गणेश चतुर्थी-2017: इस बार 10 दिन नहीं, 11 दिन चलेगा गणेशोत्सव पर्व, जानिए कब होगा गणेश विसर्जन

हिन्दू धर्म में गणेशोत्सव का विशेष महत्व है। यह त्यौहार प्रति वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।

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सतना। हिन्दू धर्म में गणेशोत्सव का विशेष महत्व है। यह त्यौहार प्रति वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। भारत में सबसे ज्यादा इस पर्व का महाराष्ट्र और उसके आसपास के क्षेत्रों में महत्व है। हालांकि गणेश चतुर्थी का पर्व देशभर के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अगल ढंग से मनाया जाता है। ज्योतिषाचार्य हरिनारायण शास्त्री की मानें तो इस दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था।
इनको तीनों लोकों का स्वामी कहा जाता है। इसलिए भारत देश में सर्वप्रथम पूजाओं में सबसे पहले गणेश-लक्ष्मी की पूजा की जाती है। १० दिन चलने वाले उत्सव में श्रद्धालु अपने घर में गणेश की प्रतिमा स्थापित कर पूरे १० दिन श्रद्धा-भक्ति से पूजा करते है। इसके बाद आखिरी दिन यानि की अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है।
इस बार ये है खास
हरिनारायण शास्त्री ने बताया कि वर्षों बाद गणेश उत्सव पर्व १० दिन के बजाय ११ दिन का हो रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा क्योंकि इस वर्ष दो दशमी तिथि पड़ रही है। इस बार ३१ और १ सितंबर को दो दिन दशमी है। इसलिए गणेश उत्सव का पर्व २५ अगस्त के शुरू होकर ५ सिंतबर अंनत चतुर्दशी तक चलेगा। हर-दिन अलग-अलग भगवान का सिंगार किया जाएगा। फिर ११वें दिन हर्सोल्लास के साथ बप्पा का विसर्जन किया जाएगा।
इस दिन से करें शुभ कार्यों की शुरूआत
हिन्दू धर्म में गणेश चतुर्थी को शुभ मानते हुए ज्यादातर कार्यों की शुरूआत गणेश चतुर्थी की पूजा कर की जाती है। इसदिन से शुरु किया गया कार्य भक्तों को धन आदि से आगे लेकर जाता है। साल भर पडऩे वाली सभी चतुर्थियों में गणेश चतुर्थी सबसे अहम है। गणेशोत्सव के शुरुआती दिन ज्यादातर भक्त व्रत रखकर पूजा आरंभ करते है। व्रत रखने के कारण भगवान गणेश खुश होकर भक्तों को मनचाहा बर्दान देते है।
ये प्रचलित है कथा
मान्यता है कि पार्वती ने मिट्टी के गणेश बनाकर जीव डाल दिया था। इसके बाद पार्वती स्नान के लिए अंदर जाते समय गणेश को कहा कि कोई अंदन ना आने पाए। इसके कुछ देर बाद भगवान शंकर पहुंच गए तो गणेश ने अंदर जाने से रोक दिया। गणेश की बाद सुनकर शंकर जी क्रोधित हो गए और गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया। तुरंत दौड़ी आई माता पार्वती ने शंकर से अपने पुत्र गणेश की मांग की। शिव ने आनन-फानन में अपने गणों को जानवर का सिर लाने के लिए आदेश दिया। सबसे पहले सफेद हाथी का सिर मिला। जिसको शिव के पास लाया गया। भगवान ने सर को लगारक गजानन को पुन:जीवित कर दिया।
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