पहला आरोपी मानवेन्द्र नामक धार्मिक व्यक्ति को बनाया जाता है। उस पर जीवन-मृत्यु के संबंध में गलत व भ्रामक विचार फैलाने का आरोप है। इस तरह के विचार लोगों को सड़क पर लापरवाही से चलने के लिए उकसाते हैं। गंभीर पैरवी, बहस व चर्चाओं के बाद मानवेंद्र अपना गुनाह स्वीकार कर लेता है। इसके बाद उन युवाओं व ट्रक चालकों के बारे में चर्चा की जाती हैए जो सड़क दुर्घटनाओं से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। इन पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से एक के बाद एक आरोप लगाए गए। नाटक में सड़क दुर्घटना में मरने वाले कुछ महत्वपूर्ण लोगों की आत्माओं को दिखाया गया। इन आत्माओं ने सड़क दुर्घटनाओं से उन्हें होने वाले दर्द को व्यक्त किया। प्रत्येक व्यक्ति और परिवार की जिम्मेदारियों को रेखांकित करने के साथ नाटक का समापन हुआ। नाटक के अंत में दर्शकों के समक्ष कुछ सवाल छोड़ दिए जाते हैं।
मंच पर
मंच पर
नाटक में रमन मोहन, योगन्द्र सिंह परमार, माइनुद्दीन, राजीव, मोहन, विनोद भट्ट, अनीता, अमित, अंजलि और तनवीर शामिल थे।