Climate Change Effect: पहले कम बारिश ने फसल सुखा डाली, रही सही कसर ज्यादा पानी ने निकाली

Climate Change Effect: विज्ञान की इतनी तरक्की उस वक्त नाकाफी नजर आती है जब बात खेती-किसानी की होने लगती है। जलवायु परिवर्तन के कारण कभी भारी बारिश, तो कहीं सूखे जैसे हालात, तो कहीं बेमौसम बरसात।

<p>Rain Alert, Heavy Rain&#8230;.हाड़ौती के किसानों को एक ही रात में 500 करोड़ का नुकसान</p>
रायपुर. Climate Change Effect: विज्ञान की इतनी तरक्की उस वक्त नाकाफी नजर आती है जब बात खेती-किसानी की होने लगती है। जलवायु परिवर्तन के कारण कभी भारी बारिश (Heavy Rain), तो कहीं सूखे जैसे हालात, तो कहीं बेमौसम बरसात। हर बदलाव के निशाने पर रहती है खेती। ऐसे में किसानों की किस्मत है कि वे खुद इस बदलाव का अनुमान लगा लें या इसकी सटीक जानकारी कृषि वैज्ञानिक और मौसम विभाग (IMD Report) से मिल जाए, वरना फसलों को भारी नुकसान होना तय है।
प्रदेश में इस साल यही हुआ। अच्छी बारिश का अनुमान था। जून में मानसून (Monsoon) सही समय पर आ भी गया, बारिश भी बढ़िया हुई, जुलाई और अगस्त में कम बरसात ने किसानों से लेकर राज्य सरकार तक के माथे पर बल डाल दिया। सरकार को सूखे का सर्वे करवाना पड़ा। यहां मौसम ने फिर रंग बदला और सितंबर में औसत से 110 मिमी ज्यादा बारिश से फसलों को काफी नुकसान हुआ।
जानकारों के मुताबिक आने वाले समय में क्लाइमेंट चेंज का प्रभाव (Climate Change Effect) और बढ़ेगा। कृषि चक्र में भी परिवर्तन संभव है, मगर इसके लिए आने वाले 2-3 सालों के मौसम का अध्ययन जरूरी है। उधर, किसानों की माने तो उनका भविष्य मौसम पर ही निर्भर है। फसल के अनुकूल मौसम रहा तो ठीक, नहीं रहा तो नुकसान तय है।

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इन राज्यों में जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर- छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, असम, मिजोरम, ओडिशा, अरूणाचल प्रदेश और प.बंगाल में।

सही साबित हो रही है जर्मनी की रिपोर्ट

अप्रैल 2021 में जर्मनी की पोट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल बढ़ रहे तापमान के चलते छत्तीसगढ़ समेत मध्य और पूर्वी भारत के 8 राज्यों में जलवायु परिवर्तन (Climate change) का खतरा सबसे अधिक है। वन क्षेत्र में कमी इसका प्रमुख कारण है। स्टडी के मुताबिक मानसून अनियमित और ताकतवर होगा। यही हुआ भी।

डॉप्लर रेडॉर के बिना 100 प्रतिशत सटीक पूर्वानुमान मुमकिन नहीं
किसानों को मौसम की सटीक जानकारी मिले, ताकि फसलों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। इसके लिए डॉप्लर रेडार जरूरी है। जो राज्य के मौसम विज्ञान विभाग के पास नहीं है। अभी भी पूर्वानुमान के लिए नागपुर और विशाखापट्टनम की रिपोर्ट पर निर्भर रहना पड़ता है।

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कृषि विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जीके दास ने कहा, छत्तीसगढ़ में धान की सर्वाधिक पैदावार होती है। किसान इसलिए भी धान लगाते हैं क्योंकि शासन की योजनाओं का लाभ मिलता है। पिछले 5 साल से धान की पैदावार बढ़ ही रही है, इस बार भी 100 लाख मीट्रिक टन तक पहुंचने का अनुमान है। अधिक बारिश या बारिश न होने से बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। हां, क्लाइमेट चेंज हो रहा है। मौसम की सटीक जानकारी के लिए डॉप्लर रेडॉर जरूरी है। जो राज्य में नहीं है।
रायपुर लालपुर मौसम विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ मौसम विज्ञानी एचपी चंद्रा ने कहा, क्लाइमेंट चेंज की वजह से अनियमित बारिश रिपोर्ट हुई है। भविष्य को देखते हुए जल प्रबंधन पर खासा ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि अगर बरसात नहीं हुई या कम हुई, जैसे इस बार जुलाई और अगस्त में हुआ तो फसलों को पानी की जरुरत पड़ेगी। तब जमा किया गया, या भू-जल काम आएगा। आने वाले सालों में क्लाइमेंट चेंज का और अधिक प्रभाव देखने को मिलेगा।
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