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पुरातन और विज्ञान : अभिमन्यु और अष्टावक्र

वैज्ञानिक ऐसी डिवाइस विकसित कर सकते हैं, जो वाणी को पकड़ ले। गीता में दर्शाई पांच ज्ञानेन्द्रियों में जीभ को शब्द और वाणी की इंद्री माना गया है। मन में बोलने के भाव आने पर जीभ ही उन्हें उच्चारित करती है।

नई दिल्लीAug 02, 2021 / 09:43 am

Patrika Desk

पुरातन और विज्ञान : अभिमन्यु और अष्टावक्र

प्रमोद भार्गव

(लेखक एवं साहित्यकार, मिथकों को वैज्ञानिक नजरिए से देखने में दक्षता)

गर्भ में ज्ञान से जुड़ी दो कथाएं हमें वाल्मीकि रामायण, महाभारत के अष्टावक्र प्रसंग और उत्तर रामचरित्र में मिलती हैं। अर्जुन पुत्र अभिमन्यु ने गर्भ में रहते हुए ही चक्रव्यूह भेदने की शिक्षा ले ली थी, लेकिन बाहर निकलने का पाठ सुनने से पहले मां सुभद्रा को नींद आ गई। पाठ अधूरा रह गया। दूसरी कथा अष्टावक्र की है। अष्टावक्र ऋषि उद्दालक के शिष्य कड़ोह के पुत्र थे। वेदों का संपूर्ण ज्ञान देने के बाद उद्दालक ने अपनी गुणवती पुत्री सुजाता का पाणिग्रहण कड़ोह के साथ कर दिया। उद्दालक के पुत्र श्वेतकेतु थे, जिन्होंने सात फेरों के रूप में सात वचनों को चलन में लाकर पति-पत्नी के संबंधों को जन्म-जन्मांतर के संबंधों के रूप में स्थापित किया। सुजाता के गर्भवती होने के समय कड़ोह रात-रात भर वेद-पाठ करते रहते थे। वे ऋचाओं का त्रृटिपूर्ण उच्चारण करते थे। गर्भस्थ भू्रण, शिशु रूप में विकसित हो गया, तब पिता के शब्द ध्वनि -तरंगों के माध्यम से शिशु के कानों में पहुंचने लगे। इस शिशु की स्मृति में पूर्व जन्म से ही वेदों की ऋचाएं स्मरण में थीं। अतएव एक दिन शिशु ने पिता को गलत उच्चारण पर टोक दिया। अजन्मी संतान कोख से ही ज्ञान सिखाए, यह बात वेदज्ञ पिता कड़ोह को चुभ गई। सो, क्रोधित पिता ने आवेश में शाप दिया कि ‘तू गर्भ से ही मेरा अपमान कर रहा है। इसलिए तेरे अंग पैदा होने पर आठ स्थानों से वक्रीय (टेढ़े) होंगे। अभिशापित पुत्र जब पैदा हुआ, तो उसका शरीर आठ स्थानों से वक्रीय था। इसी कारण उसका नाम अष्टावक्र पड़ा।

अभिमन्यु और अष्टावक्रकी कथाओं से पता चलता है कि हमारे ऋषि कोई न कोई ऐसी विधियां अवश्य जानते थे, जिनसे वे गर्भस्थ शिशु के स्मृति-क्षेत्र में हस्तक्षेप करने में सक्षम थे। आज भारत और दुनिया के कुछ विश्वविद्यालयों में अभिमन्यु की कथा से प्रेरित होकर गर्भ संस्कार पर काम हो रहा है। अष्टावक्र की कथा से पता चलता है कि गर्भस्थ शिशु बोल भी सकता है। इस कथा से प्रेरणा लेकर वैज्ञानिकों को उपरोक्त सूत्र पकडऩे की जरूरत है। वैज्ञानिक ऐसी डिवाइस विकसित कर सकते हैं, जो वाणी को पकड़ ले। गीता में दर्शाई पांच ज्ञानेन्द्रियों में जीभ को शब्द और वाणी की इंद्री माना गया है। मन में बोलने के भाव आने पर जीभ ही उन्हें उच्चारित करती है।

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