महाशिवरात्रि 2021 : विश्व का एकमात्र अर्धनारीश्वर शिवलिंग, जहां होता है शिव और मां पार्वती मिलन

भगवान शिव का इकलौते मंदिर…

<p>The only Ardhanarishvara Shivling in the world</p>

देश दुनिया में यूं तो भगवान शिव से जुड़े अनेकों अनूठे मंदिर हैं। जिनमें से कुछ में जहां समय समय पर चमत्कार होते रहते हैं, तो कई ऐसे भी हैं जहां लगातार चमत्कार जारी हैं।

एक ओर जहां आज सोमवार का दिन है, वहीं इस माह यानि मार्च 2021 में 11 तारीख को जहां महाशिवरात्रि पर्व है। ऐसे में आज हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे इकलौते मंदिर के बारे में बता रहे है, जहां के संबंध में मान्यता है कि यहां शिव और मां पार्वती मिलन होता है।

दरअसल हिमाचल प्रदेश में बहुत से प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। इनमें से कांगड़ा जिले में एक बहुत ही अनोखा शिवलिंग है। जिला कांगड़ा के इंदौरा उपमंडल मुख्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर शिव मंदिर काठगढ़ का विशेष महात्म्य है।

शिवरात्रि पर इस मंदिर में प्रदेश के अलावा पंजाब एवं हरियाणा से भी श्रद्धालु आते हैं। काठगढ़ महादेव मंदिर की स्थापना ज्योतिष के नियमानुसार की गई है।

शिव पुराण के अनुसार…
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार ब्रह्मा व विष्णु भगवान के मध्य बड़प्पन को लेकर युद्ध हुआ था। भगवान शिव इस युद्ध को देख रहे थे। दोनों के युद्ध को शांत करने के लिए भगवान शिव महाग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। इसी महाग्नि तुल्य स्तंभ को काठगढ़ स्थित महादेव का विराजमान शिवलिंग माना जाता है। इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है।

अर्धनारीश्वर शिवलिंग का है स्वरूप
बताया जाता है कि यहां मौजूद दो भागों में विभाजित शिवलिंग का अंतर ग्रहों और नक्षत्रों के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर शिवलिंग के दोनों भाग मिल जाते हैं।

यहां का शिवलिंग काले-भूरे रंग का है। आदिकाल से स्वयंभू प्रकट सात फुट से अधिक ऊंचा, छह फुट तीन इंच की परिधि में भूरे रंग के रेतीले पाषाण रूप में यह शिवलिंग ब्यास व छौंछ खड्ड के संगम के नजदीक टीले पर विराजमान है।

शिवरात्रि पर खास मेला
शिवरात्रि के त्यौहार पर हर साल यहां तीन दिन मेला लगता है। शिव और शक्ति के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप के संगम के दर्शन करने के लिए यहां कई भक्त आते हैं। इसके अलावा सावन के महीने में भी यहां भक्तों की भीड़ देखी जा सकती हैं।

वर्ष 1986 से पहले यहां केवल शिवरात्रि महोत्सव ही मनाया जाता था। अब शिवरात्रि के साथ रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, श्रवण मास महोत्सव, शरद नवरात्रि व अन्य समारोह मनाए जाते हैं।


शिवरात्रि पर होता है मिलन…
यह शिवलिंग दो भागों में विभाजित है। छोटे भाग को मां पार्वती और ऊंचे भाग को भगवान शिव के रूप में माना जाता है। मान्यता के अनुसार मां पार्वती और भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर के मध्य का हिस्सा नक्षत्रों के अनुरूप घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर दोनों का मिलन हो जाता है। शिव रूप में पूजे जाते शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 7-8 फीट है और पार्वती के रूप में पूजे जाते शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 5-6 फीट है।

ग्रहों और नक्षत्रों के अनुसार घटती-बढ़ती हैं दूरियां
इसे विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर माना जाता है, जहां शिवलिंग दो भागों में बंटा हुआ है। मां पार्वती और भगवान शिव के दो विभिन्न रूपों में बंटे शिवलिंग में ग्रहों और नक्षत्रों के परिवर्तन के अनुसार इनके दोनों भागों के मध्य का अंतर घटता-बढ़ता रहता है। ग्रीष्म ऋतु में यह स्वरूप दो भागों में बंट जाता है और शीत ऋतु में फिर से एक रूप धारण कर लेता है।

मंदिर का निर्माण
ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, काठगढ़ महादेव मंदिर का निर्माण सबसे पहले सिकंदर ने करवाया था। इस शिवलिंग से प्रभावित होकर सिकंदर ने टीले पर मंदिर बनाने के लिए यहां की भूमि को समतल करवा कर, यहां मंदिर बनवाया था।

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