दिवाकमाता मंदिर में चढ़ाई जाती है बेडिय़ां
नवरात्र: जंगल से नहीं काटे जाते है पेड़
<p>दिवाकमाता मंदिर में चढ़ाई जाती है बेडिय़ां</p>
प्रतापगढ़. नवरात्र के दौरान श्रद्धालु मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग जतन करते है। नारियल, सिन्दूर, मेंहदी, चूडिय़ां, बिंदी, वस्त्र चढ़ाए जाते है। लेकिन एक ऐसा मंदिर भी है जहां देवी को हथकडिय़ां और बेडिय़ां चढ़ाई जाती है। मंदिर के प्रांगण में गड़े त्रिशूल में कई हथकडिय़ा चढ़ी है, जो सालो पुरानी है। इसके पीछे भी लोक मान्यता है। जोलर ग्र्राम पंचायत में स्थित दिवाक माताजी का प्राचीन मंदिर ऊं ची पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर के चारों तरफ घना जंगल है। छोटी बडी पहाडिय़ों और ऊं ची नीची जगहों को पार कर पैदल ही यहा पंहुचा जा सकता है। मंदिर के प्रति श्रद्धा के चलते इस इलाके में कोई पेड़ नहीं काटे जाते है। माताजी की ख्याति दूर दराज तक है। यहां हर साल शारदीय और चैत्र नवरात्र में जोत जलती है। जमीन से 100 मीटर उपर पहाड पर माताजी विराजमान है। इस पहाड़ के चारों ओर घनघोर जंगल है। यहां की अनोखी लोक मान्यता है। प्राचीन समय में मालवा-मेवाड़ में डाकुओं का बोलबाला था। कहा जाता इस देवी की पूजा सबसे डाकुओं ने ही शुरू की थी। बताया जाता है, यहां वर्षों पहले दूर-दूर तक जंगल हुआ करता था। उस वक्त यहां डाकू रहा करते थे और वे ही देवी मां कू पूजा करते थे। जेल और कोर्ट-कचहरी के चक्कर से छूटने पर यहां बेडिय़ां चढ़ाई जाती है। यहां आकर मां को हथकड़ी और बेडिय़ां चढ़ाते हैं और मां से कानून कार्रवाई से मुक्ति के लिए अर्जी लगाते हैं। बताया जाता है यहां लगभग दो सौ साल पुरान एक त्रिशुल है, श्रद्धालु उसी त्रिशुल पर हथकड़ी और बेडियां चढ़ाते हैं। श्रद्धालु कहते हैं कि जो भी यहां आया, वह खाली हाथ नहीं लौटा है। यहां आकर मां को हथकड़ी और बेडिय़ां चढ़ाते हैं और मां से कानून कार्रवाई से मुक्ति के लिए अर्जी लगाते हैं। बताया जाता है यहां लगभग दो सौ साल पुरान एक त्रिशुल है, श्रद्धालु उसी त्रिशुल पर हथकड़ी और बेडियां चढ़ाते हैं। श्रद्धालु कहते हैं कि जो भी यहां आया, वह खाली हाथ नहीं लौटा है।