जगन्नाथ रथ यात्रा के 10वें दिन होती है बहुड़ा यात्रा, जानें इसका महत्व
समुद्र तट पर बसे पुरी शहर में होने निकलने वाली जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव के समय आस्था का एक विराट यश व उत्साह देखने को मिलता है। ऐसा उत्साह कहीं दुर्लभ है। आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष में ओडिशा राज्य के पुरी शहर में निकलने वाली भगवान जगन्नाथ दी की यह रथयात्रा केवन भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सवों में से एक है। इसमें शामिल होने के लिए विश्वभर से पूरी दुनिया के लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। इस साल यह रथयात्रा 14 जुलाई से शुरु होगी और 23 जुलाई को इस यात्रा का समापन होगा। यात्रा के इस समापन की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है। आइए जानते हैं बहुडा यात्रा की रस्म के बारे में कुछ रोचक बातें।
रास्ते में मौसी के घर रुकते हैं भगवान
जगन्नाथ मंदिर से हर साल रथयात्रा निकाली जाती है। यह यात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर पुरे नगर से गुजरते हुए गुंडीचा मंदिर पहुंचती हैं। गुंडीचा मंदिर को गुंडीचा बाड़ी भी कहा जाता है। गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा सात दिनों तक आराम करते हैं उसके बाद आगे की यात्रा की तरफ प्रस्थान करते हैं। गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन आड़प-दर्शन कहलाते हैं। यह प्रभु जगन्नाथ की मौसी का घर है।
गुंडीचा मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि यहीं पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी की प्रतिमाओं का निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था। यह भी कहा जाता है की रथयात्रा के तीसरे दिन यानी पंचमी तिथि को देवी लक्ष्मी, भगवान जगन्नाथ को ढूंढते हुए यहां आतीं हैं। तब द्वैतापति दरवाज़ा बंद कर देते हैं और इस कृत्य के कारण देवी लक्ष्मी रुष्ट होकर रथ का पहिया तोड़कर वहां से हेरा गोहिरी साही पुरी नामक एक मुहल्ले में देवी लक्ष्मी मंदिर में लौट जाती हैं। त्तपश्चात यहां देवी लक्ष्मी को भगवान जगन्नाथ द्वारा मनाने की परंपरा भी होती है। जिससे एक अद्भुत भक्ति रस उत्पन्न होती है।
10वें दिन होती है रथ वापसी की रस्म
समुद्र किनारे बसे पुरी नगर में होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव के समय लोगों के बीच आस्था और विश्वास का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। यह जो भव्य वैभव और विराट प्रदर्शन होता है वह दुनिया कहीं भी देखने को नहीं मिलता। यात्रा का महत्वपूर्ण भाग है की इस उत्सव में किसी प्रकार का जातिभेद देखने को नहीं मिलता है।
आषढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ फिर से मुख्य मंदिर की ओर चलते हैं। रथों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं। जगन्नाथ मंदिर वापस पहुंचने के बाद भी सभी प्रतिमाएं रथ में ही रहती हैं। देवी-देवताओं के लिए मंदिर के द्वार अगले दिन एकादशी को खोले जाते हैं और उसी के बाद देवी-देवताओं को स्नान करवा कर वैदिक मंत्रोच्चार द्वारा विग्रहों को फिर से प्रतिष्ठित किया जाता है। इस दस दिवसीय रथ यात्रा के अत्सव के दौरान किसी भी घर में कोई भी पूजा नहीं होती है और न ही किसी प्रकार का उपवास रखा जाता है।