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Tokyo Olympics 2020 : प्रोत्साहन में छिपी है पदकों की उम्मीद

– Tokyo Olympics 2020 : भारतीय महिला हॉकी टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए आस्ट्रेलिया की धुरंधर टीम को जिस तरह के प्रदर्शन से मात दी, उसने बता दिया कि लक्ष्य पर नजर हो तो सफलता का कदम चूमना तय है।
– सेमीफाइनल में पुरुष हॉकी टीम की बेल्जियम से हार के बाद भारत का 41 साल बाद ओलंपिक फाइनल खेलने का सपना भले ही टूट गया, लेकिन पदक की उम्मीद बरकरार है।

नई दिल्लीAug 04, 2021 / 08:28 am

Patrika Desk

Tokyo Olympics 2020 : प्रोत्साहन में छिपी है पदकों की उम्मीद

tokyo olympics 2020 : टोक्यो ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीमों Indian hockey team के प्रदर्शन ने हमारी हॉकी के उस स्वर्णिम दौर की याद ताजा कर दी है जब समूची दुनिया की निगाह हमारे खिलाडिय़ों के प्रदर्शन पर रहती थी। यह भी कहना उचित ही होगा कि टोक्यो ओलंपिक ने भारतीय हॉकी के सुनहरे दिनों की वापसी का संदेश दिया है। खास तौर से भारतीय महिला हॉकी टीम Indian women’s hockey team ने शानदार प्रदर्शन करते हुए आस्ट्रेलिया की धुरंधर टीम को जिस तरह के प्रदर्शन से मात दी, उसने बता दिया कि लक्ष्य पर नजर हो तो सफलता का कदम चूमना तय है। सेमीफाइनल में पुरुष हॉकी टीम की बेल्जियम से हार के बाद भारत का 41 साल बाद ओलंपिक फाइनल खेलने का सपना भले ही टूट गया, लेकिन पदक की उम्मीद बरकरार है।

भारत की ये दोनों हॉकी टीमें कोई-सा भी पदक लेकर लौटें, देश के लिए निश्चित ही गौरव का क्षण होगा। लेकिन सबसे बड़ा संदेश भारतीय टीमों के प्रदर्शन का यह है कि हमें और हमारी सरकारों को खेलों को लेकर सोच में बदलाव करना ही चाहिए। समुचित प्रशिक्षण और मौका मिले तो पदकों को झोली में डालना मुश्किल काम नहीं है। खेल चाहे कोई-सा भी हो, खिलाडिय़ों को मिलने वाले अवसर ही उन्हें आगे बढ़ाते हैं। टोक्यो ओलंपिक में निराशाजनक नतीजों के बीच हमारी बेटियां ही बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। असल बात यह है कि पिछले सालों में हमने हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा तो दे दिया पर लंबे समय तक ओलंपिक में भारत का गौरव बढ़ाने वाला यह खेल बाजारवाद की भेंट चढ़ता रहा।

हॉकी, कबड्डी व फुटबॉल जैसे खेल, जिनमें आसानी से खेल प्रतिभाओं की तलाश हो सकती है उन्हें निचले पायदान पर मान लिया गया। टोक्यो ओलंपिक में हॉकी टीमों के प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया कि हॉकी को गुजरे जमाने का खेल मानना बड़ी भूल होगी। यह मानना होगा कि इन दोनों टीमों के इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे खुद खिलाडिय़ों की हाड़तोड़ मेेहनत है तो कोच द्वारा बेहतरीन प्रशिक्षण, भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) की तैयारी व सरकारों के सहयोग ने भी संयुक्त रूप से काम किया है। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को तो श्रेय मिलना ही है क्योंकि वे अकेले मुख्यमंत्री हैं, जिनकी सरकार कोरोना संक्रमण के दौर में भी भारतीय हॉकी टीम को प्रायोजित करने का खर्च उठाती आ रही है।

पदक हासिल करने के बाद तो खिलाडिय़ों का मान-सम्मान करने के लिए सरकारों में होड़ लग जाती है लेकिन उन्हें इस सम्मान की मंजिल तक पहुंचाने के जतन करने में ये पीछे रह जाती हैं। हॉकी का सुनहरा अतीत ध्यान रखने के साथ इस तथ्य को भी याद रखा जाना चाहिए कि खेलों को समुचित प्रोत्साहन में ही पदकों की उम्मीद छिपी रहती है।

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