जानकारों के अनुसर भूखंड की शुभ-अशुभ दशा का अनुमान वास्तुविद आसपास उपस्थित वस्तुओं को देखकर लगाते हैं। भूखंड की किस दिशा की ओर क्या स्थित है और उसका भूखंड पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इस बात की जानकारी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के विश्लेषण से प्राप्त होती है। यदि वास्तु सिद्धांतों व नियमों के अनुरूप भवन निर्माण करवाया जाए तो भवन में रहने वाले लोगों का जीवन सुखमय होने की संभावना प्रबल हो जाती है।
वास्तु की जानकार रचना मिश्रा के अनुसार प्रत्येक मनुष्य की इच्छा होती है कि उसका घर सुंदर, सुखदायी व सकारात्मक ऊर्जा का वास हो, जहां रहने वालों का जीवन सुखद एवं शांतिमय हो। इसलिए आवश्यक है कि भवन वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप निर्मित हो और उसमें कोई वास्तु दोष न हो। यदि घर की दिशाओं में या भूमि में दोष है तो उस पर कितनी भी लागत लगाकर मकान क्यों न खड़ा किया जाए, फिर भी उसमें रहने वाले लोगों का जीवन सुखमय नहीं होगा। कहा जाता है कि मुगल कालीन भवनों, मिस्र के पिरामिड आदि के निर्माण-कार्य में भी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों व नियमों का सहारा लिया गया था।
ऐसे समझें वास्तु शास्त्र और ज्योतिष का संबंध
वास्तु की जानकार मिश्रा के अनुसार वास्तु एवं ज्योतिष शास्त्र दोनों एक-दूसरे के पूरक व अभिन्न अंग हैं। जैसे मानवीय शरीर का अपने अंगों के साथ अटूट संबंध होता है। ठीक वैसे ही ज्योतिष शास्त्र का अपनी सभी शाखाएं प्रश्न शास्त्र, अंक शास्त्र, वास्तु शास्त्र आदि के साथ अटूट संबंध है।
ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के बीच निकटता का कारण यह है कि दोनों शास्त्रों का उद्देश्य मानव को प्रगति और उन्नति की राह पर अग्रसर और सुरक्षा प्रदान कराना है। वास्तु सिद्धांत के अनुरूप निर्मित भवन में वास्तुसम्मत दिशाओं में सही स्थानों पर रखी गई वस्तुओं के परिणामस्वरूप भवन में रहने वाले लोगों का जीवन शांतिपूर्ण और सुखमय होता है। इसलिए भवन निर्माण से पहले किसी वास्तुविद से परामर्श लेकर वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए।
‘वास्तु संक्षेपतो वक्ष्ये गृहदो विघनाशनम्
ईशानकोणादारम्भ्य हयोकार्शीतपदे प्यजेत्’
इसका अर्थ है कि वास्तु घर निर्माण करने की वह कला है जो ईशान कोण से प्रारंभ होती है और जिसके पालन से घर के विघ्न दूर होते हैं। प्राकृतिक उत्पात व उपद्रवों से रक्षा होती है यानि घर के वातावरण से नेगेटिविटी दूर होती है।
एक अन्य शास्त्र में वास्तु के बारे में कहा गया है…
‘गृहरचना वच्छिन्न भूमे’
यानि घर निर्माण के योग्य भूमि को वास्तु कहते हैं।
कुल मिलाकर वास्तु वह विज्ञान है जो भूखंड पर भवन निर्माण से लेकर उसमें इस्तेमाल होने वाली चीजों के बारे में मार्गदर्शन करता है।
: इसके अलावा घर के मुख्य द्वार के सामने भूलकर भी कांटेदार पौधे नहीं लगे होने चाहिए और न ही आपके घर से ऊंचे वृक्ष होने चाहिए। ऐसा होने से आपके शत्रुओं में इजाफा होता है और आपकी तरक्की रुक जाती है। इसके अलावा परिवार में मतभेद होते हैं और सेहत भी बिगड़ी रहती है।
: यहीं नहीं मुख्य द्वार के सामने कभी भी ऐसे डस्टबिन न रखें कि आते-जाते आपकी नजर उस पर पड़े। इसके अलावा घर के सामने कूड़े का ढेर भी नहीं लगा होना चाहिए। यह कष्टदायी होता है और धन हानि को बढ़ावा देता है। इसके अलावा आपके घर के ठीक सामने यदि बिजली का खंबा होता है तो भी आपकी तरक्की में बाधा उत्पन्न होती है। ऐसा होने लक्ष्मी के आपके घर में प्रवेश में भी बाधा आती है।
: वास्तु के जानकारों के अनुसार अक्सर देखने में आता है कि लोग सजावट के लिए अपने घर के आगे बेल वाले पौधे लगा लेते हैं और बेल को घर के सबसे सामने की दीवार पर चढ़ा देते हैं। वास्तु में इसे दोष माना गया है।
इससे आपके शत्रुओं की संख्या बढ़ती है और विरोधी आपके खिलाफ साजिश रचने लगते हैं। माना जाता है कि घर के सामने की दीवार पर बेल चढ़ने से पड़ोसियों से भी खटपट रहती है और घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है।
: इसके साथ ही कई बार ऐसा भी देखा गया है कि सड़क निर्माण के बाद आपके मुख्य द्वार से ऊंची हो जाती है। ऐसी सड़क का होना बहुत ही कष्टदायी होता है। इसे एक बड़ा वास्तुदोष मान जाता है। यदि आपका मुख्य द्वार भी ऐसा हो गया है तो बेहतर होगा कि मरम्मत करवाकर इसे सही करवा लें और मुख्य द्वार को सड़क से ऊंचा करवा लें।