पर्यटन को बढ़ावा देना प्रोजेक्ट का उद्देश्य
हेरिटेज सर्किट विकास योजना के तहत राज्य में यह काम हो रहे है। जिसमें जालोर का दुर्ग भी शामिल है। प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य ऐतिहासिक महत्व के स्थानों दुर्ग का विकास करना है और इन स्थानों तक पहुंचने के मार्गों का विकास करने के साथ साथ उन तक पहुंचने के लिए मार्गों को सुगम बनाना है। दुर्ग दुर्गम है और यह मजबूर परकोटों से घिरा है। दुर्ग तक अभी तक पहुंचने के लिए २ हजार के करीब सीढिय़ों की चढ़ाई है, जो ४ पोलों को पार करने के बाद दुर्ग तक पहुंचाती है। दुर्ग की ऊंचाई धरातल से १२०० फीट है। इसलिए फिलहाल पैदल यहां तक पहुंचना अभी आसान नहीं है।
हेरिटेज सर्किट विकास योजना के तहत राज्य में यह काम हो रहे है। जिसमें जालोर का दुर्ग भी शामिल है। प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य ऐतिहासिक महत्व के स्थानों दुर्ग का विकास करना है और इन स्थानों तक पहुंचने के मार्गों का विकास करने के साथ साथ उन तक पहुंचने के लिए मार्गों को सुगम बनाना है। दुर्ग दुर्गम है और यह मजबूर परकोटों से घिरा है। दुर्ग तक अभी तक पहुंचने के लिए २ हजार के करीब सीढिय़ों की चढ़ाई है, जो ४ पोलों को पार करने के बाद दुर्ग तक पहुंचाती है। दुर्ग की ऊंचाई धरातल से १२०० फीट है। इसलिए फिलहाल पैदल यहां तक पहुंचना अभी आसान नहीं है।
करीब 8 साल की मेहनत लाई रंग
जालोर दुर्ग तक पहुंचने के लिए दुर्गम रास्ता है। इसके लिए सड़क निर्माण या रोप-वे के विकल्प के लिए करीब एक दशक से प्रयास चल रहे हैं। लेकिन बार बार प्रोजेक्ट भेजने के बाद भी इस काम पर स्वीकृति जारी नहीं हो पाई। वर्ष २०१२ में तत्कालीन कलक्टर के प्रयासों के बाद पहले स्तर पर इसके लिए शुभ संकेत मिले और हाल ही में इसके लिए स्वीकृति जारी हो चुकी है।इस दुर्ग पर पर्यटन की अपार संभावना हैं। ऊपरी सतह पर प्राचीन शिव मंदिर, खेतलाजी मंदिर, जैन मंदिर और मस्जिद है। जहां पर लोग पहुंचते हैं। दुर्ग पर पर्यटकों के देखने के लिए मानसिंह महल, रानी महल और वीरमदेव चौकी प्रमुख है।
जालोर दुर्ग तक पहुंचने के लिए दुर्गम रास्ता है। इसके लिए सड़क निर्माण या रोप-वे के विकल्प के लिए करीब एक दशक से प्रयास चल रहे हैं। लेकिन बार बार प्रोजेक्ट भेजने के बाद भी इस काम पर स्वीकृति जारी नहीं हो पाई। वर्ष २०१२ में तत्कालीन कलक्टर के प्रयासों के बाद पहले स्तर पर इसके लिए शुभ संकेत मिले और हाल ही में इसके लिए स्वीकृति जारी हो चुकी है।इस दुर्ग पर पर्यटन की अपार संभावना हैं। ऊपरी सतह पर प्राचीन शिव मंदिर, खेतलाजी मंदिर, जैन मंदिर और मस्जिद है। जहां पर लोग पहुंचते हैं। दुर्ग पर पर्यटकों के देखने के लिए मानसिंह महल, रानी महल और वीरमदेव चौकी प्रमुख है।
डीपीआर पहले बनी, अब काम शुरू होगा
दुर्ग के लिए रोप-वे का कार्य आरटीडीसी की तरफ से होना है। इसके लिए एजेंसी ने पहले ही सर्वे कार्य कर लिया था और डीपीआर बनाने के साथ प्रोजेक्ट मंत्रालय को भेज दिया था। मंत्रालय से बजट स्वीकृति के साथ ही अब एजेंसी की ओर से सीधे तौर पर कार्य ही शुरू किया जाएगा।
दुर्ग के लिए रोप-वे का कार्य आरटीडीसी की तरफ से होना है। इसके लिए एजेंसी ने पहले ही सर्वे कार्य कर लिया था और डीपीआर बनाने के साथ प्रोजेक्ट मंत्रालय को भेज दिया था। मंत्रालय से बजट स्वीकृति के साथ ही अब एजेंसी की ओर से सीधे तौर पर कार्य ही शुरू किया जाएगा।
इनका कहना
जालोर दुर्ग के लिए 8.82 करोड़ रुपए की स्वीकृति जारी हुई थी। एजेंसी ने डीपीआर पहले ही सबमिट कर दी थी। अब यह काम आरटीडीसी के अंतर्गत ही होना है। यह काम 18 माह में पूरा होना है और हमनें एजेंसी को इसके लिए निर्देशित कर दिया है।
शिखा सक्सेना, अति.निदेशक, डवलपमेंट, पर्यटन विभाग, जयपुर
जालोर दुर्ग के लिए 8.82 करोड़ रुपए की स्वीकृति जारी हुई थी। एजेंसी ने डीपीआर पहले ही सबमिट कर दी थी। अब यह काम आरटीडीसी के अंतर्गत ही होना है। यह काम 18 माह में पूरा होना है और हमनें एजेंसी को इसके लिए निर्देशित कर दिया है।
शिखा सक्सेना, अति.निदेशक, डवलपमेंट, पर्यटन विभाग, जयपुर