इजरायल के कदम ही उससे छीन लेंगे ‘बचाव का हक’

पश्चिमी देशों के नेताओं के इजरायल-समर्थक बयान लंबे समय से इस राष्ट्र की दिशा को लेकर अपनी असहज अनुभूति को पीछे करते रहे हैंहमास से कहीं अधिक जोखिमपूर्ण हैं अंदरूनी चुनौतियां…

<p>इजरायल के कदम ही उससे छीन लेंगे &#8216;बचाव का हक&#8217;</p>

पंकज मिश्रा, स्तम्भकार

इजरायल और हमास एक बार फिर युद्ध के मैदान में आमने-सामने हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे ये दृश्य पहले भी कई बार देखे जा चुके हैं, जिनमें उग्रवादी गुट इजरायली क्षेत्र पर रॉकेटों से हमला कर रहा है और उन पर गाजा पट्टी में जवाबी कार्रवाई हो रही है। इस सब के बीच पश्चिमी देशों के राजनेता पुराना राग अलाप रहे हैं कि ‘इजरायल को अपनी सुरक्षा करने का पूरा अधिकार है।’ निस्संदेह यह सच है, पर यह भी स्पष्ट है कि इजरायली कार्रवाई से हमास भयभीत नहीं है। मॉब लिंचिंग और सड़कों पर अरबों व यहूदियों के बीच लड़ाई की तस्वीरों से जाहिर है कि इजरायल का वर्तमान व भविष्य अंदरूनी चुनौतियों से निपटने पर टिका है।

हर पांच में से एक इजरायली नागरिक अरब का बाशिंदा है। ये 1948 मेें इजरायल बनने के बाद यहां आकर बसे फिलिस्तीनियों के वंशज हैं। 2018 में लाए गए विधेयक में इजरायल की यहूदी आबादी को सर्वोपरि बताया गया, उसके बाद से ही स्वयं को वंचित मान बैठा इजरायली अरब समुदाय अब खुल कर विद्रोह पर उतर आया है। यहूदियों और अरब समुदाय के बीच हिंसा के इस दौर को कमतर नहीं आंका जा सकता। इजरायल के लिए बाहरी चुनौतियां भी बढ़ती जा रही हैं। पश्चिमी देशों के नेताओं के इजरायल-समर्थक बयान लंबे समय से इस राष्ट्र की दिशा को लेकर असहज अनुभूति को पीछे करते रहे हैं। जर्मनी की चांसलर अंगीला मेर्कल ने २०११ में इजरायल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव, जिसका कि जर्मनी और यूएस ने अभूतपूर्व ढंग से समर्थन किया था, के बाद तनाव की वजह को रेखांकित किया था। नेतन्याहू ने ओबामा प्रशासन को तब सरेआम लताड़ा भी था जब उसने वेस्ट बैंक में इजरायली बस्तियां बसाने के कार्यक्रम को रोकने की कोशिश की थी। नेतन्याहू की अदूरदर्शिता का एक और उदाहरण यह है कि पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने उन्हें कई कूटनीतिक मोर्चों पर जीत दिलवाई थी, इसलिए उनका देश रिपब्लिकन्स के अधिक करीब हो गया।

ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु समझौता रद्द कर दिया, अमरीकी दूतावास को विवादित शहर यरुशलम स्थानांतरित कर दिया, फिलिस्तीनियों को अमरीकी सहायता पर रोक लगा दी और खाड़ी के अरब देशों के साथ इजरायली समझौतों का निरीक्षण किया। लेकिन जब इजरायली पुलिस ने इस्लाम के तीसरे सबसे पवित्र धार्मिक स्थल पर हमला किया, तो ट्रंप के नजदीकी अरब शासक भी चुप न रह सके थे। इजरायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर तटस्थ रवैया अपनाने वाला बाइडन प्रशासन भी बहुत कुछ नहीं कर सका, क्योंकि अपनी वैक्सीन कूटनीति के दम पर उत्साहित चीन इस मामले पर पहले ही हस्तक्षेप के लिए आगे आ गया। चीनी विदेश मंत्री वांग यी की मध्य-पूर्व के छह देशों की यात्रा से जाहिर है कि चीन क्षेत्र के सर्वाधिक जटिल मुद्दे में संलिप्त होना चाहता है। चीन, फिलिस्तीनी और इजरायली नेताओं के बीच शांति वार्ता का प्रस्ताव रख चुका है। ईरान के साथ चीन की बढ़ती घनिष्ठता को देख यह संदेह बाकी नहीं रहना चाहिए कि चीन के किसका पक्ष लेने की संभावना है।

आज पश्चिम की युवा पीढ़ी पुराने समय से चले आ रहे श्वेत वर्चस्व संबंधी अपराधों के बारे में जान रही है और क्रूरता व अन्याय के मौजूदा संगठित स्वरूप को भी देख रही है। मूर्तियां गिरा दी गईं, पाठ्यक्रम बदल दिए गए। ह्युमन राइट्स वॉच ने हाल ही रिपोर्ट ‘मानवता के खिलाफ रंगभेद और अत्याचार के अपराध’ में इजरायल को दोषी ठहराया। युवावस्था में उत्साही जियोनिस्ट रह चुके इतिहासकार टॉनी जुड्ट ने 2003 में चेताया था कि यहूदी राष्ट्र का विचार बेमानी है। बेशक इजरायल को हमास के रॉकेटों से बचाव का हक है, पर यह भी सही है कि मौजूदा वैश्विक खतरों के बीच इजरायल के लिए स्वयं का बचाव करना मुश्किल होता जा रहा है।

ब्लूमबर्ग

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.