विधानसभा का राजनीतिक समीकरण
राजसमंद सीट पर पिछले तीन चुनावों से भाजपा का प्रभुत्व लगातार बढ़ा है। किरण माहेश्वरी के नेतृत्व में पार्टी का जनाधार लगातार बढ़ता गया। हालांकि उनके निधन के तत्काल बाद हुए नगर परिषद चुनाव में भाजपा ने 21 साल पुराना बोर्ड गंवा दिया है। यहां नेतृत्व का अभाव साफ दिखा। जिला संगठन में भी गुटबाजी-खेमेबाजी देखने को मिली। दूसरी तरफ कांग्रेस में गुटबाजी की दरारें कम दिखाई पड़ रही हैं। पार्टी ने निकाय चुनावों में एकजुट होकर प्रदर्शन किया, वहीं विधानसभा उपचुनाव के लिए भी कमर कसी है। टिकट को लेकर कांग्रेस से ज्यादा दावेदार भाजपा में हैं। राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस निकाय चुनाव में चली बयार को गांवों तक पहुंचाने में दम झोंक रही है, वहीं भाजपा अपने पुराने किले को बचाने के लिए कई बड़े नेताओं की दौड़ राजसमंद में लगवा चुकी है।
राजसमंद सीट पर पिछले तीन चुनावों से भाजपा का प्रभुत्व लगातार बढ़ा है। किरण माहेश्वरी के नेतृत्व में पार्टी का जनाधार लगातार बढ़ता गया। हालांकि उनके निधन के तत्काल बाद हुए नगर परिषद चुनाव में भाजपा ने 21 साल पुराना बोर्ड गंवा दिया है। यहां नेतृत्व का अभाव साफ दिखा। जिला संगठन में भी गुटबाजी-खेमेबाजी देखने को मिली। दूसरी तरफ कांग्रेस में गुटबाजी की दरारें कम दिखाई पड़ रही हैं। पार्टी ने निकाय चुनावों में एकजुट होकर प्रदर्शन किया, वहीं विधानसभा उपचुनाव के लिए भी कमर कसी है। टिकट को लेकर कांग्रेस से ज्यादा दावेदार भाजपा में हैं। राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस निकाय चुनाव में चली बयार को गांवों तक पहुंचाने में दम झोंक रही है, वहीं भाजपा अपने पुराने किले को बचाने के लिए कई बड़े नेताओं की दौड़ राजसमंद में लगवा चुकी है।
विधानसभा का इतिहास
इस सीट पर पहला चुनाव 1957 में हुआ था। पहले विधायक कांग्रेस के निरंजननाथ आचार्य बने। अब तक 14 बार चुनाव हुए हैं। इसमें से 7 बार कांग्रेस के विधायक चुने गए, जबकि 6 बार भारतीय जनता पार्टी और एक बार जनता पार्टी का कब्जा रहा। पिछले तीन चुनावों में लगातार भाजपा की किरण माहेश्वरी जीतीं। उनके निधन के कारण उपचुनाव हो रहा है।
इस सीट पर पहला चुनाव 1957 में हुआ था। पहले विधायक कांग्रेस के निरंजननाथ आचार्य बने। अब तक 14 बार चुनाव हुए हैं। इसमें से 7 बार कांग्रेस के विधायक चुने गए, जबकि 6 बार भारतीय जनता पार्टी और एक बार जनता पार्टी का कब्जा रहा। पिछले तीन चुनावों में लगातार भाजपा की किरण माहेश्वरी जीतीं। उनके निधन के कारण उपचुनाव हो रहा है।
विधानसभा का जातीय समीकरण
यूं तो इस सीट पर किसी भी एक जाति का प्रभाव नहीं है। यहां सभी जातियों का मिश्रण है। यही कारण है कि हर जाति-वर्ग के व्यक्ति को राजनीतिक दलों ने टिकट दिए और अलग-अलग जातियों से विधायक चुनकर आए। अधिकांशत : ब्राह्मण, अनुसूचित जाति व वैश्य समाज से विधायक बने। यहां अनुसूचित जाति वर्ग के सबसे ज्यादा तथा तेली समाज के सबसे कम वोटर हैं।
यूं तो इस सीट पर किसी भी एक जाति का प्रभाव नहीं है। यहां सभी जातियों का मिश्रण है। यही कारण है कि हर जाति-वर्ग के व्यक्ति को राजनीतिक दलों ने टिकट दिए और अलग-अलग जातियों से विधायक चुनकर आए। अधिकांशत : ब्राह्मण, अनुसूचित जाति व वैश्य समाज से विधायक बने। यहां अनुसूचित जाति वर्ग के सबसे ज्यादा तथा तेली समाज के सबसे कम वोटर हैं।
