आईटी क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर होना पड़ेगा

भारतीय एप अब तक क्यों नहीं बन पाए या बने भी तो मार्केट क्यों नहीं पकड़ पाए ? जब तक इसका विश्लेषण नहीं करेंगे तब तक प्रोद्योगिकी में आत्म निर्भरता की बात अधूरी ही रहेगी |

डॉ.राम किशोर उपाध्याय, तकनीकी मामलों के जानकार

भारत सरकार द्वारा 59 चीनी एप प्रतिबंधित कर देने के निर्णय ने कंप्यूटर प्रोद्योगिकी से जुड़े विद्यार्थियों और आईटी कंपनियों को स्वयं को स्थापित करने का सुनहरा अवसर दे दिया है | किंतु यह उतना आसान भी नहीं है जितना समझा जा रहा है | प्रतिबंधित एप्स में कुछ तो ऐसे हैं जो अधिक लोकप्रिय नहीं थे किंतु जो लोकप्रिय थे उनके विकल्प रूप में भारतीय एप दूसरे-तीसरे तो क्या किसी भी क्रम पर नहीं हैं | भारतीय एप अब तक क्यों नहीं बन पाए या बने भी तो मार्केट क्यों नहीं पकड़ पाए ? जब तक इसका विश्लेषण नहीं करेंगे तब तक प्रोद्योगिकी में आत्म निर्भरता की बात अधूरी ही रहेगी | इसका सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण कारण है प्रतिभा पलायन (ब्रेन-ड्रेन) जिस पर दो दशकों के अरण्यरोदन के पश्चात भी कोई संज्ञान नहीं लिया गया |

भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थानों में पढ़ने वाले लगभग सभी विद्यार्थियों का एक ही सपना होता हैं बड़ा पैकेज, बड़ी कंपनी और जहाँ तक संभव हो विदेशी कंपनी | निजी संस्थान से लेकर आईआईटी तक, स्वयं शुल्क देकर पढ़ने वाले से लेकर शासकीय छात्रवृत्ति की सहायता से पढ़ने वाले तक लगभग सभी की सोच एक जैसी ही जान पड़ती है | बहुत ही कम संख्या में लोग देश सेवा के बारे में सोचते हैं | क्या हमारे संस्थान गूगल, माइक्रोसॉफ्ट आदि विदेशी कंपनियों के लिए कुशल श्रमिक गढ़ने के लिए ही संचालित किए जा रहे हैं ?

प्रति वर्ष लाखों प्रोद्योगिगी स्नातक देने वाले देश के लिए कितने दुःख की बात है कि उसके द्वारा तैयार किए गए गुणवान इंजीनियर्स की सेवाएँ उसी के लिए अनुपलब्ध हैं | आज हमारे पास अपने कहे जाने वाले सॉफ्टवेयर्स कितने हैं ? और जो हैं भी उन्हें कितने जानते और उपयोग करते हैं | हमारे पास स्वयं का ऐसा सर्च इंजन नहीं है जो गूगल और याहू से टक्कर ले सके, हम भी भी विदेशी ऑपरेटिंग सिस्टम विंडो और लाइनेक्स पर ही निर्भर हैं | कंप्यूटर पर प्रयुक्त होने वाली सभी भाषाएँ (प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज ) सी प्लस-प्लस, जावा, पाइथन, पर्ल अदि सब विदेशी ही हैं ? जब कि इन भाषाओँ और सॉफ्टवेयर्स को विकसित करने वाली कम्पनियाँ भारतीय इंजीनियर्स / डेवलपर्स के मस्तिस्क का भरपूर उपयोग कर रही हैं | इसे विचित्र संयोग ही कहेंगे कि प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय तो बहुत आगे हैं किन्तु भारत पीछे है | कारण कुछ भी हो किन्तु सत्य यही है कि सुन्दर पिचई जैसे अनेक दिग्गज भारत में पैदा हुए,भारत में पढ़े-लिखे किन्तु उनके ज्ञान का लाभ हमें नहीं मिल पा रहा |
विद्यार्थियों की महत्वाकांक्षा से भी अधिक दोष हमारी नीतिओं का है | जब सरकारों को देश के भविष्य से अधिक अपने भविष्य की चिंता होने लगे तो प्रतिभाओं को नए आश्रय दाता ढूँढने ही पड़ते हैं | धन ही सब कुछ नहीं होता सम्मान और स्वाभिमान भी कोई चीज होती है बुद्धि जीवियों में इसका बड़ा क्रेज है | हमारे देश में या कहें कि समाज में राजनीतिक और नौकरशाहों को ही सम्मान से देखने का फैशन जोरों पर है किसी भी बड़े से बड़े वैज्ञानिक को हमारे तंत्र का परिचय देने के लये किसी भी कर्लालय का सरकारी बाबू पर्याप्त है फिर कम्पनी खोलना उसे स्थापित करना तो और भी जटिल है |

