धर्म और अध्यात्म

प्रार्थना से दूर होंगे सारे कष्ट, ऐसे करें सच्चे मन से आराधना

सच्ची प्रार्थना यदि एक मिनट की भी की गई है तो वह भी काफी होगी।

Dec 06, 2017 / 02:37 pm

सुनील शर्मा

girl in meditation prayer

एक बार एक उच्च डिग्रीधारी डॉक्टर ने महात्मा गांधी से पूछा कि प्रार्थना का सबसे उत्तम तरीका क्या हो सकता है? बापू ने बहुत खूबसूरत जवाब दिया। उन्होंने कहा कि प्रार्थना में शब्द नहीं, भाव की अहमियत होती है। सच्ची प्रार्थना यदि एक मिनट के लिए भी की गई हो तो वह भी काफी होगी। ईश्वर को पाप न करने का वचन देना ही काफी है। मेरी राय में न्याय करना ही उत्तम प्रकार की प्रार्थना है। जो मनुष्य सबके साथ न्याय करने के लिए सच्चे दिल से तैयार होता है उसे दूसरी प्रार्थना करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। उतनी ही प्रार्थना से आशीर्वाद मिलेगा।
गलतियों की माफी जरूरी
प्रार्थना का अर्थ है अपने इष्ट से श्रद्धा भाव, आदरपूर्वक अपनी मन की बात कहना और अपनी गलतियों के लिए माफी मांगना है। मनुष्य के जीवन में प्रार्थना के क्षण बड़े ही कीमती होते हैं। प्रार्थना मनुष्य को विनम्र और शान्त बनने में सहायक होती है और यह माध्यम है जिसके द्वारा हम इस विश्व ब्रह्मांड की सर्व शक्तिमान सत्ता के साथ अपना एक संबंध जोडऩे का प्रयास करते हैं। इस दौरान हम इस बात का अनुभव करते हैं कि उस परमपिता की इच्छा के बिना हमारा जीवन एक पल भी नहीं चल सकता है।
दो घड़ी का स्मरण ही पर्याप्त
जो मनुष्य सच्चे हृदय से पूर्ण धैर्य और श्रद्धा के साथ ईश्वर की प्रार्थना करते हैं, उन्हें अपने जीवन में ईश्वर की पवित्र उपस्थिति अनुभव अवश्य होता है। जो लोग ईश्वर के अस्तित्व को सतत् अपने भीतर अनुभव करते हैं और सच्चाई व ईमानदारी से जीवन यापन करते हैं, उनके लिए कुछ क्षण ही प्रभु का स्मरण करना ही पर्याप्त है। जो केवल पाप कर्म ही करते हैं, उनके लिए तो प्रार्थना के 24 घंटे भी कम होंगे। बापू एक गहरी बात कहते थे कि हम साधारण वर्ग के मनुष्यों के लिए एक मध्य का मार्ग है प्रार्थना।
न तो हम ऐसे उन्नत हैं कि यह कह सकें कि हमारे सब कर्म ईश्वरार्पण है और न ही इतने गिरे हुए ही हैं कि केवल स्वार्थी जीवन ही बिताते हैं। प्रार्थना में मन की वृत्ति और भावों का ही महत्त्व होता है शब्दों का नहीं। फिर भी प्रार्थना अपनी मातृ भाषा में हो तो उसका असर ज्यादा होता है। उदाहरण के तौर पर अगर ‘राम’ शब्द के उच्चारण से जो असर हिन्दुओं पर होगा, वही असर ‘गॉड’ करने पर ईसाइयों पर और ‘अल्लाह’ कहने पर मुसलमानों पर होगा। कारण यह कि आस्था उसके जन्म के साथ ही उसके परिवार, समाज, देश व धर्म के साथ ही विकसित होने लगती है।

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