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नीति नवाचार : निजी भागीदारी बदलेगी अंतरिक्ष कार्यक्रम की तस्वीर

– सैटेलाइट मेकिंग प्रक्रिया में निजी क्षेत्र का सहयोग ले रहा है इसरो।इसरो पृथ्वी के पर्यवेक्षण, संचार प्रणाली, मौसम विज्ञान सहित कई तरह के मिशन पर काम कर चुका है। यहां तक कि आज इसरो चंद्रयान, मंगलयान, आदित्य और गगनयान जैसे मिशनों पर काम कर रहा है।

नई दिल्लीOct 21, 2021 / 07:52 am

Patrika Desk

नीति नवाचार : निजी भागीदारी बदलेगी अंतरिक्ष कार्यक्रम की तस्वीर

एम. अन्नादुरई, (प्रतिष्ठित वैज्ञानिक और यूआर राव उपग्रह केंद्र, इसरो के निदेशक रह चुके हैं)

अंतरिक्ष कार्यक्रम ने मानवता को मौका दिया है कि वह इसका इस्तेमाल विज्ञान और सामाजिक कार्यों के लिए करे। कुछ विकसित देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर में अच्छा निवेश हुआ है। साथ ही वहां प्रतिभा की भी भरमार है। डॉ. विक्रम साराभाई की दूरदर्शिता और उसके बाद प्रोफेसर सतीश धवन के प्रयासों से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का विकास इस तरह से किया गया कि सामाजिक लाभ के लिए भी राष्ट्रीय अंतरिक्ष तंत्र बनाया जा सके।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा चलाया जा रहा भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ रहा है। 60 साल लंबी यात्रा में इसरो पृथ्वी के पर्यवेक्षण, संचार प्रणाली, नौपरिवहन और मौसम विज्ञान सहित कई तरह के मिशन पर काम कर चुका है। यहां तक कि आज इसरो चंद्रयान, मंगलयान, आदित्य और गगनयान जैसे मिशनों पर काम कर रहा है। इनके लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और मानव विशेषज्ञ सब स्वदेश में ही उपलब्ध हैं। भारत सरकार ने देश के विभिन्न इसरो केंद्रों पर अच्छी क्षमताओं और योग्यताओं के साथ उत्तम इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाओं के निर्माण में अच्छा खासा निवेश किया है। हालांकि अब डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस के साथ आंतरिक व बाहरी सुरक्षा खतरों जैसी नई जरूरतों ने अधिक संख्या में सैटेलाइट लॉन्च करने की आवश्यकता बढ़ा दी है।

साथ ही मित्र देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए भारत की संभावनाएं भी धीरे-धीरे उभर रही हैं। अतिरिक्त आवश्यकताएं पूरी करने के लिए इसरो में मानव संसाधन पर्याप्त नहीं हैं। इसलिए इसरो ने सैटेलाइट मेकिंग प्रक्रिया के लिए बाहरी उद्योग से सहयोग मांगा है। ये उद्योग कम्पोनेंट स्क्रीनिंग, सैटेलाइट इंटीग्रेशन और टेस्टिंग से जुड़े हैं। जो टीम सफलतापूर्वक इसके लिए चुनी गई है, उसे अवसर दिया गया है कि एक समानान्तर लाइन बना कर ऐसी सैटेलाइट बनाए, जो दोहराने योग्य और नियमित तौर पर लॉन्च करने लायक हों। वर्ष 2016 से जहाजरानी, पृथ्वी पर्यवेक्षण और संचार सैटेलाइट का कार्य बाहरी यानी निजी क्षेत्र से आने वाले कुछ चयनित और प्रशिक्षित लोगों को दिया गया है, जो इसरो केंद्रों में यह काम कर रहे हैं।

सैटेलाइट बनाने के लिए बाहरी उद्योगों को भागीदार बनाने के बाद अब इसरो ने बाहरी औद्योगिक पार्टनर चिह्नित करने शुरू कर दिए हैं, जो शुरुआती चरण में इसरो टीम के साथ पीएसएलवी के लिए आवश्यक क्षमता विकसित करना सीख सकते हैं। इसके बाद जीएसएलवी एम-3 के स्तर तक पहुंच सकते हैं। शुरुआती चरणों में हो सकता है इसरो औद्योगिक साझेदारों की सहायता करे, लेकिन धीरे-धीरे उम्मीद की जा रही है कि वे राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति के तहत राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के सैटेलाइट और लॉन्च व्हीकल के लिए आगे आएंगे।

संभावनाओं से भरे माहौल में इतना सामथ्र्य है कि देश में उत्कृष्ट और प्रतिस्पद्र्धी अंतरिक्ष उद्योग तैयार हो सकें। सैटेलाइट बनाने और उन्हें लॉन्च करने के लिए पूरी तरह से तैयार अंतरिक्ष उद्योग से अपेक्षित है कि वह सस्ता अंतरिक्ष परिवहन तंत्र उपलब्ध करवाए। साथ ही संचार, जहाजरानी और पृथ्वी पर्यवेक्षण में नवाचार के साथ समाधान प्रस्तुत करे। अपेक्षा की जाती है कि इसरो के अनुसंधान एवं विकास संबंधी विभाग नई तकनीक और अंतरिक्ष की नई सीमाएं विकसित करने के सारे प्रयास करेंगे। नई तकनीक व व्यावसायिक रूप से प्रतिस्पद्र्धी सैटेलाइट बनाने और उनके प्रक्षेपण संबंधी कार्यभार उद्योगों पर छोड़ दिया जाएगा। कुशल एवं योग्य मानव संसाधन के लिए अपेक्षित है कि इसरो और निजी उद्योग स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धा के साथ देश के शैक्षणिक संस्थानों से प्रतिभाशाली छात्रों को अच्छे प्रस्ताव देकर चुनें।

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