वेस्टर्न म्यूजिक के क्रेज से क्लासिकल म्यूजिक को कोई खतरा नहीं – अनुपमा भागवत

जेकेके में आयोजित म्यूजिक कॉन्सर्ट में परफॉर्म करने आई सितार वादक अनुपमा भागवत ने शेयर किए अनुभव

<p>वेस्टर्न म्यूजिक के क्रेज से क्लासिकल म्यूजिक को कोई खतरा नहीं &#8211; अनुपमा भागवत</p>
जयपुर। इस में कोई शक नहीं है कि भारतीय युवाओं में वेस्टर्न म्यूजिक का क्रेज बढ़ रहा है, लेकिन इसका यह बिलकुल भी मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि इससे भारतीय क्लासिकल म्यूजिक को खतरा है। क्लासिकल म्यूजिक अपना प्रभाव हमेशा बनाए रखने में सक्षम है। वैसे भी बिना शास्त्रीय संगीत के ज्ञान के किसी और मौसिकी की कल्पना करना असंभव है। यह कहना है, सितार वादक अनुपमा भागवत का। जेकेके में आयोजित म्यूजिक कॉन्सर्ट में प्रस्तुति देने आई अनुपमा ने पत्रिका प्लस से बात करते हुए कहा कि पश्चिमी देशों के युवाओं का रुझान भी भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रति बढ़ रहा है, वे भारत आकर सीख रहे हैं। विदेश से आने वाले युवाओं के दिल में शास्त्रीय संगीत के प्रति इतना सम्मान कि वे इसकी साधना करते हुए इसके साथ आध्यात्मिक स्तर तक जुड़ रहे हैं। भारतीय युवाओं में बढ़ते रीमिक्स, फ्यूजन के क्रेज के बावजूद शास्त्रीय संगीत का दीपक हमेशा जगमगाता रहेगा।
मूल रूप में ही पहुंचे शास्त्रीय संगीत

उन्होंने कहा कि भले ही इस दौर को फ्यूजन म्यूजिक का माना जा रहा हो, लेकिन शास्त्रीय संगीत को बदलने को कोई जरूरत नहीं। इसे अपने मूल रूप में ही अगली पीढिय़ों तक पहुंचाना हर शास्त्रीय संगीत साधक का कर्तव्य है। पं. रविशंकर और उन जैसे ही शास्त्रीय संगीत साधकों ने पश्चिमी देशों सहित ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और पूरे एशिया में इस संगीत को जो मान दिलाया है, उसने इसे अक्षुण्ण बना दिया है। अनुपमा ने कहा कि केंद्र और राज्यों की सरकारों को जेकेके और ऐसे ही संस्थानों, अकादमियों के माध्यम से शास्त्रीय संगीत को प्रोत्साहन देना चाहिए। यह भारत और भारतीयता की पहचान है। इस विधा का गौरव बढ़ाना हर भारतीय का फर्ज है। गौरतलब है कि नौ वर्ष की आयु से आरएन वर्मा से सितार वादन सीखा। वे अपना सौभाग्य मानती हैं कि 13 वर्ष की उम्र में भिलाई में उन्हें इमदादखानी घराने के आचार्य पं. बिमलेंदु मुखर्जी से सितार वादन का प्रशिक्षण लिया।
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