Patrika Opinion : हम ही देते हैं बुलावा आसमानी आफत को

– देश में बेमौसम की बरसात लोगों की परेशानी का सबब बनती रही है।- उत्तराखंड व केरल में बारिश का जो कहर टूटा है, वह ग्लोबल वार्मिंग से जुड़े खतरों की ओर संकेत करता है।

<p>Patrika Opinion : हम ही देते हैं बुलावा आसमानी आफत को</p>

दक्षिण-पश्चिम मानसून देश से लगभग विदा हो चुका है। इसके बावजूद उत्तराखंड व केरल में बारिश का जो कहर टूटा है, वह ग्लोबल वार्मिंग से जुड़े खतरों की ओर संकेत करता है। उत्तराखंड में आई आपदा से अब तक बड़ी संख्या में लोगों की जान जा चुकी है। समूूचे राज्य में बहुत तेज बारिश हुई है। केरल के हालात भी बेहतर नहीं कहे जा सकते हैं। वहां भी कई लोग काल के गाल में समा चुके हैं। यह बारिश मानसून के बाद की है, जिसने दोनों राज्यों में जानमाल का काफी नुकसान किया है। देश के अन्य हिस्सों में भी बेमौसम की बरसात लोगों की परेशानी का सबब बनती रही है।

अहम सवाल यही है कि आखिर हर साल हम ऐसी आपदाओं का सामना क्यों करते जा रहे हैं? क्यों हर बार जान-माल का भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है? ऐसी क्या वजह है जिसके कारण हर साल देश के सामने नई तरह की चुनौती खड़ी हो जाती है। हर बार आसमानी आफत के नए तर्क हमारे पास होते जरूर हैं, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद हम प्रकृति के कहर के आगे असहाय दिखते हैं? ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि आखिर लगातार ऐसी आपदाएं क्यों आ रही हैं? विशेषज्ञ इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार बताते रहे हैं। इसके कारण ही मौसम में कई तरह के बदलाव साफ नजर आते रहते हैं।

उत्तराखंड में तो औसत से 500 फीसदी ज्यादा बारिश अचानक हो गई। नदियां उफान पर आ गईं। ऐसा क्यों हुआ? वजह भी साफ है। नदियों के भराव क्षेत्र पर अतिक्रमण हो गया। ऐसे में पानी तो अपना रास्ता बनाता जरूर है, लेकिन एक आपदा बनकर। उत्तराखंड में जिस तरह से विकास के नाम पर हरियाली पर कुल्हाड़ी चली है, उससे वहां का पारिस्थितिकी संतुलन बुरी तरह से बिगड़ गया है। नतीजन, आपदाओं को लगातार आमंत्रण मिल रहा है। हिमालयी क्षेत्र में बन रहे बांध बादल निर्मित करते हैं और नदियों के ऊपरी क्षेत्र में अचानक से बरस जाते हैं। यही आफत लेकर नीचे मैदानी इलाकों तक आ जाते हैं। विकास हमारी जरूरत है, लेकिन उसकी अंधी भूख ने हमारे सामने नई चुनौतियों को बढ़ावा दिया है। उधर पर्यटकों और वाहनों की रेलमपेल का दबाव भी शांत क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है।

जरूरत इस बात की है कि हम इलाके की इकोलॉजी को ध्यान में रखकर विकास की परिभाषा तय करें। हमें अपने आपदा प्रबंधन को भी दुरुस्त करना होगा। अभी तक तो राज्यों के आपदा प्रबंधन विभाग खुद आपदाग्रस्त ही नजर आते हैं। बेहतर तकनीकी दक्षता का इस्तेमाल होगा, तो ही आपदाओं से निपटने के प्रयास सार्थक हो पाएंगे।

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