उफ! ये कैसा शहर हो गया, आदमी में जहर हो गया…

– राजस्थान ब्रज भाषा अकादमी की ओर से अखिल भारतीय ब्रजभाषा कवि सम्मेलन का आयोजन

<p>उफ! ये कैसा शहर हो गया, आदमी में जहर हो गया&#8230;</p>
अनुराग त्रिवेदी
जयपुर. राजस्थान ब्रज भाषा अकादमी की ओर से मंगलवार को झालाना स्थित अकादमी संकुल में आजादी का अमृत उत्सव के तहत अखिल भारतीय ब्रजभाषा कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। अकादमी के सचिव मोअज्जम अली ने बताया कि कवि सम्मेलन में देशभर के अलग-अलग शहरों के कवियों ने अपनी रचनाओं से विभिन्न विषयों पर प्रकाश डाला। महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी रचनाओं के साथ देश-प्रेम की रचनाओं ने ब्रज भाषा के सौन्दर्य से रूबरू करवाया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रत्ना शर्मा ने किया। उद्घाटन मौके पर आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण के कार्यकारी निदेशक राजनारायण शर्मा, प्रसिद्ध शायर लोकेश कुमार सिंह ‘साहिल’ मौजूद रहे।
कवियों की रचनाओं में ब्रज भाषा के प्रति प्रेम

कार्यक्रम में कोसी के श्यामसुंदर अकिंचन, जयपुर से वरुण चतुर्वेदी, सुशीला शील, डॉ. सीताभ शर्मा, भरतपुर से हरिओम हरि, आगरा से चेतना शर्मा, अलवर से सुरेन्द्र शर्मा, कामां से भगवान मकरंद्र, दौसा से अजीव अंजुम, दिल्ली से सबा अजीज और अलीगढ़ से पूनम शर्मा ने कविता, शायरी और गजल प्रस्तुति के जरिए जमकर तालियां बटोरी। रचनाओं में ब्रज भाषा के प्रति प्रेम साफ नजर आया।
……………

उफ! ये कैसा शहर हो गया,
आदमी में जहर हो गया,
एक पत्थर उछाला गया,
बस्तियों पर कहर हो गया ।

पूनम शर्मा ‘पूर्णिमा’

………………….
राधा श्याम जपें पशु पक्षी,
बिटप धरें हरि ध्यान यहां,
कविता बनी बिहारी राधा,
शब्द भये रसखान यहां ।
अंजीव अंजुम


……………………..

नीकौ नीकौ जे भारत हमारे है,
प्यारौ प्यारौ जे भारत हमारे है भरत के रहवैया,
आपस में हैं भैया, हमें प्यारौ है प्रानन ते प्यारौ है।

वरुण चतुर्वेदी
…………….

तीनिहु लोकन में नहीं पावत, ता सुख कूं ब्रज बीथिन लीजै,
बा ब्रजभूमि बसैयन की, ब्रजमण्डल की ब्रजराज की जै जै।

डॉ. भगवान मकरन्द


……………………………

भारत मां कौ विश्व पटल पै, मान बढायौ बापू नैं,
सत्य अहिंसा कर्मयोग कौ, पाठ पढायौ बापू नैं।
हरिओम हरि, भरतपुर

……………….

छलकता जाम मुमकिन है कि हाथों से बिखर जाए,
निगाहों ही निगाहों में कोई सूरत उतर जाए,
मियादी मर्ज में अक्सर दवा नाकाम होती है,
मुहब्बत में ये लाजिम है जख्म कोई उभर जाए।
पूनम शर्मा ‘पूर्णिमा’

……………………..

पोच कूं दबोचवे की, मन मांहि राखै सोच,
ऐसौ आताताई भयौ, देश अब चीन है।
ई तौ छीनेंगौ जमीन, मत करियों यकीन
बेईमानी वारौ जीन, पूरौ ई कमीन है,
भूल मत गलवान, डारौ मत गलबांह,
ठेठ ते फुलायौ पेट, लीलवे में लीन है,
आग और झाग फेंकै, ऐसौ नाग जिनपिंग,
नाग नाथवे की अब, हम पै हू बीन है।
सुरेन्द्र सार्थक

…………….

जिसके मुंह में बोल नहीं है,
उसका कोई मोल नहीं है,

औरत, यानी इश्क-मुहब्बत
ये तो सच्ची तोल नहीं है।

डॉ. सुशीला शील, जयपुर

………………………


आरोपों-प्रत्यारोपों से जब भी, मन घायल होता है,
कटु वचनों की बरसातों से, धीरज का संबल खोता है
जब निरपराध होकर भी हम अपराधी से चुप रहते हैं,
ये आंसू तब -तब बहते हैं।
डॉ. सुशीला शील
………………………………….
Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.