स्वयं के उत्थान से ही संस्कृति, समाज और राष्ट्र का उत्थान संभव है। अत: सेवा, सत्संग और स्वाध्याय द्वारा अज्ञान निवृत्ति व यथार्थबोध की तत्परता हमारा आरंभिक लक्ष्य होना चाहिए। प्रभु की विशेष अनुकंपा होने पर जीव को मिलता है – सत्संग। सत्संग ही जीव के उद्धार का कारक है। इसे परमात्मा का निज अंग माना गया है। यह एक ज्ञान यज्ञ है। इससे सुविचार का उदय होता है और कुविचार का नाश होता है। सत्संग से सत्य का साक्षात्कार होता है और इससे शीतलता मिलती है। सत्संग का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति कर जन्म-मरण के झंझट से मुक्ति पाना है। इसलिए कुछ पल निकालकर प्रभु व गुरु के श्रीचरणों के प्रति अनुराग पैदा करने की जरूरत है। सत्संग से विवेक होता है। सत्संग प्रभु से साक्षात्कार का सबसे सटीक माध्यम है। सत्संग मनुष्य को जीवन में शांति और मरणोपरांत सद्गति प्रदान करता है।
भारतीय संस्कृति हमेशा से मानवतावादी और नैतिक मूल्यों की रक्षक रही है। भारतीय जीवन-शैली में सेवा का संस्कार रचा-बसा है। यहां मानव सेवा इष्ट की सेवा मानकर की जाती है। उन्होंने कहा कि सेवा कार्य निश्चित धारणा के साथ नहीं हो सकता है। इसके लिए दृष्टि और संवेदनशील विचारधारा की आवश्यकता है। बंधु भाव के साथ जरूरतमंद की पीड़ा, वेदना और दुर्बलता को समझकर सेवा कार्य किया जाना चाहिए। इस भावना के साथ किए गए कार्यों के परिणाम सदैव अच्छे होते हैं।