परंपरा से जुड़ा है मसला
बाद में ‘पत्रिका’ से बातचीत में मंत्री लखमा ने कहा कि बलि आदिवासियों की आस्था और परंपरा से जुड़ा हुआ मसला है। बस्तर का ग्रामीण देवगुड़ी में रोज बलि देता है, चाहे वह मुर्गी और अंडे की ही क्यों न हो। उन्होंने कहा कि देवी को मानने (Chhattisgarh Congress minister) और उपासना करने में सबसे प्रमुख आदिवासी ही हैं। हमारे यहां दंतेश्वरी माता को बलि चढ़ाई जाती है। दशहरे के दिन बलि दी जाती है।
शहरी लोगों को इससे पेटदर्द नहीं होना चाहिए
बस्तर दशहरा में खूंटा गाडऩे से लेकर हर रस्म में बलि दी जाती है। उन्होंने कहा कि यह आदिवासियों की आस्था से जुड़ा हुआ मसला है, शहरी लोगों को इससे पेटदर्द नहीं होना चाहिए। आबकारी मंत्री ने कहा कि यह बस्तर के लोग तय करेंगे कि कोरसागुड़ा में भैंस की बलि फिर से शुरू की जाए अथवा उसे हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि इसपर समाजजनों से चर्चा के बाद फैसला होगा।