आत्म-दर्शन : बाधक भी है तप

तप अग्नि के समान ही है। तप से कर्म भी जल जाते हैं, पर अविवेक होने पर आत्मा को भी नुकसान पहुंच सकता है।

<p>आचार्य विद्या सागर</p>

आचार्य विद्या सागर

हम तप रूपी अग्नि के जरिए कर्मरूपी ईंधन को नष्ट कर सकते हैं। तप को सही तरीके से किया जाए, तो लाभकारी है, वरना यह हानिकारक हो जाता है। अग्नि से खाना पकाते हैं, पर असावधानी से अन्य कुछ भी जैसे हाथ-पांव आदि भी जल सकते हैं। तप अग्नि के समान ही है। तप से कर्म भी जल जाते हैं, पर अविवेक होने पर आत्मा को भी नुकसान पहुंच सकता है।

तप को साधन बनाएंगे, विशुद्धि को लक्ष्य रखेंगे तो तप का लाभ होगा। सांसारिक सामग्री की वांछा रखने पर तप साधन होकर भी बाधक बन सकता है। वांछा न होने पर आत्मा निखर उठता है, कर्म मल छूट जाता है। तप का अर्थ है अशुद्ध से शुद्ध बनने का उपाय। अशुद्ध पदार्थ को शुद्ध बनाने के लिए तपाया जाता है।

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