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आज के दौर में स्त्रीवाद से क्यों भयभीत है समाज

पितृ सत्ता ने स्त्री पर नियंत्रण के लिए हमेशा से धर्म, संस्कृति और परम्परा का सहारा लिया है। एक घर का संचालन मुख्यत: इन्हीं तत्वों से होता है।

नई दिल्लीSep 21, 2020 / 02:51 pm

shailendra tiwari


स्त्रीवाद से अब भी अधिकतर स्त्री-पुरुष भय खाते हैं, क्योंकि वह एक ऐसी रूढि़मुक्त स्त्री की अवधारणा देता है, जिसे किसी भी दायरे में कैद नहीं किया जा सकता। एक मुक्त स्त्री की परिकल्पना से लोगों को सामाजिक संरचना टूटती दिखाई देती है। किसी स्त्रीवादी का नाम सुनते ही लोगों को खलनायिका का पात्र निभाती स्त्री याद आती है, जबकि उन्हें अपने घर और समाज के अबला, समर्पिता,त्यागशील स्त्रियां चाहिए।

अब भी घर के बनने बिगडऩे का सारा जिम्मा औरतों पर ही डाला जाता है। अक्सर परिवार की बड़ी-बूढ़ी महिलाएं सीख देती हैं कि स्त्रियों को अपनी ऊर्जा घर बचाने में लगानी चाहिए। उन्हें किसी भी कीमत पर अपना परिवार बचा लेना चाहिए। वे शायद स्त्रियों पर घर के नाम पर हो रहे मानसिक, शारीरिक अत्याचार से आंखें मूंद चुकी हैं। पितृ सत्ता ने स्त्री पर नियंत्रण के लिए हमेशा से धर्म, संस्कृति और परम्परा का सहारा लिया है। एक घर का संचालन मुख्यत: इन्हीं तत्वों से होता है। ये तत्व जो अमूमन एक मनुष्य के अस्तित्व निर्माण में सहायक होते हैं, स्त्रियों की समाज में स्थिति दोयम दर्जे की बनाते रहे हैं।
स्त्रीवाद न घर तोडऩे की वकालत करता न रिश्तों को। वह एक समन्वयकारी समाज का स्वप्न है, जहां स्त्रियां भी एक मनुष्य को मिलने वाले सभी नागरिकए सामाजिक अधिकारों और अपने निर्णय की स्वतंत्रता के साथ जी सकें। वह एक ऐसे घर का स्वप्न देता है, जहां स्त्री सिर्फ विभिन्न रिश्तों को निभाती महिमामयी मां और देवी नहीं हो, अपनी सहज मानवीय इच्छाओं को जीती हुई एक सामान्य मनुष्य हो। घर के नाम पर दीवारों में चुन दी गयी स्त्री कोई उपाय नहीं बचने पर उन दीवारों को ढहाकर आगे बढऩे का विकल्प चुनती है। तब समाज के पास उसे रोक देने का सबसे बड़ा हथियार चरित्र हनन होता है।
ये काम पितृ सत्ता की संचालक स्त्रियां ही अधिक करतीं हैं। जब तक स्त्रियों में एक दूसरे से ईष्र्या, पितृ सत्ता द्वारा दिया अच्छी औरत का सर्टिफिकेट लेने की कंडीशनिंग बाकी रहेगी, स्त्रीवाद का लक्ष्य पूरा नहीं होगा। आधुनिक स्त्रियों को समझना चाहिए कि समाज का चरित्र हनन का यह हथियार अब भोंथरा हो चुका है। आवश्यकता है कि स्त्रियां साझे स्वप्न और संकल्प के साथ घर और बाहर की सभी बेडिय़ों को खोलने में एक दूसरे के साथ खड़ी हों।

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