चूंकि पेगेसस स्पाइवेयर बनाने वाली इजरायल की इस कंपनी ने खुद स्वीकार किया है कि वह सिर्फ सरकारों को ही अपनी मिलिट्री ग्रेड स्पाइवेयर टेक्नोलॉजी बेचती है, इसलिए जासूसी का सीधा आरोप सरकारों पर ही लगना लाजिमी है। और, यह सरकारों को ही बताना है कि इन आरोपों में कोई सच्चाई है अथवा नहीं। फ्रांस सरकार ने तो जासूसी के इस प्रकरण की जांच के आदेश भी दे दिए हैं। सवाल केवल भारत का ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों में लोगों की निजता पर होने वाले हमलों का है। किसी भी व्यक्ति के फोन में घुसकर उसकी निजी जिंदगी में तांक-झांक के ऐसे प्रयास उस वक्त और डराने वाले हो जाते हैं जब किसी भी तरह की जासूसी का इस्तेमाल सुरक्षा कारणों से इतर किया जाता हो। खास तौर पर सियासी प्रतिद्वंद्वियों और अन्य प्रभावशाली लोगों के खिलाफ ऐसा होता हो तो इसे वैश्विक खतरे के रूप में ही देखा जाना चाहिए। क्योंकि खबरें तो इस बात की भी हैं कि पेगेसस जैसे कुछ दूसरे सॉफ्टवेयर भी दुनिया भर में सरकारों और सत्ता दलों को बेचे जा रहे हैं। एनएसओ के दावे के विपरीत इस तरह का सॉफ्टवेयर यदि निजी स्तर पर सरकारों की जानकारी के बिना इस्तेमाल हो रहा हो तो यह और भी खतरनाक है। फोन टेपिंग से भी ज्यादा संवेदनशील फोन हैकिंग के ऐसे मामले सचमुच जांच का विषय हैं। जो खुलासा किया गया है उसमें अभी सूची ही सामने आई है। कितनों की निजी जानकारी जुटाई गई, यह अभी साफ नहीं है।
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि इंटरनेट अब लोगों की जीवनचर्या का हिस्सा बन चुका है। लेकिन साइबर स्पेस की व्यापकता कई नए खतरे भी सामने लेकर आती है। देखा जाए तो साइबर सुरक्षा का मसला दुनिया के प्रत्येक देश के लिए चुनौती बन कर सामने आया है। ऐसे में साइबर स्पेस के जरिए निजता का हनन कहीं भी होता है तो चिंता का विषय है।