travelogue: नेलांग घाटी : पहाड़ का रेगिस्तान

लाहौल-स्पीति और लद्दाख के प्रसिद्ध हिमालयी रेगिस्तानों और इन घाटियों के समान ही, नेलांग घाटी का भी गहरा समृद्ध इतिहास और संस्कृति हैै।

खड़ी पहाड़ी थी और साइकिल की गति बहुत ही कम। वह मेरी उत्तराखंड यात्रा का दसवां दिन था। हरिद्वार और देहरादून के बाद अपने तीसरे पड़ाव पर यानी कि इस समय उत्तरकाशी जिले में हूं। मैं बुरी तरह से थका हुआ हूं। लेकिन सामने खड़े नेलांग घाटी के निर्जन पहाड़ बुला रहे हैं और मेरा हौसला तनिक भी कम होता नहीं दिखाई दे रहा है। आपको बता दूं कि यह घाटी समुद्र तट से तकरीबन ग्यारह हजार फीट की ऊंचाई पर गंगोत्री नेशनल पार्क में स्थित है। इस घाटी में जाड़ गंगा समेत दो नदियां बहती हैं। भैरव घाटी में गंगा भागीरथी में मिल जाती है। नेलांग से आगे नागा, निलापानी, तिरपानी, पीडीए, सुमला आदि कई स्थान हैं, जहां सेना और आइटीबीपी की छावनियां भरी पड़ी हैं।
इस पूरे क्षेत्र में दूर-दूर तक वीरानी पसरी है और घाटी पेड़-पौधों के अभाव में भी एक अद्भुत आकर्षण पैदा करती जान पड़ती है। इसकी वजह से ही नेलांग घाटी को पहाड़ का रेगिस्तान कहा जाता है। पूरी घाटी कठिनाइयों से भरी हुई है। यहां आपको तिब्बत के पठार समेत दशकों पूर्व तक चलने वाले भारत-तिब्बत व्यापार के दुर्गम पैदल पथ हिम्मत तोडऩे के लिए काफी जान पड़ते हैं।
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इस चट्टानी रेगिस्तान को दूर से ही देखकर लगता है कि दुनिया के ना जाने किस कोने में आ गए हैं। यह घाटी हमें एक दूसरी दुनिया में ले जाती जान पड़ती है। लाहौल-स्पीति और लद्दाख के प्रसिद्ध हिमालयी रेगिस्तानों और इन घाटियों के समान ही, नेलांग घाटी का भी गहरा समृद्ध इतिहास और संस्कृति है, जो राजनीतिक अशांति और सीमा संघर्ष में कहीं खो गया है। बताया जाता है कि तिब्बत पर चीन के कब्जे से बहुत पहले, नेलांग घाटी तिब्बत और भारत के बीच एक आवश्यक व्यापार मार्ग था।

इस जगह पर अब भी एक लकड़ी का पुल है, जिसका उपयोग देशों के बीच व्यापार के लिए किया जाता था। भारत-चीन युद्ध के दौरान नेलांग घाटी बनाने वाले गांवों को खाली कर दिया गया था, तब से ऐतिहासिक घाटी पर अंतहीन सेना के शिविरों का कब्जा है। सीमाओं पर तनाव इतना अधिक है कि पर्यटकों को केवल प्रतिबंधित क्षेत्र के अंदर 25 किलोमीटर तक जाने की अनुमति है। जिस क्षण आप नेलांग घाटी के बोर्ड तक पहुंचते हैं, सेना के अधिकारी आपके परमिट की जांच करते हैं और आपको जगह-जगह रोकते हैं।
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नेलांग घाटी में कलाकृतियों, विरासत स्थलों और प्राचीन संरचनाओं का कोई आधुनिक दस्तावेज माजूद नहीं है। थोड़ा और अधिक सुलभ नहीं बनाया गया तो इसकी संस्कृति हमेशा के लिए खो जाएगी। अगर कभी गंगोत्री का रुख करते हैं तो पहाड़ के रेगिस्तान को जरूर देखना चाहिए।

shailendra tiwari

राजनीति, देश-दुनिया, पॉलिसी प्लानिंग, ढांचागत विकास, साहित्य और लेखन में गहरी रुचि। पत्रकारिता में 20 साल से सक्रिय। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली राज्य में काम किया। वर्तमान में भोपाल में पदस्थापित और स्पॉटलाइट एडिटर एवं डिजिटल हेड मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी।

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