लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन आजादी के दुरुपयोग की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। छोटे-छोटे बच्चों का पत्थरबाजी में शामिल होना दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही, चिंताजनक भी है। स्कूल जाने की उम्र में बच्चों के हाथ में पत्थर थमाने वाले लोग देश का भला चाहने वाले तो नहीं हो सकते। कश्मीर घाटी में पत्थर फेंकने की घटनाओं में पकड़े गए बच्चे ये नहीं जानते हैं कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?
बच्चों से ऐसा कराने वालों के मंसूबे भी किसी से छिपे नहीं है। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद से राज्य का माहौल बदलता दिखाई दे रहा है। पत्थरबाजी की घटनाओं में भी कमी आ रही है। लेकिन हालात पर नजर बनाए रखना जरूरी है। भटके हुए युवाओं को मुख्यधारा में लाना जरूरी है। साथ ही सेना के खिलाफ आक्रोश भड़काने वालों पर लगाम लगाना भी जरूरी है। पत्थरबाजों को नौकरी नहीं देने व पासपोर्ट पर रोक लगाने के अच्छे नतीजे आने की उम्मीद है।
जम्मू-कश्मीर के हालात सामान्य बनाने के लिए सरकार को तमाम कदम एक साथ उठाने होंगे। सख्ती भी दिखानी होगी लेकिन कश्मीर के लोगों को देश के साथ जोडऩे की कवायद भी तेज करनी होगी। जम्मू-कश्मीर की मुख्य समस्या बेरोजगारी है। नौकरियां हैं नहीं और पर्यटन तबाही के कगार पर है। खाली बैठे युवाओं को काम देने की जरूरत है। पर्यटन को बढ़ावा भी तभी मिलेगा, जब राज्य में शांति होगी। राज्य के युवा भी शांति चाहते हैं। पिछले दो सालों में देश तोडऩे वाले तमाम लोगों के साथ सख्ती की गई है। आतंकवादियों को मदद पहुंचाने वाले लोगों से लेकर बड़े-बड़े राजनेताओं पर शिकंजा कसा गया है। इसके नतीजे भी आने लगे हैं। सरकार की कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि वह स्थानीय लोगों का कितना विश्वास जीत पाती है।
जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न राज्य है और वहां होने वाली शांति का असर पूरे देश पर पड़ेगा। जरूरत अभी फूंक-फूंक कर कदम रखने की है। इसके लिए जरूरी है कि देश के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के सभी राजनीतिक दल भी एक मंच पर आकर वर्षों पुरानी समस्या के सहयोग में मददगार बनें। रास्ता तभी निकल पाएगा।