आत्म-दर्शन: न कंजूसी, न फिजूलखर्ची

इस्लाम ने फिजूलखर्ची और कंजूसी से बचने की हिदायत दी है।

<p>Every year in February, every second earned around 2.5 crores</p>
इस्लाम ने फिजूलखर्ची और कंजूसी से बचने की हिदायत दी है। कुरआन और पैगंबर मुहम्मद साहब (ईश्वर की रहमतें हों उन पर) की शिक्षा है कि ना फिजूलखर्ची करो और ना ही कंजूसी। जिंदगी में दोनों के बीच का रास्ता अपनाओ। कुरआन कहता है, ‘और नातेदार को उसका हक दो मुहताज और मुसाफिर को भी। फिज़ूलखर्ची न करो। निश्चय ही फिजूलखर्ची करने वाले शैतान के भाई हैं और शैतान अपने रब का बड़ा ही कृतघ्न है। – (कुरआन-17: 26-27) कुरआन जहां फिजूलखर्ची के लिए मना करता है, वहीं कंजूसी को भी गलत बताता है और बीच का रास्ता अपनाने की हिदायत देता है। ‘और अपना हाथ न तो अपनी गरदन से बांधे रखो और न उसे बिलकुल खुला छोड़ दो कि निन्दित और असहाय होकर बैठ जाओ।’ (कुरआन-17:29) एक जगह और कुरआन में है- ‘जो स्वयं कंजूसी करते हैं और लोगों को भी कंजूसी करने पर उकसाते हैं, और जो कोई उसकी शिक्षाओं से मुंह मोड़े तो अल्लाह तो निस्पृह है।’
(कुरआन-57:24) हर तरह की फिजूलखर्ची से किस तरह मना फरमाया गया है इसका अंदाजा इस बात से हो जाता है कि पैगंबर मुहम्मद साहब ने फरमाया-‘आप नहर के किनारे बैठकर वुजू (नमाज से पहले हाथ-पैर आदि धोना) बना रहे हों तो भी पानी की फिजूलखर्ची से बचिए।Ó
Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.