से बांधकर धरती पर घसीटा।
(8) तलवार : यमराज ने ही उन्हें चमकती हुई तलवार और ढाल भेंट की। देवी ने क्रोध में आकर असुरों की गर्दनें तलवार से काट डालीं।
(9) फरसा : विश्वकर्मा देव ने देवी को फरसा भेंट किया। चंड-मुंड का नाश करने के लिए देवी ने काली का रूप धारण किया और हाथों में तलवार-फरसा लेकर उनसे युद्ध किया। क्रोध से देवी का मुख काला पड़ गया और जीभ बाहर निकल आई। उन्होंने इस स्वरूप में विचित्र खट्वांग धारण किए और चीते के चर्म की साड़ी पहनकर नरमुंडों की माला गले में डाली। यहां विकराल मुख वाली काली ने दैत्यों का संहार किया।

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