आपकी बात, चिकित्सा तंत्र को मजबूत करने के लिए जन आंदोलन क्यों नहीं होते?

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

<p>आपकी बात, चिकित्सा तंत्र को मजबूत करने के लिए जन आंदोलन क्यों नहीं होते?</p>
एकजुट नहीं है जनता
भारत की जनता के पास इतना धैर्य है कि वह चिकित्सा तंत्र को मजबूत करने जैसे मुद्दों के लिए आंदोलन नहीं करती। भारत की जनता सिर्फ धर्म और राजनीतिक दलों के नाम पर ही लडऩा जानती है। लोग किसी धार्मिक रैली में बड़े गर्व से शामिल हो जाते हैं, लेकिन मूलभूत सुविधाओं के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए एकजुट नहीं होते।
-नटेश्वर कमलेश, चांदामेटा, मध्यप्रदेश
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जन आंदोलन जरूरी
देश के सरकारी अस्पताल हों या निजी अस्पताल हर जगह कुप्रबंधन, अव्यवस्था, मरीजों व उनके परिजनों के साथ मारपीट जैसे मामले सामने आते रहते हैं। निजी अस्पतालों में लूट आम है। डॉक्टरों का रूढ़ व्यवहार और गांवों में डॉक्टरों का समय पर न आना चिकित्सा तंत्र की बदहाली के सबूत हैं। चिकित्सा तंत्र को मजबूत करने के लिए जन आंदोलन जरूरी हैं, अस्पतालों की व्यवस्था को सुधारने का यही एकमात्र उपाय लगता है।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
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चिकित्सा सुविधा के लिए आवाज उठाए जनता
कोरोना के आने से पहले चिकित्सा तंत्र की तरफ ध्यान ही नहीं दिया गया। हम हमेशा से मंदिर, मस्जिद, चुनाव या इसी तरह के मुद्दों पर बहस करते रहे। महामारी के इस कठिन दौर में एहसास हुआ कि हमारी चिकित्सा व्यवस्था कितनी कमजोर है। समुचित चिकित्सा न मिलने के कारण लोगों की मौत हो रही है। ऐसे में अब समय आ गया है कि हम चिकित्सा तंत्र को मजबूत करने के लिए आवाज उठाएं ।
-नीलिमा जैन, उदयपुर
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सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत
चिकित्सा तंत्र को मजबूत करने के लिए जन आंदोलन नहीं होते। असल में नागरिकों में जागरूकता की कमी है। जनप्रतिनिधि भी अपनी सहूलियत के हिसाब से मुद्दोंं को उठाते हैं। सरकार पर चिकित्सा तंत्र मजबूत करने का दबाव डालना होगा।
-शिवम गुप्ता सादेले, शिवपुरी, मध्य प्रदेश
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सरकार जिम्मेदारी निभाए
सरकारी अस्पतालों से अमीर वर्ग का कोई लेना-देना नहीं है। गरीब में सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने की ताकत नही होती। कभी कभार चिकित्सकों की लापरवाही का कोई मामला सामने आ जाता है, तो प्रशासन व मरीज के परिवार में सुलह करवा कर मामला खत्म कर दिया जाता है। सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह जनता को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास करे।
-लता अग्रवाल, चित्तौडग़ढ़ ।
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जरूरी है आंदोलन
भारत में चिकित्सा क्षेत्र में सरकारी खर्च बहुत कम है। यही वजह है कि देश का चिकित्सा तंत्र कमजोर बना हुआ है। चिकित्सा तंत्र को मजबूत बनाने के लिए जनता को आंदोलन करना चाहिए, तभी भारत एक स्वस्थ राष्ट्र बन पाएगा।
-संजय दास, रायगढ़, छत्तीसगढ़
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खुल गई चिकित्सा तंत्र की पोल
महामारी ने चिकित्सा तंत्र की पोल खोल कर रख दी है। कोरोना महामारी के चलते हर कोई डरा हुआ है। ऐसे मे चिकित्सा तंत्र को मजबूत करने के लिए कोई भी जन आंदोलन से नहीं जुड़ पाता।
-नरेश कानूनगो, गुंजुर, बेंगलूरु , कर्नाटक
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लचर व्यवस्था
दिन-प्रतिदिन कोरोना संक्रमण के आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं। सरकार की लचर व्यवस्था के कारण लोगों को बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर, एम्बुलेंस सही समय पर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। इससे सरकार की लापरवाही उजागर हो रही है। सरकार को समय रहते सभी सरकारी व निजी अस्पतालों की व्यवस्था सुधारनी चाहिए। सभी अस्पतालों में सुझाव पेटी की व्यवस्था करनी चाहिए और इन सुझावों पर ध्यान देना चाहिए। अस्पतालों की व्यवस्था में सुधार के लिए जनता को सरकार पर दबाव बनाना चाहिए।
-आलोक वालिम्बे, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
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होने चाहिए जन आंदोलन
चिकित्सा व्यवस्था को ठीक करने के लिए जन आंदोलन होने चाहिए। मुश्किल यह है कि कोई व्यक्ति या संस्था व्यवस्था में सुधार के लिए आवाज बुलंद करती है, तो दबाव शुरू हो जाता है। ऐसे विरोध को हर तरीके से दबाने की कोशिश होती है।
-राजूराम नायक, भीम नगर, बीकानेर
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जनता संघर्ष करे
अस्पतालों की बदहाली को जनता ने अपनी नियति मान लिया है। यदि जनता समस्याओं को हल करवाने पर ध्यान नहीं देगी, तो ये समस्याएं विकराल रूप ले लेंगी। इसलिए जनता को ही जागना होगा और चिकित्सा तंत्र को मजबूत करने के लिए संघर्ष करना होगा।
-मनु प्रताप सिंह, चिंचड़ोली, खेतड़ी
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निजी अस्पतालों को नेताओं का संरक्षण
जन आंदोलन किसी न किसी राजनीतिक दल के संरक्षण में होता है। बड़े निजी अस्पताल नेताओं के संरक्षण में चलते है। इसलिए चिकित्सा के लिए आंदोलन बड़ा रूप नहीं ले पाते। वैसे भी यह मान लिया गया है कि सरकारी अस्पताल गरीबों के लिए हैं। मध्य वर्ग एवं अमीर वर्ग के लोग इलाज के लिए निजी अस्पतालों मेें जाते हैं। ऐसी हालत में जन आंदोलन कैसे हो सकता है?
-कन्हैया लाल कुम्भकार, राजगढ़, मप्र
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