सम्प्रेषण की कला-३

शब्द, ब्रह्म को पाने का एक मार्ग है। जिस तरह से कृष्ण ने कर्म योग, भक्ति योग, बुद्धि योग गीता में लिखे वैसे ही ज्ञान मार्ग भी लिखा है। लेकिन उस ज्ञान और इस ज्ञान की परिभाषा अलग है।

<p>rajasthan patrika article, religion and spirituality, dharma karma, gulab kothari article, gulab kothari, radha, krishna</p>
संप्रेषण का एक ही सूत्र है मन। और वह आएगा संकल्प से। जब लेखन का संकल्प, उद्देश्य का संकल्प दृढ़ हो जाएगा, वही मन का संकल्प होगा। वह शरीर व बुद्धि का संकल्प नहीं होगा। मन का संकल्प ही हमारे लेखन में भाव लाएगा, शŽद लाएगा और नई दिशा देगा। शŽद परम ब्रह्म है। €क्योंकि यह भी एक तरह की पूजा है।
शब्द, ब्रह्म को पाने का एक मार्ग है। जिस तरह से कृष्ण ने कर्म योग, भक्ति योग, बुद्धि योग गीता में लिखे वैसे ही ज्ञान मार्ग भी लिखा है। लेकिन उस ज्ञान और इस ज्ञान की परिभाषा अलग है। लेकिन शब्द को कैसे समझें। शरीर के चार धरातल हैं- शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा। जिसमें हम जीते हैं। शब्द भी चार धरातल पर जीता है। इसको हम बोलते हैं-परा, पश्यन्ति, मध्यमा और वैखरी। एक बोतल में पानी भरकर एक कमरे में रख दो। रोजाना उसके सामने प्रार्थना करो। अच्छे शब्द बोलो। थोड़े दिन बाद आप जैसे ही कमरा खोलेंगे आपको खुशबू आने लगेगी। इसी तरह उसी पानी के सामने रोज अपशब्द बोलने से उसमें दुर्गंध आने लग जाएगी। यह शब्द की शक्ति ही है।
शब्द की श€क्ति
आज हम घरों में कितने ही लोग टीवी देखते हैं। उसका कौन सा शब्द हमारे शरीर पर, बुद्धि पर €या-€या स्पन्दनों के प्रभाव छोड़ रहा है। इंटरनेट कितने शब्द छोड़ रहा है। उन सब का शरीर पर कितना असर पड़ता होगा €योंकि शरीर में तो ७० प्रतिशत पानी है। अब हमें उस पानी के अन्दर खुशबू लानी है या दुर्गन्ध पैदा करनी है। हमारे ही हाथ की बात है। अगर हमारे शरीर में कोई रोग होता है तो दोष किसी को नहीं दे सकते। यह वो रोग है जिसका इलाज डॉ€टर के पास नहीं है। जब तक अपनी ही भावनाओं में वापस परिर्वतन नहीं करेंगे, परिष्कार नहीं करेंगे। तब तक वो रोग जा ही नहीं सकता। इसके लिए शŽद की उस शक्ति को समझकर चलना होगा।
आज घर में किसी के बच्चा नहीं है, किसी को नौकरी चाहिए तो किसी को इलाज। इसके लिए हवन, अनुष्ठान आदि कराते हैं। उसमें मंत्रों का, शब्दों का उपयोग होता है। जाप, उपासना सबके पीछे शब्द है, सरस्वती है। और प्राप्त करने के लिए लक्ष्मी है। सरस्वती चेतना है। चेतना का काम है लेखन का, कर्म का और प्राप्त कर रहे हैं लक्ष्मी को। लक्ष्मी का जितना क्षेत्र है वह जड़ है। न धन में चेतना है, न मकान, न कार में है। सब जड़ है। यहां पहली बात यह है कि अपनी चेतना का उपयोग जड़ की प्राप्ति के लिए नहीं हो। बल्कि जड़ का उपयोग चेतना की प्राप्ति के लिए हो। पुस्तकें खरीदना, अच्छे लोगों के साथ बैठकर सत्संग करना, यह उसका उपयोग करना है। इससे हम जिन्दगी के स्प्रेषण की कला में पारंगत हो सकते हैं।
परोक्ष सम्प्रेषण
परोक्ष सम्प्रेषण वह है जिसमें कहते कुछ हैं, कहना कुछ और चाहते हैं। उसकी भूमिका को समझ लिया तो सफल लेखन हो सकता है। श्रीकृष्ण का उदाहरण इसी बात को इंगित करने के लिए है। एक बार कृष्ण द्वारिका में विश्राम कर रहे थे। रु€क्मणी उनके पांव दबा रही थी। अचानक रु€क्मणी का हाथ उनके तलुवे पर बने छाले पर चला गया तो वह चौंक पड़ी। वह कृष्ण से बोली, ‘नंगे पांव आपको कहीं चलना नहीं पड़ता। जंगलों में कहीं गए नहीं हो। फिर ये छाला कहां से आया।’ कृष्ण ने कहा, ‘कोई खास बात नहीं है। शरीर में कभी भी कुछ भी चीज पैदा हो जाती है।’ रु€क्मणी ने कहा, ‘नहीं, इसमें कुछ तो राज है। मुझे बताओ।’
कृष्ण ने कहा, ‘राज कुछ भी नहीं। तुम जानना ही चाहती हो तो बता देता हूं। राधा आई थी द्वारिका। मैंने तुम्हारी ड्यूटी उसकी सेवा में लगाई थी। यह सच है कि तुमने उसकी खूब सेवा की। पर तु्हारे मन में राधा के प्रति थोड़ी ईर्ष्या तो है। उस ईर्ष्या के कारण तुमने उसे एक दिन बहुत गर्म दूध पिला दिया। तुमको यह मालूम नहीं है कि उसके हृदय में मेरे चरण रहते हैं। जहां वह दूध गिरा वहां मेरे चरण थे। यह छाला वही है।’
यह समझने की बात है। मानव के जो मूल्य हैं। जो परोक्ष भाव में जीने के लक्षण हैं (परोक्ष भाव का अर्थ है सूक्ष्म भाव जो सामने दिखाई नहीं देता। जो सामने दिखाई देता है, वो स्थूल भाव है।) उन्हें एक लेखक को स्पष्ट करना है। अत: संकल्प के साथ चारों कलाओं, स्नेह, वात्सल्य, श्रद्धा और प्रेम को लेखनी में जोडक़र समाज को अगर हम इंगित करते हैं, स्प्रेषित करते हैं तो निश्चित है धर्म, स्प्रेषण और शब्द ब्रह्म की महत्व से हम स्वस्थ और स्वच्छ समाज का निर्माण कर सकेंगे।
Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.