राजसमंद के गुमनाम स्वतन्त्रता सेनानी

– आज भी प्रेरणा देते हैं उनके साहसिक कारनामे

<p>राजसमंद के गुमनाम स्वतन्त्रता सेनानी</p>
सन् 1857 की क्रान्ति से भड़की आजादी की चिंगारी सन् 1942 तक महात्मा गांधी का नेतृत्व पाकर शोलों में बदल चुकी थी। सम्पूर्ण भारत में आजादी के दिवाने देश को आजाद कराने में एकजुट हो आंदोलन करने लगे थे। ऐसे में राजस्थान (राजपुताना) के क्षेत्र मेवाड़ में भी कई अज्ञात और नामी गिरामी स्वतंत्रता सेनानियों ने जाति, धर्म और वर्ग भेद मिटा कर देश को आजाद कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। मेवाड़ के इस छोटे से क्षेत्र राजसमन्द में भी कई गुमनाम स्वतन्त्रता सेनानियों के बारे में लोककथाओं व कथाओं व विगतवार पीढ़ी दर पीढ़ी बुजुर्गों से सुनने को मिल जाता है। जहां तक ऐतिहासिक पन्नों को पलटा जाए तो राजसमन्द जिले में 33 के लगभग स्वतंत्रता सेनानियों का उल्लेख मिलता है, जिनमें दो स्वतंत्रता सेनानी आज भी आशीर्वाद देते हुए आजाद मुल्क में आजादी की सांस ले रहे हैं, पर कुछ ऐसे गुमनाम स्वतन्त्रता सेनानी भी थे जो इतिहास के पन्नों में भले ही अपना स्थान न बना पाए हो पर जन मानस में आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी गाए भी जाते हैं और उनके पराक्रम के किस्से कहानियां के रूप में सुने-सुनाए भी जाते हैं।
बुजुर्गों के सुनाए वर्णन के आधार पर और कुछ स्वतंत्रता सेनानियों की किताबों में उल्लेखित वर्णन के आधार पर आज हम राजसमन्द के कुछ ऐसे ही स्वतन्त्रता सेनानियों को याद करते हैं।

रावत जोधसिंह (कोठारिया)
सन् 1857 की क्रांति के महान योद्धा तात्या टोपे अपने पराक्रम और वीरता के लिए इतिहास में जाने पहचाने जाते हैं। अपने अज्ञात वास के दौरान तात्या टोपे बचते बचाते जब मेवाड़ में आए तो राजसमन्द के कोठारिया के रावत जोधसिंह जी ने उनकी आवाभगत और मेहमाननवाजी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। उन्हें कोठारिया के ही नजदीक रकमगढ़ की हवेली में सुरक्षा प्रदान की। उनकी सुरक्षा का हर तरह से ख्याल रखा पर अंग्रेज हुकुमत को अपने गुप्तचरों से तात्या टोपे के ठिकाने का पता चल गया और अंग्रेज बटालियन ने रकमगढ़ पर धावा बोल दिया, पर जोधसिंह ने ऐसे समय अपनी सैन्य सहायता तात्या टोपे को प्रदान की।
रामसिंह राठौड़ (केलवा)
स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में बारहट केसरसिंह व विजयसिंह पथिक क्रांतिकारी नेता के रूप में उभर कर पूरे राजपुताना में छाए हुए थे। अंग्रेज हुकुमत के लिए वे बहुत बड़ा खतरा बन चुके थे। अंग्रेज सरकार इन्हें गिरफ्तार कर जेल में डालना चाहती थी पर वे अज्ञातवास पर निकल गए। अरावली पर्वत मालाओं में घूमते-घूमाते ये दोनों देशभक्त अलग-अलग समय पर केलवा ठिकाने पर आए। यहां रामसिंह राठौड़ से मिलने पर उन्हें अपनेपन का अहसास हुआ। वे कई समय तक केलवा में शरण पाकर अपने अज्ञातवास के दिन गुजारते रहे। इसी दौरान वे कभी-कभी ठिकाना मोही गोविन्दसिंह भाटी व उनके पिता के पास भी आते जाते रहे और अपना समय क्रांतिकारी गतिविधियों में लगाते रहे।
