प.बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में होने हैं और लोकसभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि इस बार ममता बनर्जी के लिए रास्ता आसान नहीं होगा। हालांकि, लोकसभा चुनाव में 43 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर के साथ 22 सीटों पर अब भी तृणमूल का कब्जा है, जो बताता है कि उसकी जड़ें अब भी गहरी हैं। पर, ममता के लिए चिंता की बात यह है कि जिस भाजपा के लिए प.बंगाल को अब तक बंजर भूमि समझा जाता था, वहीं उसने आम चुनाव में 40. 25 फीसदी वोट हासिल कर लिए हैं जो पिछले आम चुनाव (2014) के 16. 8 फीसदी से काफी ज्यादा है। अब राज्य में भाजपा की ऐसी धमक हो गई है कि सत्ता से नाराज हर खेमा भाजपा से जुडऩा चाहता है। राजनीतिक टकराव सडक़ों पर उतर आया है। आए दिन हिंसा और दल-बदल सुर्खियां बन रही हैं। इसीलिए ममता की इच्छा 7.5 फीसदी वोट हासिल करने वाले वाम दल और 5.5 फीसदी वोट शेयर वाली कांग्रेस को साथ लेने की है। यदि दोनों दल ममता के साथ आ गए तो आंकड़ों में भाजपा से फासला (करीब 16 फीसदी) बड़ा दिखने लगेगा।
बीते आम चुनाव में आंकड़ों का ऐसा ही गुणा-भाग उत्तर प्रदेश में धराशायी हो चुका है, बसपा-सपा ने गठबंधन नाकाम होने के बाद अब इसे तोडऩे की भी घोषणा कर दी है। ऐसे में ममता का अंकगणित क्या कारगर साबित होगा? विरोधी दलों को समझना होगा कि भाजपा की जीत अंकगणित से ज्यादा मतदाताओं की केमिस्ट्री पर निर्भर है। अपनी विचारधारा पर टिके रहने का धैर्य और रणनीति के साथ लगातार जमीन तैयार करते रहना भाजपा को अन्य दलों से अलग करता है।
तृणमूल कांग्रेस हो या कांग्रेस या कोई अन्य पार्टी, जिनका व्यवहार उनकी नीतियों को प्रतिबिंबित नहीं करता, उन्हें आने वाले समय में अस्तित्व का संकट झेलना ही होगा। जनता यदि भाजपा को बेहतर विकल्प के रूप में स्वीकार कर रही है तो उसकी खूबियों को भी समझने की जरूरत है। सिर्फ भाजपा का डर दिखाकर हमेशा अपना उल्लू सीधा नहीं किया जा सकता। इसलिए ममता का यह कहना कि आज भाजपा हिंदू-मुस्लिमों में भेद पैदा कर रही है और कल बांग्लाभाषियों और गैर-बांग्लाभाषियों में ऐसा करेगी, मायने नहीं रखता। भाजपा की रणनीति का मुकाबला बेहतर रणनीति से ही संभव है, डर दिखाकर नहीं।