चुनौतियां कम नहीं भारतीय डेयरी उद्योग के सामने

विश्व दुग्ध दिवस आज भारत दूध का न केवल विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है अपितु आने वाले समय में भी इसके सबसे तेज़ी से बढ़ने का अनुमान है। डेयरी क्षेत्र को आर्थिक उदारीकरण व आयात से बचाकर रखना दीर्घकाल में शायद ही संभव हो। इसलिए देश में दुग्ध उत्पादन व दुग्ध उत्पादों को प्रतिस्पर्धात्मक बनाना होगा।
 

<p>Dairy gives cattle farmers a shock of 2 rupees a liter in bhilwara</p>
आज भी भारत की लगभग 60 % आबादी कृषि एवं पशुपालन सम्बन्धी कार्यों से जीविकोपार्जन करती है। महामारी कोविड- 19 के दौरान एक और जहाँ बेरोज़गारी अप्रैल, २०२० में 27 % पहुच गयी, कृषि क्षेत्र मे ६० लाख अधिक (5 %) किसान बढ़ें है. क्योंकि लोकडाउन की अवधि मे बड़ी संख्या में लोगों का पलायन शहरोँ से ग्रामीण क्षेत्रो की ओर अभी भी जारी है। भारत का डेयरी उद्योग लगभग 10 करोड़ से भी अधिक् डेयरी-उत्पादकों की जीविका से जुडा होने के कारण सामाजिक-राजनैतिक दृष्टि से भी अत्यधिक संवेदनशील हैं एवं भारत की आत्मनिर्भरता हासिल करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

अभी तक भारत डेयरी क्षेत्र में आर्थिक उदारीकरण व आयात का विरोध करता रहा है। इसी कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतिम चरण में RCEP से अलग रहने का निर्णय लिया एवं अमेरिका से भी कृषि व डेयरी क्षेत्र में कोई समझौता नहीं हो पाया। परंतु बदले हुए परिवेश में, विश्व व्यापार संगठन (डबल्यूटीओ) तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर द्विपक्षीय व बहुराष्ट्रीय राजनैतिक संबंधो के चलते भारत के लिए डेयरी क्षेत्र को आर्थिक उदारीकरण व आयात से बचाकर रखना मध्यम एवं दीर्घकाल में शायद ही संभव हो। अतः देश में दुग्ध व दुग्ध उत्पादों को प्रतिस्पर्धात्मक बनाना होगा ।
ऐसे में दूध व इसके उत्पादों के लागत मूल्यों पर नियंत्रण एक प्रमुख चुनोती है । भारतीय दुधारू पशुओ की कम उत्पादकता दूध की उत्पादन लागत में वृद्धि का एक प्रमुख कारण है । प्रमुख दूध उत्पादक देशों में भारत में प्रति पशु मात्र 1.33 टन ही दूध होता है (2018) ; जबकि अमेरिका में 10.47 टन प्रति पशु व यूरोपीय संघ में 7.06 टन प्रति पशु दूध का उत्पादन होता है। दूध उत्पादन में भारी अंतर और दूध के लिए अन्य जानवरों पर निर्भरता जैसे कि भेड़, बकरी और ऊंट जो दुधारू गायों की तुलना में दूध की उत्पादकता कम होती है, विकसित और विकासशील देशों, विशेष रूप से भारत, के दूध उत्पादन के बीच भारी असमानता के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। जिसे हमें प्रोद्योगिकी उपयुक्त प्रयोग व नवोन्मेष से हल करना होगा। अतः भारतीय डेरी उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए उत्पादक्ता में सुधार की आवश्यकता है।

अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में आने वाले दशक में मूल डेयरी उत्पादों जैसे सम्पूर्ण मिल्क पाउडर व बटर की कीमत लगभग स्थिर रहने की संभावना है। जबकि भारत में दुग्ध उत्पादन के लिए इनपुट की कीमतों में बढ़ोतरी चिंता का विषय है। ऐसे में दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादों की लागत में वृद्धि को रोकना भारतीय डेयरी उद्योग के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए हमें अपनी आपूर्ति श्रंखला (सप्लाइ चैन) की विसंगतियों का बारीकी से अध्ययन कर उसे और अधिक दक्ष बनाना होगा जिससे न केवल हमारे उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार आ सके बल्कि लागत पर भी नियंत्रण पाया जा सके।
कोविड -19 से उत्पन्न विश्व भर के लॉक-डाउन की परिस्थितियों में दूध की आपूर्ति बाज़ार की मांग की तुलना में कहीं अधिक बढ़ गयी है जिससे दुनिया भर में दूध की कीमतों में गिरावट आई है। यह दुग्ध उत्पादक किसानो एवं डेरी संयंत्रो, दोनों के लिए ही गम्भीर चिन्ता का विषय है । मांग व आपूर्ति के इस अंतर को राज्य व केन्द्र सरकारों को दुग्ध उत्पादकों, प्रसंस्करण संयंत्रो, एवं अन्य stakeholders सहयोग से एक संतुलन स्थापित करना होगा जिससे दूध उत्पादन के लिए सभी के आर्थिक हितों का समायोजन किया जा सके एवं डेरी उद्योग निरन्तर आगे बढ़ सके ।

को-ओपरेटिव के अतिरिक्त निजी क्षेत्र की भी सक्रिय सहभागिता, नवोन्मेष व अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में विपणन क्षमता विकसित करने के लिए अपरिहार्य है। वक्त आ गया है जब वश्विक उदारीकरण के इस दौर में भारतीय डेयरी उद्योग को संकीर्ण दायरों से निकलकर अपने आप को प्रतिस्पर्धात्मक बनाना होगा तभी हम देश ही नहीं दुनिया भर में भारतीय दुग्ध एवं दुग्ध-उत्पादों का स्थान बनाने में सफल होंगें।

सामाजिक व सांस्कृतिक समृद्धि
संयुक्त राष्ट्र की अधीनस्थ संस्था, खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ.ए.ओ) ने वर्ष 2001 से दूध की वैश्विक उपयोगिता के महत्व को समझते हुए प्रतिवर्ष 1 जून को दुनिया भर में विश्व दुग्ध दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया जिससे कि विश्वभर में दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादों की गुणवत्ता का प्रसार किया जा सके। भारत की सामाजिक- सांस्कृतिक विरासत में तो प्राचीन कल से ही दुग्ध एवं इनके उत्पाद नैसर्गिक रूप से समाहित है। वैदिक काल से ही भारत में गाय को अत्यधिक महत्वपूर्ण मन जाता है। दूध एवं गाय का महत्व श्रीमद् भगवतगीता के ध्यान में स्वतः ही परिलक्षित होता है।

‘सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपाल नन्दनः।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्।।
सारे उपनिषद् गायें हैं, श्रीकृष्ण दूध दुहने वाले ग्वाले हैं, पार्थ (अर्जुन) बछड़ा हैं, गीता रुपी दुग्ध सर्वश्रेष्ठ अमृत है जिसका विशुद्ध ज्ञानवान मात्र ही उपभोक्ता हैं। अंतर्राष्ट्रीय डेयरी फेडरेशन के अनुसार भी भारत में 2000 ई.पू. गौ-पालन शुरू हुआ जबकि यूरोप में सन 500 ए डी में गौ-पालन की शुरुआत हुई। यूएस में तो सर्वप्रथम गाय सत्रहवी शताब्दी में लाई गयी जबकि चीन व अन्य दक्षिण एशियाई देशों में पिछली शताब्दी से पूर्व दूध पीने व इसके उत्पादों को बनाने की तकनीक एवं परंपरा तक नहीं थी।

