सनातन धर्म में प्रथम पूज्य गणपति गणेश के जन्म को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। इन सभी में एक बात कॉमन है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोध में आकर उनका सिर काट दिया था जिसे बाद में हाथी का मस्तक लगाकर उन्हें पुनर्जीवित किया गया। गणेशजी के इस कटे हुए सिर को भगवान शिव ने एक गुफा में सुरक्षित रख दिया था जो आज भी सुरक्षित है। आगे की फोटोज में जानिए पूरी कहानी....
पाताल भुवनेश्वर नाम है इस गुफा का, ब्रह्मकमल भी है स्थापित: जी हां, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा ही वह गुफा है जहां गणेश का सिर रखा गया है। यहां पर गजानन गणपति की एक प्रतिमा भी स्थापित है जिसे आदिगणेश कहा जाता है। लगभग 90 फीट गहराई वाली इस गुफा में आदिगणेश की प्रतिमा के ठीक ऊपर 108 पंखुडियों वाला ब्रह्मकमल भी स्थापित किया गया है। इस ब्रह्मकमल से पानी के रूप में दिव्य बूंदें गणेशजी के शिलारूप मस्तक व उनके मुख में गिरती हुई दिखाई देती है।
कलियुग की समाप्ति का भी मिलता है संकेत: इस गुफा की खोज आदिशंकराचार्य ने की थी। गुफा में चार युगों के प्रतीकात्मक रूप में चार पत्थर भी स्थापित है। इनमें से एक पत्थर कलियुग का प्रतीक है। मान्यता है कि यह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। जिस दिन भई यह दीवार से टकरा जाएगा, उसी दिन कलियुग का अंत होकर पुनः सतयुग की स्थापना होगी।
यहां होते हैं केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के दर्शन भी: पाताल भुवनेश्वर गुफा में बद्री पंचायत भी विराजमान है। इनमें यमराज, कुबेर देव, वरूण देव, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ के साथ-साथ तक्षक नाग भी है। पंचायत के साथ ही यहां पर केदारनाथ, बद्रीनाथ तथा अमरनाथ धाम भी है। इन सबके साथ ही यहां साक्षात कालभैरव की जीभ के भी दर्शन होते हैं। कहा जाता है कि जो भी मनुष्य कालभैरव के मुंह में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए, उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है और वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।