सुरक्षित रहना है तो मानकर चलिए की सामने वाले को कोरोना है, लगभग 50 प्रतिशत लोगों में नहीं दिखता लक्षण

बावजूद इसके लापरवाही थमने का नाम नहीं ले रही। बिना मॉस्क के लोग सड़कों पर घूम रहे हैं। परिवार के साथ गाडिय़ों में निकल रहे हैं। बच्चों को गुपचुप खिलाने ले जा रहे हैं। जमकर खरीददारी कर रहे हैं। आखिर क्यों? कुछ दिन रूक जाएं…।

<p>सुरक्षित रहना है तो मानकर चलिए की सामने वाले को कोरोना है, लापरवाही के कारण गली-गली पैर पसार चूका है संक्रमण</p>

रायपुर. दुनियाभर में लाखों लोगों की जान ले चुका कोरोना वायरस पूरे भारत में फैल चुका है। छत्तीसगढ़ जो 14 मई तक खुद को सुरक्षित मान कर चल रहा था, आज उसके 23 जिलों में संक्रमित मरीज मिल चुके हैं। एक-दो नहीं, आंकड़े दहाई में तो बिलासपुर और कोरबा तिहाई में पहुंचने जा रहे हैं। बावजूद इसके लापरवाही थमने का नाम नहीं ले रही।

बिना मॉस्क के लोग सड़कों पर घूम रहे हैं। परिवार के साथ गाडिय़ों में निकल रहे हैं। बच्चों को गुपचुप खिलाने ले जा रहे हैं। जमकर खरीददारी कर रहे हैं। आखिर क्यों? कुछ दिन रूक जाएं…। और अगर आपको कोरोना से बचना है तो यह मानकर चलना होगा कि सामने वाला कोरोना संक्रमित है। इसलिए वैसे ही एहतियात बरतें जैंसे लॉकडाउन 1.0 में बरत रहे थे।

सोचिए, जब पहली मरीज मिली थी तो प्रदेश डर गया था

याद कीजिए 18 मार्च 2020 की वह तारीख जब लंदन से लौटी 23 वर्षीय समता कॉलोनी रायपुर निवासी युवती कोरोना संक्रमित पाई गई थी। उस वक्त आप-हम सब डर गए थे। दुकानदारों ने खुद-व-खुद समता कॉलोनी की दुकानें बंद कर दी थी। लोगों ने घरों से निकलना बंद कर दिया था। प्रदेश डर गया था। प्रतिक्रिया आनी शुरू हो चुकी थी कि विदेश में रहने वालों को न आने दिया जाए। तब हर व्यक्ति मास्क लगाने लगा था। तो आज क्या हुआ, जब आंकड़ा एक हजार पहुंचने वाला है? क्या हम इस भ्रम में हैं कि कोरोना जीत गया या हम अपनी आदत नहीं बदलेंगे।

आखिर कहां हो रही है चूक

लॉकडॉउन 1.0 में- केंद्र सरकार ने समूचे देश में लॉकडाउन बन लागू किया, क्यों? ताकि जो जहां है वही रहे। एक-दूसरे के संपर्क में न आए। आप घरों में तो घर पर रहें, रिश्तेदारों के यहां हैं तो वहीं रहें, छात्र परदेश में हैं तो वहीं रहें। क्योंकि आप महफूज रहें। हर दौरान सबने पूरा साथ दिया। हर नियम का पालन किया। देश में जनता कफ्र्यू लग गया। फिर लॉकडाउन 2.0, 3.0 और 4.0 आए और समय के साथ परिस्थितियां बदलने लगीं। आर्थिक हालात को सुधारने के लिए कुछ रियायतें मिलने लगीं। मगर, आज इन्हें शर्तों का, नियमों का पालन नहीं हो रहा है।

मगर, हम क्या भूल गए?

हम बाजारों में टूट पड़े, बेवजह सड़कों पर निकल पड़े, दुकानों में जाने लगे, खुलकर खरीददारी करने लगे, नाते-रिश्तेदारों के यहां आने-जाने लगे। हम भूल गए कि कोरोना जिंदा है।

– पहले 100 प्रतिशत लोग मास्क लगाते थे, मगर महीनेभर के अंदर-अंदर संख्या घट गई। मॉस्क लगाना बंद कर दिया। खरीदार मॉस्क नहीं लगा रहा तो दुकानदारों भी मॉस्क नहीं लगा रहे।
– सेनिटाइजर से हाथ साफ करना बंद कर दिया, साबून से भी हाथ नहीं धो रहे।

– घर में जाकर अब सीधे अपनों से मिलना-जुलना शुरू हो गया है। ये भूल गए कि घरों में बुजुर्ग हैं और बच्चे हैं। जिन्हें वायरस से बचाना है।
– बाहर घंटों घूमने के बाद घर जाकर अब बहुत कम लोग होंगे जो कपड़े बदलते होंगे। पैर-हाथ धोते होंगे। नहाते होंगे।

– सोशल डिस्टिेंसिंग तो छोडि़ए, फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करना भूल गए। दुकानों के बाहर बनाए गए गोलाकार निशान भी मिट गए। दोबारा नहीं बनाए।

विशेषज्ञों, डॉक्टरों की तो सुनिए

यह पहले से सभी को पता था कि संख्या बढऩी है। मगर, इसमें सबसे अहम है कि हम कितने सतर्क हैं। आपको निश्चित तौर पर यह मानना होगा कि आपसे जो मिल रहा है वो संक्रमित है। आप लापरवाह तो हो सकते हैं, वायरस नहीं।

-डॉ. स्मित श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष, कॉर्डियोलॉजिस्ट, एडवांस कॉर्डियक इंस्टीट्यूट रायपुर

लॉक-डाउन 1.0 और 2.0 में लोग कोरोना से भयभीत थे। मतलब, सावधानी बरत रहे थे। मगर, अब लापरवाह हो गए हैं। मैं स्पष्ट कर दूं कि यह लापरवाही भारी पड़ सकती है। आखिर,कब तक कौन समझाएगा। हमें हर हाल में पहले जैसी ही सतर्कता व सावधानी बरतनी ही चाहिए।

-डॉ. अजॉय बेहरा, नोडल अधिकारी, कोरोना कंट्रोल, एम्स रायपुर

मैं स्वास्थ्यकर्मियों की बात करूं तो हर एक को कोरोना की रोकथाम का प्रशिक्षण दिलवाया गया है। जब केस बढ़ रहे हैं, केस बढऩे की वजह क्या हैं, ये बताई जा रही हैं तो हर व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह नियमों का पालन करे।

-डॉ. विनीत जैन, अधीक्षक, डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल रायपुर

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