शंकर भारती (राजनगर)
महान क्रांतिकारी सरदार पृथ्वीसिंह जिन पर अंग्रेज सरकार का सख्त वारन्ट था और वे कई बार अंग्रेज सैनिकों की आंखों में धूल झोंक भाग निकले थे, वे भी राजसमन्द की अरावली पर्वतमालाओं में अपना अज्ञातवास काट रहे थे। निर्झरना की घाटियों व बगदड़ की नाल में अपना ठिकाना बनाए हुए थे। अचानक वे एक दिन नौचोकी की पाल पर स्थित गेवरमाता के मन्दिर में साधु के रूप में आकर रहने लगे और धीर-धीरे यहां के आन्दोलनकारियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर देवेन्द्र कर्णावट और शंकर भारती से अपना सम्पर्क साधा। आन्दोलन की गतिविधियों के बारे में पूरे देश की जानकारियां इन दोनों से लेने लगे और अपनी जानकारी अपने साथियों तक इन्हीं के द्वारा पहुंचाने लगे। शंकर भारती पृथ्वीसिंह का हर तरह से ख्याल रखते। उनके खाने पहनने से लगाकर हर सुख सुविधा का वे ध्यान रखते, पर आखिर एक दिन अंग्रेज हुकुमत ने शंका के आधार पर एक सैनिक टुकड़ी के साथ नौचोकी की पाल पर गेवरमाता मन्दिर में दबिश दे दी, पर पृथ्वीसिंह को इसकी भनक लगते ही वे राजसमन्द तालाब में कूद पड़े और तैरते हुए भाणा की ओर से सैनिकों को चकमा दे अरावली पर्वतमालाओं में गुम हो गए।
सिकन्दर खान (राजनगर)
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान स्व. देवेन्द्र कुमार कर्णावट आंदोलन से जुड़ी खबरों से जनता को अवगत कराने के लिए एक हस्त लिखित भित्ति पत्रिका (अखबार) निकाला करते थे, जो उस काल में देशद्रोह की श्रेणी में आता था। पर आजादी के दिवाने कहां ऐसी बातों की परवा किया करते थे। उस भित्ति पत्रिका को चुपचाप तरीके से गुप-चुप रातों रात गांव के मुख्य मुख्य जगहों परचस्पा करने का काम सिकन्दर खान विभिन्न वेषभूषाएं धारण कर अपनी पहचान छुपाते हुए किया करते थे। लोग सुबह उठ कर उसे पढ़ते। कुछ आधा तो कुछ पूरा और अंग्रेज सिपाही आते और भिति पत्रिका को निकालते और उसे थाने में ले जाते और धर पकड़ के लिए दौड़ पड़ते। एक बार दाणी चबूतरा पर भिति पत्रिका चस्पा करते स्व. सिकन्दर खान की पुलिस से मुठभेड़ हो गई पर वे पुलिस को चख्मा दे भाग निकले।
शंकरदेव भारतीय (कांकरोली)
मोहल्लों में जाकर देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का आह्वान लोगों से किया करते। शंकरदेव भारतीय नौजवान बच्चों के हाथों में तिरंगा थमा कर भारत माता की जय के नारे लगवाते। वन्दे मातरम् के नारों से पूरा वातावरण राष्ट्रभक्ति का हो उठता था। किशोर बालकों से कसरत करवाते। खेल खेल में उन्हें देश भक्ति का पाठ पढ़ाया करते। आजादी की रूपरेखा व महात्मा गांधी के आह्वान से लोगों को अवगत कराते, आजादी की लड़ाई में निकाले जाने वाले जुलूसों और सभाओं में बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे। प्रान्त के कई क्रान्तिकारी नेताओं से उनके घनिष्ठ सम्बन्ध थे।
नारायण नारायण (कांकरोली)