दुग्ध उत्पादन में भारत की आत्म-निर्भरता:
अत्यधिक समृद्ध सांस्कृतिक, सामाजिक एवं दुग्ध उत्पादन के कौशल के बावजूद कालांतर में भारत दुग्ध उत्पादन में धीरे-धीरे पिछडता गया और आज़ादी के बाद कई दशक तक दूध का एक आयातक देश बन गया। कुछ ही दशक पूर्व दुग्ध आयात पर निर्भर भारत, डेयरी क्षेत्र में को-ओपरेटिव पर आधारित अपनी अनूठी रणनीति के कारण आज 186 मिलियन मेट्रिक टन दूध के साथ दुनिया का सबसे ज्यादा दुग्ध-उत्पादक देश बन गया है। दुनिया भर में सबसे ज्यादा दुग्ध उपभोग के बावजूद भी भारत दुग्ध-उत्पादन में पूर्णतया आत्मनिर्भर है। इसके अतिरिक्त पिछले 60 वर्षो में भारत के दूध उत्पादन की वृद्धि दर 4.5% रही है जबकि अमेरिका की मात्र 1.8% तथा यूरोपियन संघ व औस्ट्रेलिया की मात्र 1.3% रही है। इसके अतिरिक्त भारत में डेयरी उत्पादन एवं प्रौद्योगिकी के विकास में अपनी स्थानीय जरूरतों के मध्येनज़र अभूतपूर्व प्रगति की है।
दुग्ध उत्पादन एवं प्रसंस्करण को बढ़ाने के लिए भारत की रचनात्मक रणनीति विश्वभर के पारंपरिक दुग्ध उत्पादक देशों के लिए ईर्ष्या का विषय बन गई है। विश्वभर के प्रमुख डेयरी उत्पादक देश जैसे यूरोपियन समुदाय, न्यूजीलेंड व ऑस्ट्रेलिया आदि अमेरिका नहीं बल्कि दुग्ध उत्पादन एवं प्रसंस्करण के क्षेत्र में भारत की तेज़ी से बढ़ती हुई क्षमता से भयभीत भी है।

भारत दुग्ध उत्पादों का सबसे बड़ा बाज़ार:
दुग्ध-उत्पादन के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर है जबकि न्यूजीलेंड, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपियन समुदाय व अमेरिका आदि देशों के अपनी खपत बनाए रखने व कीमतें बरकरार रखने के लिए हमेशा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों की तलाश रहती है। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश भारत की 132 करोड़ जनसंख्या का अधिकांश भाग शाहकारी है। इसके अतिरिक्त विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई बड़ी अर्थव्यवस्था भारत को दुनिया का दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादों का सबसे बड़ा बाज़ार बनाती है।

2008-17 के बीच भारत में दुग्ध व दुग्ध उत्पादों की खपत 488 लाख मेट्रिक टन रही, जो विश्व के अन्य भागों की तुलना में कही अधिक है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि इसी पीरियड में चीन में इनकी खपत मात्र 19.9 लाख टन, सब-सहारन अफ्रीका में 26.7 लाख टन थी। आगामी दशक (2018-27) के मध्य भारत में दूध का उपभोग लगभग 634 लाख टन होने का अनुमान है जबकि चीन में 77 लाख टन, सब-सहारन अफ्रीका में 58 लाख टन व ओईसीडी में मात्र 14 लाख टन ही रहने की संभावना है। इससे स्पष्ट है कि भारत दूध का न केवल विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है अपितु आने वाले समय में भी इसके सबसे तेज़ी से बढ़ने का अनुमान है।
भारत में दूध का उपभोग विश्व भर में सर्वाधिक बढ़ने का अनुमान (२०१८-२७)
(वैश्विक वृद्धि औसत : प्रति व्यक्ति १३%; कुल उपभोग २६%)

shailendra tiwari

राजनीति, देश-दुनिया, पॉलिसी प्लानिंग, ढांचागत विकास, साहित्य और लेखन में गहरी रुचि। पत्रकारिता में 20 साल से सक्रिय। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली राज्य में काम किया। वर्तमान में भोपाल में पदस्थापित और स्पॉटलाइट एडिटर एवं डिजिटल हेड मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी।

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