राजगढ़। राजस्थान के हड़ोती प्रदेश और मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के मुहाने पर बसे राजगढ़ नगर का इतिहास काफी पुराना है। पहले भील और बाद में उमठ परमार वंश की राजधानी रहे राजगढ़ नगर को शीध्र ऎतिहासिक नगरी के रूप में पहचान मिल सकती है। दरअसल यहां राजशाही काल के समय बनी कुछ छत्रियों को काफी प्रयास के बाद पुरातत्तव विभाग द्वारा सरंक्षित धरोहरों की श्रेणी में शामिल किया गया है। जिसके बाद शासन स्तर से इनके सरंक्षण के साथ ही सुरक्षा की व्याप्क प्रयास होने लगेंगे।
उल्लेखनीय है की तत्कालीन राजवंश द्वारा नगर के बांसवाड़ा क्षेत्र में संगमरमर और कीमती पत्थरों से तैयार छत्रियों में बेहद सुंदर कलाकृतियों सहित शानदार वास्तुकला का का उपयोग किया गया है। राजवंश के सदस्यों की याद में बनाए गई ये छत्रियां देखरेख के आभाव में लगातार खंडहर होती जा रही थी।
हालत यह थी की पुरात्तातिवक महत्व की इन छत्रियों की मरम्मत तो दूर नियमित साफ सफाई नहीं होने के कारण अधिकांश छत्रियां कचरे के ढेर और जंगली झाडियों में दबी हुई है। सुरक्षित नहीं होने के चलते आसपास के लोगो ने इन छत्रियों पर अतिक्रमण भी जमा लिया है। यहां पूरे दिन असामजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है। जो यहां अनेतिक कार्य तो करते ही रहते है। साथ ही छत्रियों की कीमती पत्थरों को भी नुकसान पहुंचाते रहते है।
लंबे प्रयासों के बाद हुईं सरंक्षित काफी दिन तक चले सर्वे के बाद अब जाकर पुरातत्तव विभाग ने इन छत्रियों को सरंक्षित क्षेत्र घोषित किया है। राजगढ़ पुरातत्व विभाग के उपसंग्राहलय प्रभारी जीपीएस चौहान के अनुसार क पुरातत्व विभाग के सरंक्षित धरोहार में शामिल होने लिए किसी भी निर्माण को कम स कम सौ साल पुराना होना आवश्यक है। ऎसे में बीते दो साल में संग्राहलय के संबंध में जरूरी जानकारी एकत्रित कर इसे पुरातत्व विभाग को भेजा गया था। इसके बाद बांसवाड़ा में बनी छत्रियों को विभाग ने सरंक्षित धरोहर की श्रेणी में शामिल किया है। जिसके बाद अब यहां गार्ड की नियुक्ती और छत्रियों के आसपास बाउंड्रीवाल का निर्माण शीध्र किया जाएागा। छत्रियों पर होने वाले अन्य कार्यो के लिए पुरातत्तव विभाग भोपाल के इंजीनियर जल्द ही राजगढ़ आने वाले है। वे इस जगह का निरिक्षण कर यहां होने वाले कार्ये की रूपरेखा और इस्टिमेट बनाएगें और इसके बाद शासन से प्राप्त होने वाली राशि से छत्रियों के सरंक्षण का कार्य çकिया जाएगा।
ये धरोहरें पूर्व में सरंक्षित राजगढ़ नगर की छत्रियों के अलावा जिले की कई अन्य धरोहरों को पूर्व में ही पुरातत्व विभाग ने सरंक्षित श्रेणी में शामिल कर लिया है। जहां इन धरोहरो को सरंक्षित और सुरक्षित करने के कार्य किए जा रहे है। इनमें सारंगपुर के रानी रूपमति के मकबरे सहित अन्य चार मकबरे, माचलपुर के छनियारी पनियारी के मंदिर, नरसिंहगढ़ के सांका श्याम जी का मंदिर सहित अन्य पांच इमारते और राजगढ़ की मोर पीपली, लालगढ़ और सेमली जागीर की बावड़ी शामिल है।
बड़े श्रीनाथ मंदिर को नहीं मिल सका स्थान अपनी विशाल और विशेष निर्माण के चलते जिले सहित पूरे प्रदेश में विशेष पहचान रखने वाले एतिहासिक बड़े श्रीनाथ मंदिर को पुरातत्तव विभाग की धरोहर में शामिल नहीं किया गया है। अपने निर्माण के 104 वर्ष पूर्ण कर चुके इस मंदिर की रंगाई पुताई सौ वर्ष पूर्ण होने पर मंदिर समिति द्वारा करवाई गई थी। पुरातत्तव विभाग के नियमों अनुसार किसी भी एतिहासिक धरोहर के जीर्णोघार संबंधी कार्य हो जाने पर इसे उनकी सरंक्षित श्रेणी में लेना संभंव नहीं हो पाता। इसमें इस मंदिर को अभी सरंक्षित धरोहर बनने में और समय लगेगा।
राजगढ़ के बांसवाड़ा में बनी छत्रियों को सरंक्षित इमारतों में शामिल करने की प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है। शीघ्र ही यहां सरंक्षण के कार्य शुरू कर दिए जाएंगे। जीपीएस चौहान संग्रहालय प्रभारी राजगढ़