सवाल यही है कि जमीन खरीद की प्रक्रिया आसान हो गई है तो लोग अभी घाटी की तरफ क्यों आकर्षित नहीं हो रहे हैं? क्या लोगों के मन में अभी भी कश्मीर में अनिश्चितताओं को लेकर कोई आशंका है? ये ऐसे सवाल हैं, जिनके हल खोजे जाने की आवश्यकता है। हालांकि, घाटी को अनिश्चितताओं के माहौल से बाहर निकालने को लेकर सरकार के प्रयास नजर भी आए हैं, लेकिन लोगों का भरोसा जीतने के लिए इन्हें अधिक तेज करने की जरूरत है।
सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू राजनीतिक स्थिरता का है। जम्मू और कश्मीर के साथ केंद्र शासित लदï्दाख भी राजनीतिक तौर पर मजबूत होना चाहता है। यह तथ्य पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में भी दिखा है। केंद्र सरकार कई मौकों पर भरोसा दे चुकी है कि वहां पर विधानसभा चुनाव होंगे और लोकतांत्रिक सरकार ही सत्ता संभालेगी। उसी प्रक्रिया के तहत घाटी में विधानसभा सीटों का परिसीमन भी शुरू हो गया है। लेकिन जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती है, नई सरकार राज्य में जिम्मेदारी नहीं संभाल लेती है, तब तक बाहरी लोगों का भरोसा मजबूत होने की संभावना कुछ कम है।
घाटी में आए दिन हो रही आतंकी घटनाओं ने भी लोगों का भरोसा थोड़ा कमजोर किया है। पिछले दिनों सतपाल निश्चल के साथ हुई घटना ने भी लोगों को वापस सोचने पर मजबूर किया। सतपाल को श्रीनगर में निवास प्रमाण पत्र मिलने के बाद उन्होंने दुकान और मकान खरीदने की पात्रता हासिल की थी और इसके विरोध में आतंकियों ने सतपाल को सरेआम गोली मार दी। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती वहां पर मौजूद लोगों के साथ बाहरी लोगों के मन में विश्वास बहाली है। इसके सहारे ही नए कारोबारी और दूसरे लोग जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करेंगे और वहां पर विकास के सहयोगी बनेंगे। बाहर से लोग जाएंगे तो वे वहां कारोबार को बढ़ाएंगे और स्थानीय लोगों को रोजगार और दूसरी सुविधाएं मुहैया कराने में सहयोगी बनेंगे। ऐसे में सरकार को इन लोगों में तेजी से विश्वास बहाली के प्रयास करने चाहिए।