सांस जब भीतर जा रही है तो उसे आखिरी बिंदु तक ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि भीतर एक जगह, एक टर्निंग पाइंट है, जहां से सांस वापस मुड़ जाती है बाहर निकलने के लिए। जब उस बिंदु को भीतर ही भीतर निरीक्षण करने का अभ्यास गहरा होगा और उस घड़ी आप सजग और होशपूर्ण रहेंगे तो स्पष्ट बोध होगा कि उस बिंदु या केंद्र पर सांस की वायु से कुछ तत्त्व अलग हो गया। वो शरीर के भीतर रह गया।
इस प्रकार निरंतर भीतर सांस का निरीक्षण करते-करते भीतर देखने की कला विकसित हो जाती है, जो ध्यान साधना के लिए परम आवश्यक है। ध्यान में गहराई और सुगम हो जाती है। सांस की वायु से प्राण तत्त्व कैसे अलग हो जाता है। इसे देखना और फिर इस प्राण तत्त्व को पीछे मेरुदंड के सहारे ऊपर की ओर दिशा देना (ऊर्ध्वगमन) ही प्राणायाम की कला है और ध्यान की कुंजी भी।