देश की व्यवस्था का आईना, अपराधी-नेता गठबंधन टूटेे

‘अंग्रेजी लोकतंत्र’ पर प्रतिक्रियाएं
 

अंग्रेजी (विदेशी) मानसिकता और इसके परिणाम स्वरूप देश में व्याप्त बुराइयों पर प्रहार करते पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी के अग्रलेख ‘अंग्रेजी लोकतंत्र’ को प्रबुद्ध पाठकों ने देश की व्यवस्था का हूबहू चित्रण बताया है। उन्होंने कहा है कि जब तक हम इस मानसिकता से ऊपर नहीं उठते, देश में सुधार की उम्मीद नहीं कर सकते। पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से
सलीके से बताया अंग्रेजी लोकतंत्र
देश के स्वतंत्र होने के बावजूद आज अंग्रेजी हुकूमत मौजूद है। कहने के लिए भले ही अंग्रेज नहीं हैं, लेकिन वह वास्तविकता है कि कई कल कारखाने आज अंग्रेजी हुकूमत ही चला रही है। सरकारी मानसिकता, अपराध, भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। इस बात को कोठारी ने बेहद सलीके के साथ पाठकों के बीच में रखा है।
डॉ. शोभना खरे, सेवानिवृत्त प्राध्यापक, जबलपुर
मन की पीड़ा की अभिव्यक्ति
कोठारी का अग्रलेख ‘अंग्रेजी लोकतंत्र’ पढऩे के बाद मन में कई तरह के सवाल उठे। कोठारी ने तो अपने मन की पीड़ा, जो देश की वास्तविकता है, को लेख के माध्यम से व्यक्त कर दिया। इस कड़वी सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन क्या इससे छुटकारा पाया जा सकता है। हमारे देश की राजनीति धर्म जाति से ऊपर नहीं उठ पा रही है। देश को तोडऩे के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने जो धर्म जाति की फूट डालने का बीज बोया था, वह अब पौधा बन चुका है। राजनीतिक दल धर्म, जाति, वंश, क्षेत्र के नाम पर जनता को गुमराह कर अपनी राजनीति सेक रहे हैं।
रोशनी प्रसाद मिश्रा, रंगकर्मी लोक कलाकार, सीधी
अपराधी जनप्रतिनिधियों के लिए आईना
देश की राजनीति में कई अपराधी शामिल हैं जो सांसद, विधायक आदि बन बैठे हैं। कोठारी का यह अग्रलेख ऐसे लोगों के लिए आईना है। वास्तव में हमने सोचा था देश की आजादी के बाद हमारा संविधान होगा, हमारी संस्कृति होगी, हम स्वयं अपने विकास को परिभाषित करेंगे, लेकिन है सब इसके विपरीत।
रविंद्र महाजन, समाजसेवी, लोधीपुरा, बुरहानपुर
‘दो टूक सच्चाई’
कोठारी द्वारा हमारे देश में लोकतंत्र की वर्तमान दशा की दो टूक सच्चाई बयान करते हुए इसे अंग्रेज़ी लोकतंत्र कहा जाना एकदम सटीक है। स्वार्थपरकता ने देशप्रेम को भी पीछे धकेल दिया है। सच है कि अत्याचार और अंग्रेजी मानसिकता ने लोकतंत्र को पैर जमाने नहीं दिया। आज भी सामाजिक एवं आर्थिक भेदभाव मौज़ूद है। भ्रष्टाचार में कहीं कोई कमी दिखाई नहीं देती है।
डॉ. शरद सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार, सागर
आजादी की परिकल्पना असाकार
सही मायने में देश को आजादी मिली ही नहीं। देश के भविष्य को लेकर कोई भी नहीं सोच रहा है। देश आजाद होने के बाद जिस तरह से परिकल्पना की जा रही थी, वह साकार नहीं हो सकी। देश में आज अपराध, बेरोजगारी बढ़ते जा रहे हैं। इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है।
संजय साकरे, व्यापारी, बैतूल
अपराधी-राजनेता गठबंधन तोडऩा जरूरी
कोठारी ने अपने आलेख में सही लिखा है कि आज लगभग आधे अपराधी सांसद जनता के प्रतिनिधि बने बैठे हैं। इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। निर्वाचन आयोग भी सरकार का ही होता है। इस तरह के मामलों में न्यायपालिका भी मूक हो जाती है। हकीकत में चुनाव में जब तक अपराधियों का दखल बंद नहीं होगा, तब तक अपराधियों की राजनीति में घुसपैठ बंद नहीं होगी। इस गठबंधन को तोडऩा जरूरी है।
सुरेन्द्र तिवारी, रिटायर्ड नेवी ऑफिसर, भोपाल
भगवान ही मालिक है
केंद्र सरकार विदेशी नियम केवल नेता और अधिकारियों के लिए लागू करती है। जनता और कारोबारियों पर विदेशों जैसे टैक्स लागू करती है, लेकिन सुविधा और रोजगार के मामले में सरकार विदेश के नियम लागू नहीं करती है। भ्रष्टाचार चरम पर है। इस पर कोई अंकुश नहीं है। यदि समय रहते इस दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं हुई हो तो कर्ज से लदे देश का भगवान ही मालिक है।
उमेश जैन, जिलाध्यक्ष, शिवसेना, सिवनी
संस्कृति के अनुरूप नहीं ढल पाए हम
अंग्रेजी लोकतंत्र पर लिखा गया लेख हमारी व्यवस्था को आईना दिखाने के काफी है। अंग्रेजी तंत्र से मुक्ति पाने के बाद हम आज भी अपनी संस्कृति के अनुरूप नहीं ढल पाए। यही वजह है कि हम अपने देश के विकास को परिभाषित नहीं कर सके। न हमने अपनी जीवनशैली में बदलाव किया, न हम बेहतर सोच रख पाए।
नकुल जैन, अभिभाषक, श्योपुर
स्वच्छ छवि के लोग प्रतिनिधित्व करें
अफसरशाही और नेताओं की बिरादरी में जब तक सच्चे और ईमानदार के साथ स्वच्छ छवि के लोग प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे, तब तक देश के लिए कुछ भी अच्छा नहीं हो सकता। केवल जनता से उम्मीद की जाती है कि वह अच्छे नेता चुने या अच्छे अधिकारियों का साथ दे, लेकिन जब तक नेतागिरी और अफसरशाही में अच्छे लोग ही नहीं होंगे तो जनता आखिर किसको चुने।
मुकेश अनुरागी, साहित्यकार, शिवपुरी
योग्य जनसेवक भी चुनने होंगे
पत्रिका में गुलाब कोठारी के लेख अंग्रेजी लोकतंत्र ने देश की स्थिति का सटीक चित्रण किया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित होने वाले अधिकांश अभ्यर्थी अंग्रेजी माध्यम में पढ़े होते हैं। क्या ये लोग भारत की अस्सी फीसदी मध्यम व निम्नवर्गीय जनता की समस्याओं को आसानी से समझ सकते हैं? दिलचस्प तथ्य यही है कि अंग्रेजी मानसिकता वाले लोग वातानुकूलित कक्षों में बैठकर गरीबी और बेरोजगारी निवारण की योजनाएं बनाकर उन्हें क्रियान्वित करते हैं। हमें योग्य जनसेवक भी चुनने होंगे जो जनता की मूलभूत समस्याओं से वाकिफ हों। साथ ही बिना पक्षपात के इन समस्याओं को हल करने की क्षमता भी रखते हों।
– देवकिशन कुमावत, नाथद्वारा, राजसमन्द
जुड़ी है आम आदमी की पीड़ा
“अंग्रेज़ी लोकतंत्र ***** अग्रलेख खरी- खरी कहने वाला है। ऐसे हालात में इस तरह के आलेख मन को सुकून देते हैं। कोई तो है जो आम आदमी की पीड़ा को समझता है। पत्रिका में ऐसे आलेख ही कुछ उम्मीद की किरण दिखाते हैं जो समय-समय पर सरकारों को चेताने का काम करते हैं।
जयंत बाहेती, जयपुर

