World Breastfeeding Week 2021 : स्तनपान प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो बच्चे को निरोगी और स्वस्थ रखती है। अनेक अध्ययनों में इस बात की पुष्टि की गई है कि स्तनपान से शिशुओं के साथ-साथ माताओं को भी लाभ होता है। उदाहरण के लिए विज्ञान पत्रिका ‘लैंसेट’ में 2003 और 2008 में छपी दो रिपोर्टों में बताया गया कि 6 महीने तक केवल स्तनपान करने तथा 12 महीने तक पूरक आहार के साथ स्तनपान करने से पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर लगभग पांचवें हिस्से तक कम की जा सकती है। जिन बच्चों को स्तनपान कराया गया, उनका ‘आइ क्यू’ स्तर डिब्बा बंद दूध से पले शिशुओं की तुलना में 5-8 अधिक पाया गया है।
संयुक्त राष्ट्र की 2018 की एक रिपोर्ट ‘कैप्चर द मोमेंट’ में बताया गया कि जिन नवजात शिशुओं को जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराया जाता है, उनके जीवित रहने की संभावना दो से 23 घंटे बाद स्तनपान कराए जाने वाले शिशुओं के मुकाबले दोगुनी होती है। यह साबित हो चुका है कि स्तनपान कराने से मां का भी स्वास्थ्य ठीक रहता है और उसे भावनात्मक लाभ होता हैं। स्तनपान कराने वाली महिलाओं को स्तन कैंसर, डिम्बग्रंथि के कैंसर और हृदय रोग जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है। शुरू में स्तनपान चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर शिशु जन्म के बाद के क्षणों में। ऑपरेशन से हुए प्रसव के मामले में माताएं स्तनपान नहीं करा पातीं, तो मुश्किल हो जाती है।
स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए राजस्थान सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं। एक स्तनपान नीति बनाई गई। साथ ही प्रसवोत्तर देखभाल वार्डों में अमृत कक्ष तथा दूध बैंक की स्थापना भी की गई है। इस तरह के प्रयास पूरे देश में होने चाहिए। स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए निजी क्षेत्र को कार्यस्थलों पर क्रेच स्थापित करने चाहिए। माताओं को पर्याप्त सवैतनिक अवकाश मिले। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक देखभाल इकाइयों के सभी संस्थानों में बाल चिकित्सा और स्त्री रोग विशेषज्ञ तथा लेबर रूम सहित वार्डों में काम करने वाले सभी कर्मियों का स्तनपान प्रबंधन में प्रशिक्षण हो। स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए अभियान में पिता की भी मदद ली जानी चाहिए। अकेले माताओं के भरोसे स्तनपान प्रोत्साहन अभियान में सफलता नहीं मिल सकती। अस्पतालों, जन्म केंद्रों, स्वास्थ्य कर्मियों, सरकारों और परिवारों के सहयोग से ही यह अभियान गति पकड़ सकता है।