संगीत खुशी और उत्साह को दोगुना करते हैं
प्रसून ने कहा कि संगीत में इंडिविजुअलिटी की बात नहीं है, यह सामुहिक क्रिएशन से ही अपनी छाप छोडऩे में योगदान निभाता है। यह तो एक साधना की तरह है, जो एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे तक यह तराशने के लिए पहुंचता है। लोग अपनी काबिलियत से इसे और मजबूत बनाते हुए लोगों तक पहुंचाते हैं। फोक संस्कृति का रक्षा कवच है, यह लोग गीतों की वजह से जिंदा रहती है, हमारे संस्कारों को बनाए रखता है। देखा जाए तो हमारे पास कृषि गीत है, जो हमें यह बाते हैं कि फसल, धरती और मिटटी को सुरक्षित रखने के लिए क्या करना चाहिए। हमारे पास श्रम गीत है, ‘जोर लगा के हयशाÓ इसी का एक रूप है। तीज—त्योहार के गीत जीवन को परिलक्षित करते हैं, दर्द समस्याओं को कम करते हैं और खुशी व उत्साह को दोगुना करते हैं।
अलग—अलग रूप में अहसास
उन्होंने कहा कि मेरा जन्म उत्तराखंड में हुआ है, मेरे घर में संगीत सुनाई देता था। राग पहाड़ी का नाम आते ही पता चलता है कि इसका जन्म कहीं पहाड़ों से ही हुआ होगा। लेकिन जब इसे सुनते हैं, तो अलग—अलग राज्यों में इसका प्रभाव अलग आता है। यह कई अलग-अलग रूप में मिलता है। लोक संगीत हाथों-हाथ लिया जाता है, यह मन-मस्तिष्क में आसानी से प्रवेश कर जाता है। विद्या शाह ने कहा कि लोक संगीत लोगों के प्रभाव से खास बनता है, यही वजह है प्रत्येक व्यक्ति इससे कनेक्ट हो जाता है।
प्रसून ने अपनी एक ठुमरी भी सुनाई नजर तोरी, घूर घूरम घूरम
नजर मोरी, झुकी झुकी रहे हर दम…
तोरी नजरिया से शिकवा नहीं
नियत तोरी डोल डोलम डोलम..
नयनों के मिलने कछु डर नाही
निगाह तोरी झील झीलम झीलम…
अब ना सहे जाए तीर अखियन के
चुभत जैसे शूल शूल शूलम…