प्रवासी  श्रमिकों को घर में ही मिले रोजगार

 
अपने घरों की और पलायन कर आये श्रमिकों को कुटीर उद्योगों से या कृषि से सम्बंधित छोटे उद्योगों से जोड़ना होगा। साथ ही इनके बच्चों की शिक्षा -दीक्षा की तरफ भी सोचना होगा।

<p>प्रवासी मजदूरों ने रजिस्ट्रेशन के लिए किया आवेदन, दो दिन बाद भी निगम नहीं कर पाया स्क्रूटनी</p>
आर.के. सिन्हा, पूर्व सांसद व टिप्पणीकार
लोकडाउन के दौर में अपने घरों की तरफ कूच करने वाले प्रवासी मजदूर अपनी मंजिल पर तो किसी तरह पहुंच गए हैं। अब राज्य सरकारों को उनके लिए रोजगार की व्यवस्था करने की चुनौती बड़ी है. सवाल यह उठता है कि अगर उत्तर प्रदेश सरकार सवा करोड़ लोगों को रोजगार दे सकती है, तो शेष राज्य क्यों नहीं। जाहिर है कि अब स्थानीय सरकारों को मजदूरों को उनके घरों के आसपास ही रोजगार के विकल्प देने होंगे। इन्हें कुटीर उद्योगों से या कृषि से सम्बंधित छोटे उद्योगों से जोड़ा जा सकता है। इन मजदूरों के बच्चों की शिक्षा की तरफ भी सोचना होगा। इनके बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलवाने की पहल भी सरकारें करेंगी ही ।
जरा याद करें उन डरावनी और दिल दहलाने वाली छवियों को, जो हम सब वैश्विक महामारी कोरोना की चेन को तोड़ने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के तुरंत बाद देख रहे थे। उस दौरान राष्ट्रीय राजमार्गों पर हजारों प्रवासी मजदूरों के काफिले अपनी मंजिल की तरफ बढें चले जा रहे थे। उन मजदूरों में उतर प्रदेश के मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा लाखों में थी। ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, हैदरा बाद, सूरत, बड़ोदा, अहमदाबाद , अ मृतसर, लुधियाना, जालंधर, पटिया ला, इंदौर, चडीगढ़ वगैरह से अपनी पैतृक गांवों की तरफ जा रहे थे । इन्हें तब कुछ भी नहीं पता था कि इन्हें अपने घर-गांव में जाकर कोई रोजगार भी मिल सकेगा। यानी इनका भविष्य गहरे अंधकार में डूबा हुआ लग रहा था।
श्रमिकों के कौशल व पूर्व अनुभव का डेटा तैयार करने का फायदा यह मिला कि उत्तर प्रदेश सरकार में तो रोजगार सृजन का काम भी शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान में उत्तर प्रदेश सरकार करीब 60 लाख लोगों को गांवों के विकास से जुड़ी योजनाओं में तो करीब 40 लाख लोगों को छोटे उद्योगों यानी एमएसएमइ में ही रोजगार देने जा रही है। इसके अलावा स्वरोजगार के लिए भी हजारों उद्यमियों को मुद्रा योजना के तहत करीब 10 हजार करोड़ रुपए का ऋण दिया जा रहा है।
एक बात समझ लेनी चाहिये कि जब सरकारें इस तरह के जनकल्याणकारी काम करती है, तब ही उसका इकबाल बुलंद होता है। इंग्लैंड , फ्रांस, इटली व स्पेन जैसे विकसित देश भी सीख सकते हैं कि कोरोना जैसी महामारी से अपने लोगों को बचाने के उपाय किस तरह से किए जाएं। हमें यह भी याद रखना है कि देश के डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ, सफाई और सुरक्षा कर्मचारी, पुलिसकर्मी, आंगनबा ड़ी कार्यकर्ता, बैंक और पोस्ट ऑफिस कर्मी ,परिवहन विभाग आदि मुलाजिमों ने पूरी निष्ठा के साथ अपना योगदान इस संकट की घड़ी में किया है ।

हालांकि उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूरों और बेरोजगारों के लिए तो राहत भरी खबर आ गई है, अब इसी तर्ज पर प्रयास तो बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छ्तीसगढ़, झारखंड आदि राज्यों को भी शीघ्र कोशिशें करनी होंगी ताकि कोरोना से मारे-मारे घूम रहे मजदूरों को कोई काम-धंधा मिल जाए।

shailendra tiwari

राजनीति, देश-दुनिया, पॉलिसी प्लानिंग, ढांचागत विकास, साहित्य और लेखन में गहरी रुचि। पत्रकारिता में 20 साल से सक्रिय। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली राज्य में काम किया। वर्तमान में भोपाल में पदस्थापित और स्पॉटलाइट एडिटर एवं डिजिटल हेड मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी।

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