हार-जीत के फैक्टर संभावित
1. स्थानीयता का मुद्दा : इस बार यहां स्थानीय उम्मीदवार का मुद्दा जोर पकड़ रहा है। इस वजह से विधानसभा क्षेत्र के निवासी को ही टिकट देने का भाजपा-कांग्रेस पर दबाव है। पिछले दिनों यहां दावेदारों की जमीनी हकीकत जानने आए पर्यवेक्षकों ने भी संकेत दिया है कि टिकट इस बार स्थानीय उम्मीदवार को ही मिलेगा। ऐसे में कोई भी दल बाहरी प्रत्याशी को टिकट देने पर खतरा महसूस कर रहा है। यह सबसे बड़ा फैक्टर रहेगा।
2. सहानुभूति : भाजपा की मौजूदा विधायक किरण माहेश्वरी के निधन के बाद सहानुभूति की भी लहर है। ग्रामीण इलाकों में उनकी बेटी दीप्ति माहेश्वरी को प्रचार के दौरान देहाती मतदाताओं, खासकर महिलाओं से काफी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। इधर, भाजपा के ही दिवंगत पूर्व सांसद हरिओम सिंह राठौड़ के पुत्र कर्णवीर सिंह का नाम भी प्रबल दावेदारों में शामिल है। ऐसे में दोनों उम्मीदवारों के लिए सहानुभूति भी एक फैक्टर रहेगा।
3. विकास और वादे : तीसरा बड़ा फैक्टर विकास और वादों का रहेगा। कांग्रेस सरकार ने पिछले कुछ दिनों में उपचुनाव के मद्देनजर अरबों रुपए की विभिन्न परियोजनाओं की घोषणाएं की हैं, वहीं भाजपा का दावा है कि विधायक किरण माहेश्वरी के 12 साल के तीन कार्यकाल में शहर और ग्रामीण क्षेत्र में ऐतिहासिक काम हुए।
4. जातीय फैक्टर : इस सीट पर किसी एक जाति का प्रभाव नहीं है। ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य, ओबीसी, एससी-एसटी और अन्य जातियों का भी लगभग बराबर का हिस्सा है। नगर परिषद चुनाव में सभापति व जिला प्रमुख पद ओबीसी और राजसमंद प्रधान की सीट सामान्य वर्ग के खाते में गई।
1. स्थानीयता का मुद्दा : इस बार यहां स्थानीय उम्मीदवार का मुद्दा जोर पकड़ रहा है। इस वजह से विधानसभा क्षेत्र के निवासी को ही टिकट देने का भाजपा-कांग्रेस पर दबाव है। पिछले दिनों यहां दावेदारों की जमीनी हकीकत जानने आए पर्यवेक्षकों ने भी संकेत दिया है कि टिकट इस बार स्थानीय उम्मीदवार को ही मिलेगा। ऐसे में कोई भी दल बाहरी प्रत्याशी को टिकट देने पर खतरा महसूस कर रहा है। यह सबसे बड़ा फैक्टर रहेगा।
2. सहानुभूति : भाजपा की मौजूदा विधायक किरण माहेश्वरी के निधन के बाद सहानुभूति की भी लहर है। ग्रामीण इलाकों में उनकी बेटी दीप्ति माहेश्वरी को प्रचार के दौरान देहाती मतदाताओं, खासकर महिलाओं से काफी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। इधर, भाजपा के ही दिवंगत पूर्व सांसद हरिओम सिंह राठौड़ के पुत्र कर्णवीर सिंह का नाम भी प्रबल दावेदारों में शामिल है। ऐसे में दोनों उम्मीदवारों के लिए सहानुभूति भी एक फैक्टर रहेगा।
3. विकास और वादे : तीसरा बड़ा फैक्टर विकास और वादों का रहेगा। कांग्रेस सरकार ने पिछले कुछ दिनों में उपचुनाव के मद्देनजर अरबों रुपए की विभिन्न परियोजनाओं की घोषणाएं की हैं, वहीं भाजपा का दावा है कि विधायक किरण माहेश्वरी के 12 साल के तीन कार्यकाल में शहर और ग्रामीण क्षेत्र में ऐतिहासिक काम हुए।
