खबर सचमुच चौंकाने वाली है कि सेना के काम आने वाले आयुध अपराधियों के हाथों में पहुंच रहे हैं। सेना के सेंट्रल ऑर्डिनेंस डिपो के शस्त्रसाज की गिरफ्तारी के बाद पुलिस की पूछताछ में जो तथ्य सामने आए हैं उनमें बड़ी चिंता यह है कि जिन पर देश की रक्षा की अहम जिम्मेदारी है उनमें ही कुछ ऐसे निकल रहे हैं जो देश और समाज के प्रति गद्दारी कर रहे हैं। जिस सेवानिवृत्त जवान को पुलिस ने गिरफ्तार किया है उसने यह चौंकाने वाला बयान दिया है कि सेना के दूसरे साथियों के साथ मिलकर उसने करीब पचास एके-४७ रायफल अपराधियों को पांच-पांच लाख रुपए में बेची हैं।
हमें यह जानना भी जरूरी है कि आखिर आतंकियों और दूसरे अपराधियो की पसंद एके-४७ क्यों बनी हुई है? सबसे बड़ी बात इसके परिचालन में आसानी की है। इसे आसानी से खोला और जोड़ा जा सकता है। चार सौ मीटर तक मार करने वाली यह रायफल एक मिनट में ६०० राउण्ड फायर करने में सक्षम है। और वजन भी सिर्फ ३.१ किलोग्राम है। बड़ी खासियत यह कि यह लंबी दूरी तक वार करने वाला व सटीक निशाने वाला हथियार है। यही वजह है कि आज दुनिया में दस करोड़ से ज्यादा एके-४७ रायफल काम में आ रही हैं। जहां तक कि इस रायफल की निर्माण प्रक्रिया का सवाल है न तो एके-४७ और न ही इसके पाट्र्स निजी आयुध फैक्ट्रियों में बनाना संभव है। इन्हें तीन हजार डिग्री तक का तापमान बर्दाश्त करने के स्तर पर बनाया जाता है। ऐसा सामान्य फैक्ट्रियों में बनाना कतई संभव नहीं होता है।
जिस तरह से यह रायफल सेना के आयुध डिपो से बाहर आई, वह सेना के जवानों और अफसरों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। अधिकतर आतंकी संगठन एके-४७ का इस्तेमाल करते रहे हैं। वर्ष १९४९ से लेकर आज तक यह रूसी सेना का सफलतम हथियार रहा है। दुनिया के १०६ देशों की सेनाएं और अन्य विशिष्ट सुरक्षा दल इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। यह रायफल प्रत्येक मौसम में इस्तेमाल की जा सकती है।
रक्षा मंत्रालय के तहत देश में ३९ ऑर्डिनेंस फैक्ट्री, ९ प्रशिक्षण संस्थान व चार रक्षा समूह कार्य करते हैं। ऐसे संस्थानों में भी सुरक्षा व्यवस्था इतनी लचर हो जाए कि सैन्य आयुध तक देश के दुश्मनों और अपराधियों के हाथों पहुंच जाएं तो समूची व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है। ऐसे देशद्रोहियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। सजा भी ऐसी हो कि कोई फिर से ऐसी हिमाकत न करें।