शब्दों का दरवेश : परदे पर पंडित रविशंकर का राग

नब्बे पार की उम्र में पंडित रविशंकर ने कैलिफोर्निया के लॉन्ग बीच पर बेटी अनुष्का के साथ आखिरी बार सितार बजाया था। तारीख 4 नवंबर और साल था 2012।

<p>शब्दों का दरवेश : परदे पर पंडित रविशंकर का राग</p>

विनय उपाध्याय, (कला साहित्य समीक्षक, टैगोर विश्वकला एवं संस्कृति केंद्र के निदेशक)

कामयाबी और प्रसिद्धि के शिखर पर सितार की ध्वजा थामे इंसानियत का सुरीला पैगाम देने वाले बेमिसाल संगीतकार पंडित रविशंकर का यह जन्मशती वर्ष है। यादों की दराजों को खोलकर उन दस्तावेजों को खंगालने का भी यह वक्त है, जहां एक अजीम फनकार से नया परिचय होता है। किसी महफिल में सितार बजाते पंडित रविशंकर की तमाम छवियों से अलहदा यह छवि संगीत का जादुई रोमांच रचने वाले फनकार की है। बेशक इसे याद किया जाना चाहिए। ..यह पचास का दशक था। हिन्दुस्तान में सिनेमा नई तकनीक, नए सांचे और प्रयोग में ढलकर मनोरंजन की नई दुनिया रच रहा था। मुंबई कलाकारों की छावनी बन गया था। नई चाल-ढाल का सिनेमा उन प्रयोगों से भी गुजर रहा था, जिनमें शास्त्रीय संगीतकारों की कल्पनाशीलता राग-रस की छौंक से दृश्य-छवियों के मर्म को उद्घाटित कर रही थी। इस संदर्भ में रविशंकर सहित अनेक पंडित-उस्तादों की सूची बनाई जा सकती है, लेकिन दुनिया के मानसपटल पर बड़े स्वीकार और शोहरत के साथ दमकते इस सूर्य की, छाया-माया के रुपहले आंगन में आमद की कहानी बड़ी दिलचस्प है।

संगीतप्रेमी रंजनदास से अपनी आखिरी अनौपचारिक भेंटवार्ता में खुलासा किया था कि 1946 में बनी फिल्म ‘नीचानगर’ उनके संगीत जीवन का नया प्रवेशद्वार था। उस जमाने के जाने-माने फिल्मकार चेतन आनंद जो खुद भी संगीत की बारीकियों को बखूबी जानते थे, इस फिल्म के निर्देशक थे। क्लाइमेक्स के दृश्य में बांसुरी और सितार की जुगलबंदी, जिसमें धीमे-धीमे घुल रहा था आंगन का स्वर…। चेतन द्वारा रचे गए उस डायलेक्टिकल मोंटाज के साथ रविशंकर की इस संरचना ने दृश्य में ऐसा असर पैदा किया कि चेतन की आंखों में खुशी के आंसू छलक उठे। चेतन की ही फिल्म ‘आंधियां’ के लिए रविशंकर ने उस्ताद अली अकबर खां के सरोद और पन्ना लाल घोष की बांसुरी के साथ सितार बजाया था। सत्यजीत रे के साथ अपूर संसार, पाथेर पांचाली, अपराजिता, पारस पत्थर, अनुराधा और गोदान का संगीत, रविशंकर के लिए नई रचनात्मक कसौटी था। इसलिए कि कम बोलने वाले सत्यजीत रे, भारतीय और पश्चिम के संगीत के प्रति गहरी दिचलस्पी और ज्ञान से भरे थे। एक वाकया ‘ओ सजना बरखा बहार आई’ गीत से भी जुड़ा है।

सलिल चौधरी ने धुन तैयार की थी, लेकिन इसमें बजते सितार को रविशंकर ने अवांछित और असंगत बताया था। इस बहस ने काफी तूल पकड़ा था, जिसमें एस.डी. बर्मन और मदन मोहन भी शामिल हुए थे।

वे विनम्रता से स्वीकारते रहे- ‘निश्चय ही मैं सलिल चौधरी, एस.डी. बर्मन, मदन मोहन या शंकर-जयकिशन की तरह का संगीतकार नहीं हूं। अपनी सीमा जानता हूं। मुझे इन सभी से मधुर मगर विचारोत्तेजक संगीत रचने की प्रेरणा मिलती रही।’ नब्बे पार की उम्र में पंडित रविशंकर ने कैलिफोर्निया के लॉन्ग बीच पर बेटी अनुष्का के साथ आखिरी बार सितार बजाया था। तारीख 4 नवंबर और साल था 2012। मुंह पर ऑक्सीजन मास्क लगाए पंडितजी व्हील चेयर पर थे। सेहत नासाज थी, पर साज को फनकार ने और फनकार को साज ने थाम रखा था। दोनों की रूहें धड़क रही थीं।

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