यद्यपि वर्तमान सरकार ने बहुत सी जटिलताओं और तकनीकी समस्याओं का समाधान करने का प्रयत्न किया है किन्तु अभी भी बहुत काम होना शेष है | 1962 में चीन ने हमारी चालीस हजार वर्ग किलोमीटर से भी अधिक भूमि बलात घेर ली, किन्तु अपना बाजार तो हमने स्वयं ही उसे घेरने का न्यौता दिया, हमारी प्रोद्योगिकी को मिलने वाला पूरा स्पेस चीन खा गया और हम चुप चाप देखते रहे ! उसकी कम्पनियाँ भारतीय धन और उपभोक्ताओं को पचाती रहीं और सरकारें सोती रहीं | संतोष की बात यह है कि देर से ही सही हम थोड़ा जागे तो हैं | यद्यपि इंफ्रास्ट्रक्चर, निवेश आदि की कठिन चुनौतियाँ इस दिशा में हैं काम कठिन है पर असंभव नहीं | भारत के पास मैन पॉवर और ब्रेन पॉवर की कमी नहीं हैं |

जिस प्रकार अँग्रेजों द्वारा संचालित संस्थानों में पढ़े भारतीयों ने ही अँगरेजों को देश से खदेड़ने का बीड़ा उठाया था यदि उसी प्रकार विदेशी कंपनियों में सेवारत अनुभवी इंजीनियर्स आत्मनिर्भर भारत के लिए उठ खड़े हों तो लक्ष्य और भी आसान हो सकता है | स्वतंत्रा प्राप्ति के समय डॉ. होमी जहाँगीर भाभा ने विदेश में शोधरत वैज्ञानिकों का आह्वान किया था और दुनिया भर से भारतीय वैज्ञानिक सुख-सुविधाएं व पैकेज को ठोकर मारकर स्वदेश लौट आये थे क्या वैसा आह्वान प्रोद्योगिकी के जानकारों से नहीं किया जा सकता ? यदि सरकार के सहयोग से भारतीय उद्योग और प्रोद्योगिकी संस्थान एकसाथ मिलकर देशहित में इस चुनौती को स्वीकार करें तो प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में हम चीन को पछाड़ सकते हैं | प्रोद्योगिकी में आत्मनिर्भर होने से अत्याधुनिक हथियारो का निर्माण कर सुरक्षा क्षेत्र में आत्म निर्भरता प्राप्त की जा सकती है | भारत को सेना के साथ-साथ बैंक, चिकित्सा, यातायात सहित सेवा के प्रत्येक क्षेत्र की प्रोद्योगिकी में आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता है |

shailendra tiwari

राजनीति, देश-दुनिया, पॉलिसी प्लानिंग, ढांचागत विकास, साहित्य और लेखन में गहरी रुचि। पत्रकारिता में 20 साल से सक्रिय। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली राज्य में काम किया। वर्तमान में भोपाल में पदस्थापित और स्पॉटलाइट एडिटर एवं डिजिटल हेड मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी।

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