उत्तराखंड में बहुत ही नाजुक है सियासत, एक ही सीएम कर सका कार्यकाल पूरा अब तक

कई दिनों से जारी अटकलों के बाद उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिया इस्तीफा।
वर्ष 2000 में अस्तित्व में आने के बाद से उत्तराखंड में अब तक आठ मुख्यमंत्री चुने गए।
केवल नाराणय दत्त तिवारी के अलावा बाकी कोई भी पूरा नहीं कर सका अपना कार्यकाल।

<p>Uttarakhand political instability sees short tenure of 8 CMs in 20 years </p>
नई दिल्ली। पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के बाद से यहां पर राजनीतिक अस्थिरता लगातार जारी रही है। आलम यह है कि मंगलवार को उत्तराखंड के आठवें मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफा देने के साथ ही एक बार फिर से यहां की सत्ता की कहानी सामने आई है। दरअसल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पर्यवेक्षकों की एक टीम ने रावत के प्रदर्शन का आंकलन किया और इसके बाद यह घटनाक्रम देखने को मिला।
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हालांकि रावत का इस्तीफा ऐसे वक्त में सामने आया है जब उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होने में एक साल बचा हुआ है। इस घटनाक्रम ने इस बात को एक बार फिर से साबित किया है कि 20 वर्ष अस्तित्व में आए इस प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता अभी तक बनी हुई है और वर्ष 2000 से अब तक यहां आठ मुख्यमंत्री बन चुके हैं।
आलम यह है उत्तराखंड में वर्ष 2002 से लेकर 2007 तक सत्ता संभालने वाले केवल नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर कोई भी अन्य मुख्यमंत्री अपनेन पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। उत्तराखंड के सीएम की कुर्सी पर अब तक काबिज हुए आठ में से पांच मुख्यमंत्री भाजपा के रहे हैं। इनमें 2000 से 2001 तक नित्यानंद स्वामी और 2001 से 2002 तक भगत सिंह कोश्यारी ने सत्ता संभाली थी और फिर इनके बाद प्रदेश में पहले विधानसभा चुनाव हुए थे।
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सबसे पहले 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद भाजपा के नित्यानंद स्वामी को यहां की अंतरिम सरकार का नेतृत्व सौंपा गया। हालांकि एक वर्ष पूरा होन से पहले ही उन्हें पार्टी द्वारा दिए गए आदेश के चलते अपनी कुर्सी भगत सिंह कोश्यारी को सौंपनी पड़ी।
इसके बाद 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्व में बनाए गए दो मुख्यमंत्रियों के फैसले के चलते विरोध का सामना करना पड़ा और कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी 2 मार्च 2002 को पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने और प्रदेश में 7 मार्च 2007 तक अपना कार्यकाल पूरा किया।
इसके बाद वर्ष 2007 में भाजपा ने उत्तराखंड सत्ता में वापसी की और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे मेजर जनरल बीसी खंडूरी (सेवानिवृत्त) ने 7 मार्च 2007 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। लेकिन खंडूरी दो साल से थोड़े ही ज्यादा वक्त तक कुर्सी पर रह सके और 26 जून 2009 में हरिद्वार में कुंभ मेले से कुछ महीने पहले भाजपा ने उनकी जगह 27 जून 2007 को रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को सीएम बना दिया, जो फिलहाल भारत के शिक्षा मंत्री हैं।
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हालांकि निशंक भी केवल दो साल तक ही सत्ता संभाल सके और उन्हें 10 सितंबर 2011 में इस्तीफा देने के लिए कहा गया और जनरल खंडूरी (11 सितंबर 2011 से 13 मार्च 2012) को विधानसभा चुनाव से पांच महीने पहले फिर मुख्यमंत्री बना दिया गया।
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इस दौरान भाजपा ने सोचा था कि खंडूरी की वापसी से उनकी सरकार और पार्टी की छवि को ठीक करेगी और विधानसभा चुनावों में उसे सत्ता विरोधी लहर के बावजूद जीत में मदद मिलेगी। लेकिन पार्टी की उम्मीदों पूरी तरह सही साबित नहीं हुईं और भाजपा ने 31 सीटें जीतीं जबकि कांग्रेस को 32 सीटें मिलीं। कांग्रेस ने बसपा और निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन से सरकार बनाई। इस दौरान खंडूरी खुद कोटद्वार से चुनाव हार गए जबकि निशंक ने देहरादून में डोईवाला सीट जीती।
अब भाजपा में आ चुके कांग्रेस नेता विजय बहुगुणा फिर 13 मार्च 2012 में मुख्यमंत्री बने, लेकिन वह भी लंबे समय तक इस पद पर नहीं रह सके। वर्ष 2014 की विनाशकारी केदारनाथ बाढ़ के बाद 31 जनवरी 2014 को इस्तीफा दे दिया। फिर हरीश रावत ने 1 फरवरी 2014 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, लेकिन कांग्रेस के भीतर जारी अनबन से वह भी हट गए। 27 मार्च 2016 में विजय बहुगुणा सहित कांग्रेस के नौ विधायकों ने रावत के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह किया और उनकी सरकार को हटा दिया गया। 70 सदस्यीय विधानसभा, जिसमें 71वां एक मनोनीत सदस्य है, को निलंबित कर दिया गया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
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हालांकि हरीश रावत (21 अप्रैल 2016 से 22 अप्रैल 2016 और 11 मई 2016 से 18 मार्च 2017) तब फ्लोर टेस्ट जीतकर सत्ता में वापसी करने में कामयाब रहे, लेकिन जो नुकसान होना था वो चुका था। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 11 सीटों तक सिमट गई गई और नरेंद्र मोदी की लहर ने भाजपा को सत्ता में पहुंचा दिया और पार्टी ने विधानसभा में 57 सीटें जीत लीं।
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बेहद बड़ी जीत के बाद भाजपा ने त्रिवेंद्र सिंह रावत (18 मार्च 2017 से 9 मार्च 2021) को मुख्यमंत्री घोषित किया। लेकिन 18 मार्च को सत्ता में आने के चार साल पूरा करने और उनकी सरकार द्वारा सभी 70 निर्वाचन क्षेत्रों में अपना चुनाव अभियान शुरू से पहले त्रिवेंद्र रावत ने मंगलवार को हट गए।
मंगलवार को राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को अपना इस्तीफा सौंपने से पहले मुख्यमंत्री के भविष्य को लेकर कई दिनों से अटकलें लग रही थीं। शनिवार 6 मार्च को भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह देहरादून पहुंचे थे और पार्टी की राज्य कोर कमेटी की बैठक की जबकि सोमवार को त्रिवेंद्र रावत ने नई दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की।

अमित कुमार बाजपेयी

पत्रकारिता में एक दशक से ज्यादा का अनुभव. ऑनलाइन और ऑफलाइन कारोबार, गैज़ेट वर्ल्ड, डिजिटल टेक्नोलॉजी, ऑटोमोबाइल, एजुकेशन पर पैनी नज़र रखते हैं. ग्रेटर नोएडा में हुई फार्मूला वन रेसिंग को लगातार दो साल कवर किया. एक्सपो मार्ट की शुरुआत से लेकर वहां होने वाली अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों-संगोष्ठियों की रिपोर्टिंग.

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