अमरनाथ की वार्षिक यात्रा शुरू होने से महज एक सप्ताह पूर्व केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के काफिले पर आतंककारियों ने हमला कर अपने नापाक इरादे जता दिए हैं। हमला भी यात्रा मार्ग में आने वाले पंपोर कस्बे में हुआ। आठ जवान शहीद हो गए और 21 घायल हुए। जवानों ने त्वरित कार्रवाई कर दो हमलावरों को ढेर कर दिया। लेकिन यह हमला हमारी गुप्तचर व्यवस्था में खामियों को जरूर उजागर कर गया। अब गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि दो सदस्यीय समिति को यह जांच करने भेजा जाएगा कि सुरक्षा में कहां चूक रह गई। हमारे यहां अक्सर सांप निकलने के बाद लाठी पीटी जाती है, इस बार भी गृह मंत्रालय जांच समिति भेजकर यही कर रहा है। जबकि अमरनाथ यात्रा की तैयारियां पिछले कई महीनों से चल रही हैं। पूरे मार्ग पर कड़ी चौकसी की बात कही जाती रही है। गृह मंत्रालय दावे करता रहा है कि इस बार बिना इजाजत परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा। फिर कैसे आतंकी इतनी बड़ी वारदात कर जाते हैं? वह भी तब जबकि 40 किलोमीटर दूर ही मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के उपचुनाव जीतने का जश्न चल रहा था। फिर स्थानीय लोगों की भीड़ मेें दो आतंकी बचकर कैसे भाग निकले? जरूर स्थानीय लोगों में उनके कुछ मददगार रहे होंगे। गृहमंत्री राजनाथ सिंह एक दिन बाद एक शहीदी समागम में बोल रहे थे कि पड़ोसी देश भारत में अस्थिरता के प्रयास कर रहा है। वहां से एक भी गोली चली तो हम अपनी गोलियां नहीं गिनेगे। कितनी बार इस प्रकार के वक्तव्य देंगे वे? लोग थक चुके हैं सुन-सुनकर। उसे अपनी जमीन से गोली चलाने की क्या जरूरत। वो तो आपके देश में घुसकर गोलियां चलवा रहा है।हमारे आठ जवान शहीद हुए और पाकिस्तान के उच्चायुक्त बासित दिल्ली में अफसोस जाहिर करने के बजाय रमजान की दुहाई देकर इफ्तार दावत उड़ाने का न्यौता दे रहे थे। इस देश में ही संभव है यह सब। क्यों नहीं बासित को बुलाकर उनकी इस जुर्रत पर विरोध जताया गया? क्यों नहीं जीत के जश्न में डूबी मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने सुरक्षा में ढिलाई के जिम्मेदार स्थानीय अधिकारियों पर अभी तक कार्रवाई की? क्यों नहीं केन्द्र ने उनसे जवाब तलब किया? वहां तो भाजपा भी गठबंधन में शामिल है। फ्रांस या बेल्जियम में एक आतंकी हमले पर आपातकाल लग जाता है, आतंकियों के खिलाफ सरकार ही नहीं पूरा देश एकजुट होकर निकल पड़ता है। आतंकियों और उनकेहितैषियों को ढूंढ निकाला जाता है। फिर क्यों नहीं यहां ऐसी तत्परता दिखती। बयानबाजी और पड़ोसियों को कोसने से कुछ नहीं होगा। देश कार्रवाई देखना चाहता है। कब तक हमारे कंधों पर शहीदों के ताबूतों का बोझ डालकर इम्तहान लेगी सरकार? बहुत हुआ। दो जुलाई से अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है। मोदी और महबूबा सरकार सुनिश्चित करें कि कोई दहशतगर्द इसमें खलल नहीं डाल पाए। वरना देश उन्हें माफ नहीं करेगा।