मूल रूप में ही पहुंचे शास्त्रीय संगीत उन्होंने कहा कि भले ही इस दौर को फ्यूजन म्यूजिक का माना जा रहा हो, लेकिन शास्त्रीय संगीत को बदलने को कोई जरूरत नहीं। इसे अपने मूल रूप में ही अगली पीढिय़ों तक पहुंचाना हर शास्त्रीय संगीत साधक का कर्तव्य है। पं. रविशंकर और उन जैसे ही शास्त्रीय संगीत साधकों ने पश्चिमी देशों सहित ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और पूरे एशिया में इस संगीत को जो मान दिलाया है, उसने इसे अक्षुण्ण बना दिया है। अनुपमा ने कहा कि केंद्र और राज्यों की सरकारों को जेकेके और ऐसे ही संस्थानों, अकादमियों के माध्यम से शास्त्रीय संगीत को प्रोत्साहन देना चाहिए। यह भारत और भारतीयता की पहचान है। इस विधा का गौरव बढ़ाना हर भारतीय का फर्ज है। गौरतलब है कि नौ वर्ष की आयु से आरएन वर्मा से सितार वादन सीखा। वे अपना सौभाग्य मानती हैं कि 13 वर्ष की उम्र में भिलाई में उन्हें इमदादखानी घराने के आचार्य पं. बिमलेंदु मुखर्जी से सितार वादन का प्रशिक्षण लिया।