पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान एक राजनीतिक मॉडल की तलाश में हैं। पद संभालने से पहले, उन्होंने पाकिस्तान को मदीना राज्य में बदलने (जिसकी कल्पना पैगम्बर मोहम्मद साहब ने कल्याणकारी राज्य के रूप में की थी) की दृष्टि से कई वर्ष मतदाताओं का समर्थन जुटाने में बिताए थे। लेकिन हाल ही में, उन्होंने चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की उपलब्धियों को ‘उल्लेखनीय’ बताते हुए चीनी मॉडल की प्रशंसा की। इतना ही नहीं, उन्होंने सुझाव दिया कि चीन ‘लोकतंत्र की पश्चिमी पद्धति’ के सकारात्मक विकल्प के रूप में काम कर सकता है। गौरतलब है कि आज का चीन ऐसा देश है जहां धर्मपरायण मुस्लिमों की मान्यताओं को खतरे के रूप में देखा जाता है। इमरान पहले भी चीनी राजनीतिक व्यवस्था को सराहते रहे हैं। 2019 में चीन की आधिकारिक यात्रा के दौरान उन्होंने कहा था कि उनकी इच्छा है वह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ‘आदर्शों’ का अनुसरण कर सकें और ‘500 भ्रष्ट लोगों’ को जेल में डाल सकें। वर्षों तक, खान कहते रहे कि उनकी पार्टी देश में कानून का शासन बहाल करेगी, लेकिन लगता है अब न्याय की तर्कसंगत और निष्पक्ष प्रक्रिया उन्हें असुविधाजनक अड़चन लगने लगी है।
पाकिस्तान में चीन के साथ दोस्ती पर व्यापक सहमति है। राजनीतिक और सैन्य रहनुमाओं ने समान रूप से इस दोस्ती को ‘हिमालय से भी ऊंचा’, ‘समुद्र से भी गहरा’ और ‘शहद से भी मीठा’ निरुपित किया है। लेकिन खान की ताजा टिप्पणियों ने पाकिस्तान में विवाद को जन्म दे दिया है क्योंकि इनमें उनकी पाकिस्तान को ठीक वैसे ही चलाने की मंशा है, जैसे कि सीसीपी चीन को चलाता है। पाकिस्तान में संसदीय लोकतंत्र है। 1973 का संविधान देश का सर्वसम्मत दस्तावेज है जो अधिकार-आधारित ढांचे के तहत विभिन्न जातियों और राजनीतिक विचारधाराओं वाले लोगों को अनुशासित और सुगठित रखता है। इस संविधान पर आदिवासी बलूच बुजुर्गों से लेकर इस्लामिक मौलवियों, विद्वानों ने दस्तखत किए थे। सैन्य शासक इसकी अवहेलना करते रहे। 1977 में जब जनरल जिया-उल-हक ने तख्तापलट कर सत्ता पर कब्जा किया, तो दावा किया कि वह संविधान को फाड़कर नष्ट कर सकते हैं। दो दशक बाद जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी यही दोहराया – ‘मुझे लगता है, संविधान कूड़ेदान में फेंकने के लिए कागज का एक टुकड़ा भर है।’ आज मुशर्रफ निर्वासन झेल रहे हैं, उन्हें देशद्रोह के लिए मौत की सजा हो चुकी है।
कहने की जरूरत नहीं, खान की पार्टी व गठबंधन सहयोगियों का संसद में बहुमत मुश्किल से है। वे पसंदीदा कानून बमुश्किल ही पारित कर सकते हैं। इमरान विपक्ष में थे तो लोकतांत्रिक थे, अब निरंकुश शक्तियों के लिए तरसते प्रतीत होते हैं। वह मीडिया की आजादी के प्रबल समर्थक थे, पर अब आलोचनात्मक और स्वतंत्र आवाजों को दबाने के लिए कानून की मांग कर रही है।
इमरान के नायकों में से एक अल्लामा इकबाल ने अपनी गजलों-शायरियों में नील के तट का जिक्र किया है तो काशगर की रेत का भी। काशगर का ज्यादातर इलाका चीन के झिंजियांग में उइगर शहर में है। आज के काशगर में सीसीपी, मुस्लिम समाज को व्यवस्थित तरीके से खत्म कर रही है। मुस्लिमों की दुर्दशा पर खान के भाषणों में इकबाल का संदर्भ अक्सर सुनने में आता है, पर चीन के मुस्लिमों की बात पर इमरान चुप्पी साध जाते हैं। इस तथ्य के बावजूद कि झिंजियांग में छह सौ से अधिक पाकिस्तानी लड़कियों को पत्नियों के रूप में चीनी पुरुषों को बेचा गया है। कोई शक नहीं, पाकिस्तान के चीन के साथ महत्त्वपूर्ण संबंध हैं, पर यह पाकिस्तान की संवैधानिक व्यवस्था की कीमत पर नहीं होना चाहिए। चीन से हम कई बातें सीख सकते हैं, लेकिन वहां का एकदलीय शासन इन बातों में से एक नहीं है।