4. जातीय फैक्टर : इस सीट पर किसी एक जाति का प्रभाव नहीं है। ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य, ओबीसी, एससी-एसटी और अन्य जातियों का भी लगभग बराबर का हिस्सा है। नगर परिषद चुनाव में सभापति व जिला प्रमुख पद ओबीसी और राजसमंद प्रधान की सीट सामान्य वर्ग के खाते में गई।
विधानसभा में मतदाताओं की संख्या
कुल मतदाता – 2,21,610
महिला मतदाता – 1,08,892
पुरुष मतदाता – 1,12,718
अन्य मतदाता – 00 इनके नाम चर्चाओं में
कांग्रेस – तनसुख बोहरा, महेशप्रताप सिंह, आशा पालीवाल, नारायण सिंह भाटी, वैभव गहलोत।
भाजपा – दीप्ति माहेश्वरी, कर्णवीर सिंह राठौड़, महेन्द्र कोठारी, जगदीश पालीवाल, गणेश पालीवाल, श्यामसुन्दर पालीवाल, प्रमोद सामर, नंदलाल सिंघवी, मानसिंह बारहठ।
कुल मतदाता – 2,21,610
महिला मतदाता – 1,08,892
पुरुष मतदाता – 1,12,718
अन्य मतदाता – 00 इनके नाम चर्चाओं में
कांग्रेस – तनसुख बोहरा, महेशप्रताप सिंह, आशा पालीवाल, नारायण सिंह भाटी, वैभव गहलोत।
भाजपा – दीप्ति माहेश्वरी, कर्णवीर सिंह राठौड़, महेन्द्र कोठारी, जगदीश पालीवाल, गणेश पालीवाल, श्यामसुन्दर पालीवाल, प्रमोद सामर, नंदलाल सिंघवी, मानसिंह बारहठ।
पिछला चुनाव एक नजर में
7 दिसम्बर, 2018 को हुआ था चुनाव, जिसमें ७५.८१त्न. मतदान हुआ था
11 दिसम्बर, 2018 को आया था परिणाम, जिसमें भाजपा की किरण माहेश्वरी ने 24623 मतों से जीत हासिल की थी
7 दिसम्बर, 2018 को हुआ था चुनाव, जिसमें ७५.८१त्न. मतदान हुआ था
11 दिसम्बर, 2018 को आया था परिणाम, जिसमें भाजपा की किरण माहेश्वरी ने 24623 मतों से जीत हासिल की थी
विधानसभा चुनाव- 2018
भाजपा को मत – 55.10 प्रतिशत
कांग्रेस को मत – 39.98 प्रतिशत माहेश्वरी निर्वाचन मामले में अगली सुनवाई 19 को
राजसमंद. विधानसभा सीट, राजसमंद पर 2018 में हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी किरण माहेश्वरी के नामांकन-पत्र में पूरी व सही जानकारी का उल्लेख नहीं करने को लेकर हाईकोर्ट में चल रहे प्रकरण में अगली सुनवाई 19 मार्च को होगी।
15 मार्च को भी इस प्रकरण को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान सभी पक्षों ने अपना-अपना पक्ष मजबूती से रखा। उच्च न्यायालय ने सुनवाई की अगली तारीख 19 मार्च तय की। सरकार की ओर से एडिशनल जनरल सुनील बेनीवाल ने पैरवी की।
गौरतलब है कि एडवोकेट जितेन्द्र खटीक ने माहेश्वरी के नामांकन में न्यायालय के विचाराधीन मामलों का हवाला नहीं देेने पर जनवरी, 2019 में चुनाव याचिका दायर की थी।
भाजपा को मत – 55.10 प्रतिशत
कांग्रेस को मत – 39.98 प्रतिशत माहेश्वरी निर्वाचन मामले में अगली सुनवाई 19 को
राजसमंद. विधानसभा सीट, राजसमंद पर 2018 में हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी किरण माहेश्वरी के नामांकन-पत्र में पूरी व सही जानकारी का उल्लेख नहीं करने को लेकर हाईकोर्ट में चल रहे प्रकरण में अगली सुनवाई 19 मार्च को होगी।
15 मार्च को भी इस प्रकरण को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान सभी पक्षों ने अपना-अपना पक्ष मजबूती से रखा। उच्च न्यायालय ने सुनवाई की अगली तारीख 19 मार्च तय की। सरकार की ओर से एडिशनल जनरल सुनील बेनीवाल ने पैरवी की।
गौरतलब है कि एडवोकेट जितेन्द्र खटीक ने माहेश्वरी के नामांकन में न्यायालय के विचाराधीन मामलों का हवाला नहीं देेने पर जनवरी, 2019 में चुनाव याचिका दायर की थी।