यदि लीक हुई रिपोर्ट ही अंतिम रिपोर्ट के रूप में सामने आई तो यह आरोप लग सकते हैं कि चीनी दबाव में ही वुहान लैब को क्लीन चिट दी गई है। डब्ल्यूएचओ के दबाव में आने के आरोप कितने सही हैं, यह अलग मुद्दा है, लेकिन इतना तय है कि डब्ल्यूएचओ यदि यह मान लेता है कि लैब से कोरोना वायरस नहीं फैला, तो चीन कई तरह के अंतरराष्ट्रीय दबावों का सामना करने से बच जाएगा। चीन ने डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट जारी होने से तीन दिन पहले ही वायरस के संबंध में अपनी रिपोर्ट जारी की, तो इसे चीनी सफाई के तौर पर देखा गया।
हालांकि डब्ल्यूएचओ की विशेषज्ञ टीम के पास अब भी इस बात का पुख्ता जवाब नहीं है कि कोरोना वायरस के इंसानों में पहुंचने की असली वजह क्या है? सिर्फ इतना ही कहा है कि वायरस की उत्पत्ति को लेकर आगे रिसर्च की जरूरत है। इस संगठन की अंतिम रिपोर्ट में यदि चीन को क्लीन चिट मिल गई तो वुहान को लेकर किसी नई जांच की संभावना भी क्षीण हो जाएगी। डब्ल्यूएचओ समेत संयुक्त राष्ट्र की दूसरी शीर्ष संस्थाओं पर ताकतवर देशों के दबाव में काम करने का आरोप लगता रहा है। इससे ऐसी संस्थाओं की प्रासंगिकता ही नहीं रहेगी। डब्ल्यूएचओ पर पहले अमरीकी दबाव में रहने का आरोप भी लगा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, आइएलओ और यूनेस्को जैसी संस्थाओं के कामकाज को लेकर भी गाहे-बगाहे सवाल उठते रहे हैं।
न केवल कोरोना जैसी महामारी, बल्कि विश्व समुदाय के आपसी हितों से जुड़ी प्रत्येक जानकारी में पारदर्शिता रखने का दायित्व इन वैश्विक संगठनों के साथ सभी देशों का है। इस संबंध में कोई न कोई मजबूत व्यवस्था तय करनी होगी। कोरोना के मामले में तय है कि समय रहते यदि इस वायरस की भयावहता के बारे में जानकारी हो जाती, तो समूचा विश्व आज इस महामारी से नहीं जूझ रहा होता।