इन्द्रियों का काम है विषयों की ओर भागना। प्रत्येक इन्द्रिय के अपने विषय है। इन्द्रियां उन विषयों के प्रति आसक्त होती है। यह आसक्ति विवेक को समाप्त करती है। नेत्रेन्द्रिय सौन्दर्य की ओर आसक्त होता है तो कर्णेन्द्रिय सुरीले शब्दों की ओर, घ्राणेन्द्रिय सुगंध की ओर, रसनेन्द्रिय स्वाद की ओर, त्वगेन्द्रिय सुंदर स्पर्श की ओर। इन्द्रियों के वशीभूत होकर जिसने भी कर्म किए उनका पतन निश्चित हुआ है।
पतंगा अग्नि की ओर भागता है तो उसका हश्र उसके विनाश के रूप में होता है और भ्रमर पुष्प की ओर आकृष्ट होता है और पुष्पपराग के पान में इतना मदमस्त हो जाता है कि उसे कुछ भी ध्यान नहीं रहता और अन्त में रात्रि के समय पुष्प की पंखुड़ी बंद होने से कैद में पड़ा रहता है। कई ग्रंथों के अतिरिक्त भगवद् गीता में निष्काम कर्म के लिए इन्द्रिय निग्रह को आवश्यक माना गया है। प्राचीन संर्दभों में भी देखा जाए तो महर्षि पंतजलि ने भी सम्यक योग के लिए इन्द्रिय विजय पर बल दिया है।