जनता को ही होना होगा जागरूक
आज संविधान के नाम पर लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई जा रही है। आज के नेता और अफसर मिलकर लोकतंत्र का शोषण कर रहे हैं और जनता को ***** बनाकर ये येन केन प्रकारेण सत्ता में बने रहना चाहते हैं। लोकतंत्र से तो अच्छा अंग्रेजों का और सामंतों का शासन था, ऐसा प्रतीत होने लगा है। जनता जागरूक होकर ऐसे षडयंत्रों का मुकाबला करें इसके लिए प्रदेश स्तर पर संगठन बनना चाहिए जिसे मीडिया का भी सहयोग मिले। अंगे्रजी मानसिकता वाले चेहरों को बेनकाब कर आम आदमी को शोषण से बचाना होगा।
दयाल सिंह शेखावत सीकर
अंग्रेजी मानसिकता के गुलाम
गुलाब कोठारी के आलेख से लगा कि वास्तव में हम आजाद होकर भी अंग्रेजी मानसिकता के गुलाम बने हुए हैं। इतना ही नहीं बल्कि अंग्रेज हुकूमत से भी बदतर हालात देश के हो गए हैं। दुनिया के सबसे बड़े संविधान में भी नीति नियंताओं ने अपनी सुविधा के अनुसार संशोधन कर दिए हैं। जब हमारी विधायिका में ही अपराधी पहुंचते रहेंगे तो अपराधों के खिलाफ सख्त कानून बनाने की कल्पना ही व्यर्थ है।
अंजनी शर्मा, वाया इ-मेल

shailendra tiwari

राजनीति, देश-दुनिया, पॉलिसी प्लानिंग, ढांचागत विकास, साहित्य और लेखन में गहरी रुचि। पत्रकारिता में 20 साल से सक्रिय। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली राज्य में काम किया। वर्तमान में भोपाल में पदस्थापित और स्पॉटलाइट एडिटर एवं डिजिटल हेड मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी।

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