वे एक खुद्दार क्रान्तिकारी नेता के रूप में जाने जाते थे। भारत के कई क्रान्तिकारी नेताओं से उनके आत्मीय सम्बन्ध थे। वे अकेले ही बिना किसी को बताए उनसे मिलने चले जाया करते थे और जब वे लौटकर आते तो आसपास के गांव में जाकर लोगों में जाग्रति पैदा किया करते थे। वे एक गांव से दूसरे गांव आजादी की मशाल लिए लोगों में आजादी प्राप्त करने का जज्बा पैदा किया करते थे। वे गांधी जी से बहुत ही प्रभावित थे। एक बार वे गांधी आश्रम वृद्धा में गांधीजी से मिलने पहुंच गए और कई दिनों तक वहां रह कर उन्होंने जल सेवा की लोगों को पाली पिलाने का काम किया।
आनन्दीलाल (कांकरोली)
देश की आजादी में जलुसों व सभाओं में बढ़चढ़ कर भाग लेने वाले आनन्दीलाल गोरवा अपने बचपन के साथियों के साथ कई ऐसे कार्यक्रमों मेें भाग लेने जाते, जहां देश भक्ति का पाठ पढ़ाया जाता था। वे एक अच्छे कवि के साथ ही एक ओजस्वी वक्ता भी थे। स्वतंत्रता आन्दोलन में होनेवाली सभाओं में अपने ओजस्वी भाषण व कविताओं से समा बान्ध दिया करते थे। स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान उन्होंने कई प्रान्तीय नेताओं से घनिष्ठ सम्बन्ध थे और उनकी कई बातों को अक्षरत: पालन किया करते थे। उनका कवि मन कई देश भक्ति की कविताओं से ओतप्रोत था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी आपने सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। नरेन्द्रपाल सिंह चौधरी एवं रामचन्द्र बागोरा उनके प्रेरक के रूप में हमेशा जहन में रहा करते थे। राजस्थान बृजभाषा साहित्य अकादमी में आपकी कविताओं पर आपको सम्मानित भी किया।
गिरधारीलाल चौधरी (कांकरोली)
एक मस्तमोला गुमनाम स्वतन्त्रता सेनानी थे गिरधारीलाल चौधरी। जब भी किसी से मिलते तो नमस्ते नहीं करते, बस जोर से जय हिन्द कहते थे। सभी अपने परायों को देश आजाद कराने में सहयोग करने का आह्वान किया करते थे। हर छोटी बड़ी सभाओं और जुलूस में शरीक होते। महात्मा गांधी से बेहद प्रभावी थे वे गांधीजी से भाषणों के बारे में अपने वरिष्ठ लोगों से जानकारी प्राप्त किया करते और फिर उसी जानकारी को अन्य लोगों तक पहुंचाने तक का कार्य वे बड़े गर्व और तत्परता से किया करते थे। जब देश आजाद हो गया तो लोग कहते हैं कि वे इतने खुश हुए और खुशी में मस्त हो गए कि तीन दिनों तक घर पर भी नहीं आए। बस गांव-गांव जाकर लोगों को आजादी की बधाइयां बांटते रहे।
कई और भी थे
कई और भी राजसमन्द जिले के ऐसे स्वतन्त्रता सैनानी हैं जिनमें कांकरोली के देवीलाल गोरवा, श्यामलाल वर्मा, विचित्र कवि काका, राजनगर से किशनलाल खत्री, सुन्दरलाल कावडिय़ा, दामोदर यादव, हीरालाल रेगर, आमेट से अम्बालाल वैद्य, मोहनलाल कोठारी, देवगढ़ से उदयलाल, पिरू भाई, चुन्नीलाल, डॉ. बूलचन्द, मोही से मानूराम रेगर, पन्नालाल पीयूष, लक्ष्मीलाल वर्मा, कुम्भलगढ़ इन्द्रलाल वैद्य, हीरालाल देवपुरा, रेलमगरा से भी कई नौजवान साथी बनेडिय़ा के ठिकाने के ठाकुर के सान्निध्य में इस स्वतन्त्रता आन्दोलन से जुड़े रहे।
– अफजल खां अफजल, कांकरोली
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