वर्षा के सौन्दर्य के साथ घने बादलों की तरह उमड़ता मन

जेकेके में आयोजित कथक समारोह ‘नृत्यमÓ का समापन, कथक नृत्य के जरिए भावों को किया अभिव्यक्त

<p>वर्षा के सौन्दर्य के साथ घने बादलों की तरह उमड़ता मन</p>
 
जयपुर. जवाहर कला केंद्र के रंगायन सभागार में आयोजित कथक फेस्टिवल ‘नृत्यमÓ का समापन मंगलवार को हुआ। नॉर्थ सेंट्रल जोन कल्चरल सेंटर प्रयागराज के सहयोग से आयोजित इस फेस्टिवल में जयपुर कथक केन्द्र के कलाकारों ने ‘जलÓ की प्रस्तुति देकर जमकर सराहना बटोरी। इस प्रस्तुति में जयपुर घराने के पारम्परिक और प्रायोगिक स्वरुप देखने को मिले। कार्यक्रम की परिकल्पना एवं नृत्य संरचना कथक केन्द्र की प्राचार्या डॉ. रेखा ठाकर ने की। कलाकारों ने नृत्य संरचना ‘जलÓ को दो चरणों में पेश किया गया। पहले चरण में जयपुर कथक के पारम्परिक स्वरूप को पेश करते हुए कलाकारों ने ताल धमार में पारम्परिक कवित्त ‘दई मारे बदरवा करत शोरÓ पर दमदार प्रस्तुति दी।
इस अवसर पर तीन ताल एवं राग मल्हार में ‘उमड घुमड घन बरसे बूंदडीÓ जैसी पारम्परिक बंदिश पर भी शानदार प्रस्तुति दी। कलाकारों ने वर्षा के सौन्दर्य और घने बादलों की तरह उमडते मन के भावों को कथक के माध्यम से जीवंत चित्रण किया। कार्यक्रम के दौरान ठाट, उठान, झूलना आमद, चक्कर, फरमाइशी प्रिमेलु, चक्करदार परण, चाला की प्रस्तुति से माहौल को खुशनुमा बनाया। गायन और हारमोनियम पर मुन्ना लाल भाट, सितार पर पं. हरिहरशरण भट्ट, सारंगी पर उस्ताद मोईनुद्दीन खां, तबले पर मुजफ्फ र रहमान और पखावज पर एश्वर्य आर्य ने संगत दी।
गंगा के जल की मन:स्थिति
दूसरे चरण की प्रस्तुति प्रायोगिक स्वरुप पर आधारित थी। भगवतशरण चतुर्वेदी के आलेख पर आधारित इस नृत्य संरचना में विभिन्न बंदिशों के माध्यम से पृथ्वी पर गंगा के जल की मन:स्थिति को दर्शाया गया। इस प्रस्तुति में कलाकारों ने जल के वीर, श्रृंगार, हास्य, अद्भुद, वात्सल्य, वीभत्स, रौद्र, भयानक, करूण और शांत रस को पेश कर दर्शकों का मन मोह लिया। संगीत निर्देशन पं. आलोक भट्ट ने किया और लय संयोजन पं. प्रवीण आर्य का था। कार्यक्रम में नृत्य कलाकारों में रेखा सेन, शगुन शर्मा, देवांशी दवे, कनिका कोठारी, सुहानी बहल, निकिता शर्मा, अनन्या दलवी, चित्रांश तंवर, सौम्या, हिमानी शामिल थे। प्रकाश व्यवस्था का संचालन राजेन्द्र शर्मा ‘राजूÓ और दिनेश प्रधान ने किया।
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